जो भी व्यक्ति विश्व हिन्दू परिषद को ठीक से जानता है वो इसके तमाम एजेंडों को भी बेहतर समझ सकता है। नब्बे का राम मंदिर आंदोलन हो या फिर आगे के दौर में किया गया शिलापूजन, चौरासी कोस की यात्रा के नाम पर बनाया गया माहौल हो या फिर पंचकोसी यात्रा के नाम पर की गई सियासत।
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वासिंद्र मिश्र
एडिटर (न्यूज़ ऑपरेशंस), ज़ी मीडिया
जो भी व्यक्ति विश्व हिन्दू परिषद को ठीक से जानता है वो इसके तमाम एजेंडों को भी बेहतर समझ सकता है। नब्बे का राम मंदिर आंदोलन हो या फिर आगे के दौर में किया गया शिलापूजन, चौरासी कोस की यात्रा के नाम पर बनाया गया माहौल हो या फिर पंचकोसी यात्रा के नाम पर की गई सियासत। इन सभी आयोजनों को लेकर वीएचपी पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो धर्म का राजनीतिकरण कर रहा है लेकिन वीएचपी के नेता हमेशा इससे इनकार करते रहे हैं और अपने आयोजनों को सांस्कृतिक आयोजन करार देते रहे हैं।
अब एक आयोजन फिर से सामने आया है, ये आयोजन है राम बारात का, जिसमें वीएचपी ने यूपी से होते हुए बिहार और नेपाल तक का माहौल राममय करने का अभियान शुरु किया है। भगवान राम की नगरी अयोध्या से राम की बारात निकल चुकी है जो 25 नवंबर को नेपाल के जनकपुर पहुंचेगी। विश्व हिन्दू परिषद के तत्वावधान में हो रहा ये आयोजन यूं तो पूरी तरह गैर राजनीतिक कहा जा रहा है लेकिन इसके राजनीतिक मायने तब ज्यादा समझ में आते हैं जब इस यात्रा के पूरे रूट को बारीकी से समझने की कोशिश होती है क्योंकि ये यात्रा जिस रुट से हो रही है वो रुट दरअसल प्राचीन मान्यताओं के हिसाब से है ही नहीं।
आस्था के सवाल पर हमेशा ही तमाम दायरे टूटते आए हैं। तमाम दलगत सियासत के रास्ते छूटते आए हैं लेकिन इस बार की ये यात्रा सिर्फ सांस्कृतिक है ऐसा नहीं है। इस सांस्कृतिक यात्रा के पहलू में छिपे नजर आ रहे हैं कई सियासी फैक्टर जिनका सीधा ताल्लुक चुनावी सियासत से है और ये बात रामबारात की 8 दिनों वाली यात्रा के पड़ावों साफ जाहिर होती है। अयोध्या से 17 नवंबर को शुरु हुई इस यात्रा का पहला पड़ाव आज़मगढ़ है। आज़मगढ़ जिसका रामचरित मानस के किसी पात्र से कोई दूर-दूर तक का रिश्ता नहीं है। आज़मगढ़ के बाद ये यात्रा मऊ पहुंचेगी। मऊ जहां पौराणिक काल के तार तो जुड़े हैं लेकिन बात अगर राम की करें तो मऊ जिले का दोहरीघाट इस तौर पर प्रसिद्ध है मऊ शहर नहीं। मऊ के बाद ये यात्रा बलिया, बक्सर, आरा, पटना, हजारीबाग, बाघनगरी, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, अहिल्या स्थान और माधवपुर से होते हुए नेपाल के जनकपुर पहुंचेगी। यानी पूर्वांचल से शुरु होकर दक्षिण बिहार को छूते हुए ये यात्रा उत्तरी बिहार नापते हुए नेपाल तक चली जाएगी।
अब जरा इस रास्ते का राजनीतिक महत्व समझते हैं। दरअसल आज़मगढ़ यूपी की उन चंद सीटों में शुमार है जो बीजेपी के हिस्से मोदीलहर में भी नहीं आई हैं तो मऊ साम्प्रदायिक तौर पर बेहद संवेदनशील इलाका माना जाता है। बिहार के जिन क्षेत्रों से होकर ये यात्रा गुजरने वाली है वो पूरा बेल्ट दरअसल किसी जमाने में मंडल की सियासत का गढ़ रहा है। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में इन क्षेत्रों में बीजेपी ने इन क्षेत्रों में भी बेहतर प्रदर्शन किया है लेकिन असली अग्निपरीक्षा 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में होनी है जिसके लिए भला राम नाम से बेहतर माहौल और कौन बना सकता है।
