Zee Analysis : दावोस में अटकलों से हटकर था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण
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Zee Analysis : दावोस में अटकलों से हटकर था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण

प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के बारे में अटकलें ये थीं कि वे भारत को विदेशी निवेश के लिए सबसे अच्छी जगह साबित करने की जीतोड़ कोशिश करेंगे. लेकिन उन्होंने अपने कीनोट एड्रेस यानी मुख्य भाषण में अटकलों से अलग बातें कहीं. 

Zee Analysis : दावोस में अटकलों से हटकर था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण

दावोस में प्रधानमंत्री के भाषण के पहले भारत के लावलश्कर ने अभूतपूर्व समा बांध दिया था. प्रधानमंत्री के भाषण के बारे में अटकलें ये थीं कि वे भारत को विदेशी निवेश के लिए सबसे अच्छी जगह साबित करने की जीतोड़ कोशिश करेंगे. लेकिन उन्होंने अपने कीनोट एड्रेस यानी मुख्य भाषण में अटकलों से अलग बातें कहीं. अटकलों से अलग उनका भाषण वैश्विक समस्याओं पर केंद्रित था. और उनके समाधान उन्होंने भारतीय दर्शन में तलाश किए. उन्होंने बैठक की थीम 'क्रिएटिंग अ शेयर्ड फयूचन विद फ्रेक्चर्ड वर्ल्ड' पर बोलते हुए कहा कि ऐसा भविष्य भारतीय वसुधैव कुटुंबकम के दर्शन से संभव हो सकता है. उन्होंने कहा कि विश्व में मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए साझा नीतियों का अभाव है.

विश्व के सामने तीन चुनौतियां बताई अपने भाषण में
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मानव सभ्यता के सामने इस समय तीन मुख्य चुनौतियां हैं. पहली जलवायु परिवर्तन. इससे निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने बुद्ध के अपरिग्रह दर्शन का जिक्र किया जिसमें जरूरत के हिसाब से त्यागपूर्ण उपभोग की बात कही गई है. दूसरी चुनौती उनहोंने आतंकवाद को बताया. इस दौरान उन्होंने अच्छे और बूरे आतंकवाद के नकली भेद को खतरनाक बताया. तीसरी चुनौती उन्होंने विश्व के आत्म केंद्रित होते जाने को माना. इसे उन्होंने वैश्वीकरण की भावना को कम करने वाली प्रवृत्ति बताया. सबसे आखिर में रखी गई इस चुनौती के ज़िक्र में ही दुनिया के तमाम देशों से यह अपील ढूंढीं जा सकती है कि विदेशी निवेशक भारत में आएं और वैश्वीकरण की भावना बढ़ाने का काम करें.

विदेशी निवेश लुभाने वाली तीन बातें
दावोस के लिए भारत के भारी भरकम अमले की उड़ान भरने के कुछ दिन पहले ही भारत ने विदेशी निवेश लुभाने के लिए सबसे आकर्षक छूटों और आकर्षक सुधारों का ऐलान किया था. उन्हीं एलानों के फौरन बाद ही प्रधानमंत्री इस विश्व मंच पर थे. इसीलिए समझा जा रहा था कि प्रधानमंत्री विश्व आर्थिक मंच की बैठक में अपने भाषण में इसका जिक्र जरूर करेंगे. लेकिन उसके ज़िक्र की बजाए उन्होंने भारत के पारंपरिक ज्ञान का महात्म्य बताने के लिए इस मंच का ज्यादा उपयोग किया. फिर भी उन्होने अपने लंबे भाषण के सबसे आखिरी हिस्से में इतना जरूर कहा कि वैल्थ के साथ अगर वैलनेस चाहते हैं तो भारत आइए, हैल्थ के साथ अगर होलनैस चाहते हैं तो भारत आइए, और अगर समृद्धि के साथ शांति चाहते हैं तो भारत आइए.

