अम्मा की राजनीतिक विरासत और शशिकला
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अम्मा की राजनीतिक विरासत और शशिकला

अम्मा की राजनीतिक विरासत और शशिकला

भारतीय राजनीति की 'अम्मा' जयललिता के निधन के बाद से यह सवाल उठने लगे हैं कि तमिलनाडु और एआईएडीएमके की राजनीति की दशा और दिशा क्या होगी? गरीबों की कल्याणकारी नीति पर चलने वाली सरकार को ठसक के साथ चलाने वाली जयललिता ने कभी ये नहीं सोचा कि उसके बाद कौन? आखिर कौन संभालेगा अम्मा की राजनीतिक विरासत को? 

फिल्म और राजनीति जीवन की पुरानी दोस्त शशिकला को जयललिता ने आगे जरूर बढ़ाया लेकिन उसके लिए भी एक लक्ष्मण रेखा खीच रखी थी जिसके आगे वह एक कदम नहीं रख सकती थी। पनीर सेलवम को जब-जब जयललिता संकट में आईं, मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी पार्टी ने सौंपी लेकिन वह एआईएडीएमके की राजनीति में कद्दावर नेता के तौर पर जगह नहीं बना पाए। जब जयललिता अपोलो अस्पताल में भर्ती थी तब कार्यवाहक मुख्यमंत्री की भूमिका तो पनीर सेल्वम जरूर निभा रहे थे, लेकिन कैबिनेट की बैठक जयललिता की तस्वीर को सामने रखकर ही होती थी। सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि 'अम्मा की राजनीति' के केंद्र में सिर्फ जयललिता होती थीं बाकी सब मूकदर्शक। 

अब जब अम्मा की राजनीति का दौर खत्म हो चुका है, चाहे वो शशिकला हो, पनीर सेल्वम हों या फिर विपक्षी पार्टियों के तौर पर डीएमके, भाजपा, या फिर कांग्रेस हो, शतरंज की बिसात पर सभी अपनी-अपनी चालें चलने शुरू कर दिये हैं और इसमें जो भारी पड़ेगा वो तमिलनाडु की सियासत पर राज करेगा। कहने का तात्पर्य यह कि अम्मा के निधन के बाद सूबे की राजनीति का चाल, चरित्र और चेहरा में बदलाव तय है। और जाहिर है इसका असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पड़ेगा।

अम्मा की शागिर्दगी में रहीं शशिकला राजनीतिक रूप से काफी सशक्त महिला मानी जाती हैं। इतनी सशक्त कि अम्मा के अंतिम संस्कार की रस्म भी शशिकला ने ही निभाई। इस नाते भी एआईएडीएमके की जिस राजनीतिक विरासत को जयललिता छोड़ गईं हैं उस पर पहला अधिकार शशिकला का ही बनता है। तमिलनाडु की जिस जनता पर अम्मा का जादू चलता था वो भी जान रही है कि शशिकला ही उन्हें वो सब कुछ दे सकती हैं जो अम्मा के राज में मिलता था। जानकार बताते हैं कि जयललिता के बाद एआईएडीएमके को कोई अगर ठीक से चला सकता है तो वह शशिकला ही हैं। पार्टी में उनकी ताकत भी ज्यादा है और चूंकि अम्मा के सबसे नजदीक वो ही होती थीं इसलिए पार्टी को कब क्या चाहिए और पार्टी कैसे आगे बढ़ेगी, उन्हें अच्छे से पता है। 

उम्मीद की जा रही है कि शशिकला पहले तो पार्टी महासचिव का पद संभालेगी और फिर आगे की रणनीति तय करेंगी। अभी चार साल तक इस सरकार को चलाना है इसलिए शायद वर्चस्व की राजनीति से शशिकला को परहेज करना पड़ेगा। मुख्यमंत्री बनने का सपना अभी न पालें तो पार्टी और शशिकला की राजनीतिक सेहत के लिए अच्छा रहेगा। क्योंकि पार्टी का मानना है कि शशिकला को जयललिता की तरह लोगों को बांधने की, साथ लेकर चलने की कला नहीं आती है। पार्टी में भी शशिकला सर्व स्वीकार्य नहीं हैं। इसलिए माना जाता है कि वह लोगों से संवाद कम रखेंगी लेकिन पार्टी के अहम फैसले पनीरसेल्वम की जगह शशिकला ही लेंगी।

