अगर विश्व रैंकिग में नंबर एक टीम के विश्व रैंकिग में नंबर एक खिलाड़ी को 57 गेंदें रक्षात्मक तरीके से खेलने में लगातार दिक्कत आई हो तो हमें यह मान लेना चाहिए कि फटाफट क्रिकेट ने टेस्ट मैच के लिए जरूरी माने जाने वाले धैर्य को चलता कर दिया है.
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अपने देश के क्रिकेट प्रेमी सदमे में हैं. क्यों न हों, क्योंकि हम विश्व की रैंकिंग में नंबर वन हैं. पहला टेस्ट हार ही चुके थे. दूसरे टेस्ट की पहली पारी में सिर्फ 107 रन पर आउट हो गए. भले ही दूसरे टेस्ट के डेढ़ दिन का समय बारिश ने ले लिया हो लेकिन हम इतने छोटे स्कोर पर आउट हो गए हैं कि बाकी बचे तीन दिन में संकट से उबरने के लिए कोई चमत्कार ही करना पड़ेगा. खैर ये क्रिकेट का खेल है. इसमें कुछ पता नहीं होता कि कब क्या हो जाए. हालांकि इस टेस्ट के दूसरे दिन हमारी टीम जितनी बुरी तरह से फंसी नज़र आई उससे सबक जरूर बनाए जाने चाहिए ताकि इस मैच के बाकी दिनों और आगे के तीन और टेस्ट मैच के लिए कोई रणनीति बनाई जा सके. ज़रा अजीब सी बात है कि लॉर्ड्स के मैदान पर अपने साथ हुए हादसे का पोस्टमार्टम होता हुआ नहीं दिखा. इस तरह नज़रें चुराएंगे तो आगे घाटे में ही रहेंगे.
विशेषज्ञों का रुख समझ में नहीं आया. अभी टॉस नहीं हुआ था. अपनी तरफ के सारे विशेषज्ञ बता रहे थे कि पिच के हिसाब से पहले बल्लेबाजी की जानी चाहिए. एक भी विशेषज्ञ नहीं था जिसने पहले गेंदबाजी के लिए बोला हो. हम टॉस हारे. लगा कि अब मजबूरी में गेंदबाजी करनी पड़ेगी. लेकिन इंग्लैंड के कप्तान रूट ने हमें बल्लेबाजी दे दी. यहीं से हमारे विशेषज्ञों के पास टॉस हारने का बहाना भी खत्म हो चुका था.
बारिश से पिच का स्वभाव बदलने का बहाना भी खत्म हुआ
लॉर्ड्स के पास पिच को ढकने की एक जबर्दस्त प्रणाली है. पहिए पर चलने वाले एक टेंटनुमा कवर की यह विशेषता है उसमें हीटर और पंखे भी लगे हैं. पिच में अगल बगल से नीचे की तरफ जो सीलन पहुंचती है उसे सुखाने का ऐसा इंतजाम था कि जब कवर हटे तो पिच जैसी की तैसी मिली. विशेषज्ञों का यह बहाना भी खत्म था कि मौसम ने कोई असर डाला हो.
एंडरसन और ब्रॉड ने हमें हिलने ही नहीं दिया
मैच के शुरू होते ही हमारा पहला विकेट गिरा. जल्दी ही दूसरा और तीसरा विकेट भी गिर गया. एंडरसन विकेट की सीध में टप्पा खिलाकर गेंद को बाहर की तरफ लहराने में माहिर हैं. इस मैच में उन्होंने एैसी सधी गेंदबाजी की जैसे पिच पर किसी सिक्के पर लगातार टप्पा खिला रहे हों. उधर ब्राड विकेट के बाहर टप्पा खिलाकर अंदर की तरफ गैंद को लहराने के हुरनमंद हैं. कुलमिलाकर दोनों ने ही हमारे बल्लेबाजों को बुत बनाकर रख दिया. पंद्रह रन पर तीसरा विकेट गिरने के बाद कमेंटी बाक्स में मौजूद कोई भी विशेषज्ञ सुझा ही नहीं पा रहा था कि करें तो क्या करें. बस एक ही सुझाव था कि बाहर जाती गेंदों को छेड़ा न जाए.