क्या दरकार थी प्रधानमंत्री के भाषण से
मसलन प्रधानमंत्री उन मुददों पर भी बोल सकते थे जिन मुददों को दावोस पहुंचे दुनिया के दिग्गज उद्योगपतियों व्यापारियों ने मीडिया से बात करते हुए कही थीं. मसलन भारतीय दल में शामिल एक प्रमुख उद्योगपति राहुल बजाज की मीडिया से बातचीत गौरतलब है. उनकी कही एक बात को पत्रकारों ने अपलक सुना कि चीन ने भी पिछले साल दावोस में ही विदेशी निवेश लुभाने के लिए भारी झंका-मंका पेश किया था. लेकिन अनुभव बता रहा है कि उस पर भरोसा किया नहीं गया. बजाज का कहना था कि भारत को भारत की तरह ही अपना पक्ष रखना चाहिए. वैसे दावोस में बजाज बचते बचाते ही मीडिया से बात कर रहे थे. खैर मीडिया उनसे भारत लौटने के बाद भी बहुत कुछ जानना जरूर चाहेगा.

दुनिया के सबसे बड़े निवेशकों में एक एबरडीन एसेट मैनेजमेंट के मुख्यकार्यकारी मार्टिन जेम्स गिलबर्ट ने बहुत ही सीधे तरीके से मशविरा दिया कि भारत को अपने यहां लालफीताशाही और अफसरशाही के बारे में सोचना होगा. वैसे लगे हाथ देने के लिए भारत के पास इसका एक जवाब था कि भारत ने हाल ही में कुछ क्षेत्रों में विदेशी निवेश के लिए सरकारी मंजूरी तक खत्म कर दी है. लेकिन यह कहने से भी ज्यादा बात बनती नहीं क्योंकि विदेशी निवेशकों के लिए वह सिर्फ शुरूआती मंजूरी की ही बात थी. गिलबर्ट शायद उसके आगे की लालफीताशाही की बात कर रहे थे जो यहां आने के बाद अफसरों और दूसरे पदाधिकारियों के चक्कर काटने के बारे में थी. हालांकि इस सिलसिले में प्रधानमंत्री के भाषण में एक वाक्य ढूंढा जा सकता है. वह ये कि हमने लाल फीते की जगह अब निवेशकों के लिए लाल कालीन बिछाया है.

विश्व की एक और बहुत बड़ी कंपनी केपीएमजी के ग्लोबल चेयरमैन ने भी साफगोई से मीडिया के सामने अपनी बात कही. उनका कहना था कि भारत को कंस्टक्शन परमिट, लेबर रिफार्म और लैंड रिफाॅर्म के मामले में काम करना पड़ेगा. लेकिन ये इतने सनसनीखेज और बड़े सुधार हैं कि दावोस में हाल के हाल इस पर बोला नहीं जा सकता था. वैसे विश्व आर्थिक फोरम की बैठक कोई आखिरी मौका नहीं है. वहां से जो अनुभव और सवाल लेकर हम आएंगे उस पर आगे का सोच विचार होता ही रहेगा.

आखिर में अगर विश्व आर्थिक फोरम की बैठक में अपने प्रदर्शन का आकलन करें तो इसमें कोई शक नहीं कि भारत के भारी भरकम लावलश्कर ने दावोस में धमाल मचाए रखा. और जो अभी हमें ज्यादा पता नहीं है वह ये कि औपचारिक बैठकों और समांतर बैठकों में हमारे दल में शामिल तमाम दिग्गज मंत्रियों और दिग्गज उद्योगपतियों और व्यापारियों को दूसरे देशों के नेताओं और बड़े निवेशकों से अनौपचारिक बातें करने के भरपूर मौके मिले होंगे. सो ये हमें बाद में पता चलेगा कि इतने तामझाम के साथ दावोस जाने का हमें हासिल क्या हुआ.

(लेखिका, प्रबंधन प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रेनोर हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)

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