कौन हैं शशिकला? 
शशिकला कौन हैं, किस तरह से शशिकला नटराजन जयललिता की राजनीतिक जिंदगी से निजी जिंदगी में गहरे तक पहुंच गईं? शशिकला का जन्म तंजौर जिले के मनारगुड़ी में हुआ था। स्कूल की पढ़ाई शशिकला ने बीच में ही छोड़ दी थी। शशिकला की शादी तमिलनाडु सरकार में जनसंपर्क अधिकारी रहे नटराजन नाम के एक शख्स से हुई और तब से वह शशिकला नटराजन के रूप में पहचानी जाने लगीं। फिल्मों की शौकीन शशिकला पैसे कमाने के लिए एक विडियो शॉप चलाती थीं। इतना ही नहीं वह आसपास के इलाकों में होने वाली शादियों की विडियो रिकॉर्डिंग भी किया करती थीं।

शशिकला के पति नटराजन कडलोर जिले की कलेक्टर वीएस चंद्रलेखा के साथ काम करते थे और चंद्रलेखा तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम.जी रामचंद्रन (एमजीआर) की करीबी थीं। एमजीआर फिल्म में अपनी सह-अभिनेत्री जयललिता के भी करीबी थे। भीड़ को अपनी तरफ आकर्षित करने की जयललिता की कला से एमजीआर बेहद प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने अपनी पार्टी एआईएडीएमके में जयललिता को जगह दी थी। कलेक्टर चंद्रलेखा ने नटराजन के कहने पर एमजीआर और जयललिता से शशिकला को मिलवाया था। वहीं से दोनों की दोस्ती की शुरुआत मानी जाती है।

धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती इतनी पक्की हो गई कि साल 1988 से शशिकला जयललिता के घर पर साथ ही रहने लगीं। शशिकला के साथ उनका परिवार भी जया के घर पर ही शिफ्ट हो गया। इसके बाद शशिकला ही तय करतीं थीं कि कौन जयललिता से मिलेगा। पार्टी से जुड़े तमाम बड़े फैसलों में शशिकला की भूमिका होती थी। इतना ही नहीं कई लोगों को पार्टी से निकलवाना और नियुक्त कराना भी शशिकला का काम हो गया था।

जयललिता और शशिकला की दोस्ती में पहली बार साल 1996 में दरार आई थी, जब एआईएडीएमके को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। जयललिता ने इसके लिए शशिकला के परिवारवालों की बिगड़ी छवि को जिम्मेदार बताया था। उसके बाद साल 2012 में जयललिता ने शशिकला को पार्टी से बाहर कर दिया था। दरअसल तब शशिकला के परिवार वाले उन्हें तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनाने की साजिश रच रहे थे। नाराज जयललिता ने शशिकला के परिवार वालों को अपने घर से बाहर कर दिया था। हालांकि बाद में शशिकला ने माफी मांगी और उन्हें पार्टी में दोबारा जगह मिली। अभी हाल में 2016 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद दोनों में फिर से तकरार बढ़ गई थीं और जयललिता ने उसे पार्टी से भी निकाल दिया था, लेकिन अचानक सारे मतभेद को भुलाकर जयललिता ने शशिकला को अपनाया। दूरियां नजदीकियां में बदल गईं। शायद जयललिता को अपनी मौत का आभास हो गया था।

भविष्य की सियासी संभावनाएं
तमिलनाडु की राजनीति में अम्मा के ना होने के बाद सूबे की राजनीति में जो बदलाव देखा जा रहा है उसके मुताबिक एम. करुणानिधि की पार्टी डीएमके को फायदा मिलने की बात कही जा रही है। यह ठीक है कि राज्य की दूसरी प्रमुख पार्टी डीएमके प्रमुख करुणानिधि पर भी उम्र हावी हो चुकी है। उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं चल रहा है, लेकिन उनके बेटे एमके स्तालिन ने पार्टी को अच्छी तरह से संभाल लिया है। माना जा रहा है कि अगर डीएमके थोड़ा इंतजार कर अम्मा की राजनीतिक विरासत में सेंध लगाने की जुगत भिड़ाती है तो उसे राजनीतिक रूप से फायदा होने की उम्मीद है।

जहां तक भाजपा और कांग्रेस की बात करें तो यह सर्वविदित तथ्य है कि तमिलनाडु की राजनीति में डीएमके और एआईएडीएमके दो मुख्य पार्टियां रही हैं, लेकिन जयललिता के निधन के बाद जो खालीपन पैदा हुआ है, उससे राष्ट्रीय पार्टी के रूप में भाजपा के लिए दरवाजे खुलते दिख रहे हैं। लेकिन जयललिता के बाद पार्टी पर शशिकला का नियंत्रण बढ़ना तय है और यह भाजपा के लिए अच्छा नहीं होगा। क्यों कि ऐसा माना जाता है कि भाजपा और एआईएडीएमके के बीच दूरी की पृष्टभूमि में शशिकला ही रहीं हैं। बावजूद इसके कांग्रेस की संभावना बिलकुल नहीं दिखती क्यों कि वहां वह डीएमके के दोस्त के रूप में स्थापित हो चुकी है।

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