सिगरेट, तंबाकू को हाथ भी नहीं लगाया फिर भी क्यों हो रहा कैंसर? ये है असली कारण
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सिगरेट, तंबाकू को हाथ भी नहीं लगाया फिर भी क्यों हो रहा कैंसर? ये है असली कारण

कैंसर आजकल बेहद आम हो गया है. कब किसे कैंसर हो जाए नहीं कहा जा सकता.

डॉक्टर अंशुमान कुमार, कैंसर विशेषज्ञ

कैंसर आजकल बेहद आम हो गया है. कब किसे कैंसर हो जाए नहीं कहा जा सकता. पिछले कुछ सालों में यदि हम देखें तो इसने अच्छी खासी गति पकड़ ली है. आजकल ज्‍यादातर मामले ऐसे सामने आ रहे हैं जहां पेशेंट ने सिगरेट, तंबाकू या शराब जैसी चीजों को हाथ भी नहीं लगाया. लिहाजा, यह समझना जरूरी है कि हमसे कहां चूक हो रही है. वैसे तो कैंसर के कई कारक हैं, लेकिन प्लास्टिक एक ऐसा कारक है जिससे अधिकांश लोग अवगत नहीं हैं. प्लास्टिक आज हमारे जीवन में बिल्कुल वैसे ही घुल गया है, जैसे पानी में नमक और जिस तरह नमक ज्यादा होने पर मुंह का स्वाद खराब हो जाता है, वैसे ही प्लास्टिक हमारे शरीर को खराब कर रहा है.

प्‍लास्टिक घातक क्‍यों?
जाने-अनजाने में बड़े पैमाने पर प्लास्टिक हमारे शरीर में जा रहा है और हम कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार बन रहे हैं. यह बात कई शोधों में भी साबित हो चुकी है. इससे कैसे बचा जा सकता है, इस पर बात करने से पहले जल्दी से यह समझ लेते हैं कि आखिर प्लास्टिक में ऐसा क्या है जो हमारे लिए घातक है? प्लास्टिक में दो मुख्य कैमिकल होते हैं Bisphenol-A और phthalate. इनसे तीन बीमारियों का खतरा रहता है. पहली बीमारी 'पुरुषों में बांझपन', दूसरी बीमारी 'महिलाओं में थायराइड की कमी' और तीसरी बीमारी 'कैंसर'. यदि लंबे समय तक ये कैमिकल हमारे शरीर में पहुंचते हैं तो कैंसर की आशंका बढ़ जाती है.  

वैसे तो पूरी दुनिया में ही पानी से लेकर खाना तक प्लास्टिक के डिब्बों में आता है, लेकिन हमारे देश में स्थिति ज्यादा खराब है. अमेरिका में खाद्य पदार्थों को फ़ूड ग्रेड प्लास्टिक में पैक किया जाता है. ये प्लास्टिक का वह रूप है जिसमें मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले तत्व नहीं होते. यूएस में लेबल लगा होता है ‘फ़ूड ग्रेड प्लास्टिक’ यानी आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि जो कुछ आप इस्तेमाल करने जा रहे हैं वह सुरक्षित है. जबकि भारत में आपने शायद ही ऐसा कोई लेबल देखा हो, इसकी वजह यह है कि फ़ूड ग्रेड प्लास्टिक की लागत ज्यादा आती है.  

कैसे करें बचाव
अब समझते हैं कि आखिर हम खुद को सुरक्षित रखने के लिए क्या कर सकते हैं? सबसे पहला काम जो आप कर सकते हैं वो यह है कि अपनी किचन से प्लास्टिक प्लेट और डिब्बों को हटा दीजिये. भूलकर भी नॉन माइक्रोवेव बर्तनों में खाना गर्म न करें. अमूमन हम किसी भी डिब्बे में खाना रखकर माइक्रोवेव में डाल देते हैं. अब चूंकि सामान्य प्लास्टिक माइक्रोवेव के लिए नहीं बनी होती, हीट ज्यादा होने पर उससे कैमिकल निकलते हैं और हमारे खाने में पहुंच जाते हैं. जरा सोचकर देखिये कि इस तरह आप अब तक कितनी प्लास्टिक कंज्यूम कर चुके होंगे.

इसके बाद फ्रिज से प्लास्टिक की सभी बोतलों को भी बाहर कर दीजिये. उनके स्थान पर कॉपर, स्टील और ग्लास की बोतल इस्तेमाल करें. घर से हमेशा पानी साथ लेकर चलें, ताकि आपको प्लास्टिक की बोतल वाला पानी न खरीदना पड़े. आपने अक्सर देखा होगा कि दुकानों के बाहर पानी की बोतलें धूप में रखी होती हैं और बाद में उन्हें फ्रिज में लगाया जाता है. आपकी गाड़ी में रखी पानी की बोतल धूप में तप जाती है और आप बाद में टेम्प्रेचर सामान्य होने पर उसे पी लेते हैं. ये बेहद खतरनाक है, ज्यादा हीट से प्लास्टिक के कैमिकल रिसकर पानी में पहुंच जाते हैं और पानी से हमारे शरीर में.

टिफिन बॉक्स भी खतरनाक रसायनों का बड़ा सोर्स है. इसलिए प्लास्टिक के टिफिन को आज से ही बंद कर दीजिये. इसी तरह प्लास्टिक के चम्मच और प्लेट कभी इस्तेमाल न करें. यदि आपको चम्मच से खाने की आदत है, तो अपने बैग में एक स्टील का चम्मच रखें. यह बस आदत वाली बात है जिस तरह हम पेन रखते हैं वैसे ही चम्मच भी रखा जा सकता है. रेस्टोरेंट आदि से प्लास्टिक के डिब्बों में जो खाना आता है, तो भी हमारी सेहत के लिए नुकसानदेह है. अब चूंकि इस पर हमारा और आपका नियंत्रण नहीं है, इसलिए जहां तक संभव हो इसका कम से कम सेवन करें. उत्तर प्रदेश सरकार ने प्लास्टिक के डिब्बों में खाने की डिलीवरी बंद कर दी गई है. यदि पूरे देश में ऐसा कुछ किया जाए तो पर्यावरण के साथ-साथ हमारी सेहत के लिए काफी अच्छा होगा.

प्लास्टिक के स्ट्रॉ इस्तेमाल करना भी आपको तुरंत बंद कर देना चाहिए. हीट ज्यादा होने या डायरेक्ट सन लाइट के संपर्क में आने से इससे रिसने वाला कैमिकल भी हमारे शरीर में जाता है. आजकल बाजार में स्टील के स्ट्रॉ भी आते हैं, आप एक पैक खरीदकर अपने साथ रख लीजिये.  

ये कुछ छोटे-छोटे कदम हैं, जिन पर आप जितना जल्दी अमल करेंगे उतना ही आपके लिए अच्छा है.  

(लेखक: डॉ अंशुमान कुमार, कैंसर विशेषज्ञ, दिल्‍ली)

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.)

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