फटाफट क्रिकेट ने कहीं धैर्य से नाता तो नहीं तुड़वा दिया. दो राय नहीं कि क्रिकेट के एकदिवसीय और बीसमबीस प्रारूपों ने टेस्ट मैच के शऊर और सलीके पर भारी असर डाला. वे दिन हवा हुए एक गेंदबाज लगातार दस पंद्रह ओवर मेडन डाल दिया करता था यानी संकट में फंसा बल्लेबाज ठान लेता था कि आउट नहीं होना है चाहे एक भी रन न बने. टेस्ट मैच की इस शास्त्रीयता को सराहा जाता था. एक इनिंग के बाद पिछड़ी हुई टीम अगर मैच ड्रा करवा ले जाती थी तो उसकी ऐसी तारीफ होती थी जैसे उसने मैच जीत लिया हो. लेकिन फटाफट क्रिकेट ने उस शास्त्रीयता और धैर्य को चुका दिया. अच्छे से अच्छे खिलाड़ी को भी अपने ऊपर काबू रखने में दिक्कत आने लगी है. भले ही विराट कोहली ने पहले टेस्ट में एक सैकडा और एक पचास मार लिए हों लेकिन उस सफलता में प्रतिद्वंद्वी टीम की फील्डिंग का भी योगदान था. दूसरे टेस्ट में उन्हें वैसा प्रदर्शन दाहराने में शुरू से ही अड़चन आई. अगर विश्व रैंकिग में नंबर एक टीम के विश्व रैंकिग में नंबर एक खिलाड़ी को 57 गेंदें रक्षात्मक तरीके से खेलने में लगातार दिक्कत आई हो तो हमें यह मान लेना चाहिए कि फटाफट क्रिकेट ने टेस्ट मैच के लिए जरूरी माने जाने वाले धैर्य को चलता कर दिया है.
जब सबकुछ हाथ से निकल रहा था
जब एंडरसन की आउटस्विंग और ब्रॉड की इनस्विंग ने तबाही मचा ही दी, और वोक्स और करन ने भी हमें जड़ बना दिया तो अपने फटाफट क्रिकेट के अंदाज को भी हम नहीं अपना पाए. अश्विन और शमी को जब तक यह समझ में आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. फिर भी उनकी बदौलत हमने सौ का आंकड़ा तो पार कर लिया. हां फटाफट क्रिकेट में कई बार बीस ओवर में टीम सौ रन से कम में ही आउट हो जाती है. बहरहाल दूसरे टेस्ट की पहली पारी में जब हम लगभग ढह चुके थे उस समय कुछ विशेषज्ञ यह कहते सुने गए कि गेंदबाज की लाइन और लेंथ बिगाड़ने के लिए ऑफ स्टंप के बाहर जाती सटीक गैंदों पर पहलवानी दिखाई जानी चाहिए थी. लेकिन विशेषज्ञों की यह राय तब सुनाई दी जब चिड़ियां खेत चुग गई थीं.
आगे क्या?
बहुत कुछ बचा है. पूरे तीन दिन बचे हैं. वही पिच है. हमारे पास भी अनुभवी तेज गेंदबाज हैं. और अगर वे कम पड़ें तो अश्विन और कुलदीप जैसे फिरकीबाज हैं. भले ही पहली पारी में हमारा स्कोर बहुत ही कम है. लेकिन अगर हम इंग्लैंड को बढ़त या बहुत ज्यादा बढ़त न लेने दें तो दूसरी पारी में बहुत कुछ संभाल सकते हैं. पहली पारी में हतोत्साहित होने के बाद हमारे विशेषज्ञ पुराने एक मैच की याद दिला रहे हैं जिसमें हम पहली पारी में इसी तरह आउट हो गए थे लेकिन दूसरी पारी जी विश्वनाथ और वेंगसरकर ने संभाल लिया था और मैच ड्रा करा ले गए थे.
लेकिन एंडरसन का काट ढ़ूंढना पड़ेगा
बीस रन देकर पांच विकेट लेने वाले एंडरसन की गेंदों को कैसे खेला जाए? इसका जवाब जल्द ही ढूढना पड़ेगा. पहले टेस्ट मैच में भी एंडरसन ने कम तंग नहीं किया था. लेकिन अपना हौसला बढ़ाने के लिए हमें यह भी याद करते रहना चाहिए कि मौजूदा भारतीय खिलाड़ियों ने उन्हें खूब खेल रखा है. यानी इसे वक्त की बात ही मानना चाहिए कि इस समय उनका निशाना ठीक बैठ रहा है. किसी के साथ ऐसा हमेशा होता नहीं है. क्या पता इंग्लैंड की पहली पारी में हमारा कोई गेंदबाज भी वैसा करतब दिखा दे.
(लेखिका, प्रबंधन प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रेनोर हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)