बहरहाल ये तमाम कयास सिर्फ इसलिए लग रहे हैं क्योंकि 2004 से शुरु हुई इस राम बारात की यात्रा का रूट वीएचपी अक्सर बदलती रहती है। हर पांच साल में होने वाले इस आयोजन में पहली बार यानी 2004 और दूसरी बार यानी 2009 में रूट आज़मगढ़ नहीं बल्कि आज़मगढ़ से सटे अम्बेडकरनगर से होकर रहा था। प्राचीन मान्यताओं और लोककथाओं की अगर बात करें तो भी ये रूट तर्कसंगत नहीं लगता। लोकपरम्पराओं के मुताबिक राम बारात अयोध्या से बस्ती, बस्ती से अगौना, अगौना से संतकबीरनगर जिले में धनघटा, फिर गोरखपुर जिले के सिकरीगंज होते हुए बड़हलगंज, बड़हलगंज से देवरिया के कपरवारघाट होते हुए बरहज, सलेमपुर, बलिया, बक्सर, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी और फिर जनकपुर पहुंची थी। आज भी इस मार्ग को जोड़ने वाले रास्ते को रामजानकी मार्ग कहा जाता है। अब सवाल ये कि लोकमान्यताओं और पौराणिक मान्यताओं में जिस रास्ते की बात कही गई है या जिसे लेकर मान्यताएं आज भी प्रचलित हैं उन रास्तों की बजाय नए रास्ते का चुनाव आखिर क्या संकेत देता है?
अयोध्या के कई संत भी मानते हैं कि राम बारात को वीएचपी ने सियासी आयोजन बना दिया है। संतों की दलील है कि रामचरित मानस में तुलसीदास ने राम की बारात को लेकर सरसरी तौर पर ही वर्णन किया है। तुलसीदास का पूरा जोर राम की बारात का सौन्दर्य दिखाने में रहा है मार्ग नहीं। तुलसीदास के मुताबिक राम के विवाह की सूचना मिलने पर महाराजा दशरथ ने अयोध्या में तैयारियां की और अपने सभी रिश्तेदारों के साथ जनकपुर पहुंच गए लेकिन जनकपुर किस मार्ग से होकर पहुंचे इसका कोई जिक्र नहीं है। इसी प्रकार बारात के वापस आने का क्या रूट था इसका भी कोई जिक्र नहीं है जो भी मार्ग कहा जाता है वो सिर्फ जनश्रुतियों, लोकमान्यताओं और लोककथाओं के आधार पर ही कहा जाता है। रामचरित मानस के बालकांड में बारात पहुंचने को लेकर जो अंतिम दोहा है उसमें कहा गया है कि-
"आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बंधाए सेतु॥
बीच-बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा छाए"
यानी दशरथ को आते जान जनक ने नदियों पर पुल बंधवा दिए। बीच बीच में ठहरने के लिए पड़ाव बनवा दिए जिसमें देवलोक के समान सम्पदा छाई है। वहीं बारात लौटने को लेकर तुलसीदास ने सिर्फ इतना लिखा है कि-
"चली बरात निसान बजाई। मुदित छोट बड़ सब समुदाई॥
रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी"
जिसके बाद तुलसीदास आगे लिखते हैं कि ....
"बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत।
अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत"
यानी कि बीच बीच में सुंदर मुकाम पार करती हुई तथा मार्ग के लोगों को सुख देती हुई बारात शुभ मुहूर्त में अयोध्यापुरी के समीप आ पहुंची। जबकि वीएचपी ने ये बारात ऐसे वक्त में निकाली है जब दिशाशूल चल रहा है यानी राम के जीवन को लेकर सबसे प्रामाणिक ग्रंथ माने जाने वाले रामचरित मानस में बारात के रूट का वर्णन नहीं है..लेकिन दूसरी लोकमान्यताओँ में बारात के मार्ग को लेकर जो सबसे ज्यादा प्रचलित मार्ग है उसका वीएचपी अनुसरण नहीं कर रही है। इतना ही नहीं अयोध्या में जो चौरासीकोस परिक्रमा का आयोजन था उसमें भी वीएचपी ने समय का ध्यान नहीं रखा...यानी बेवक्त आयोजन किया। अब सवाल ये कि फिर क्या खुद को सांस्कृतिक संगठन मानने वाली वीएचपी का पूरा एजेंडा राजनीतिक है। आखिर ऐसा हर बार क्यों होता है कि चुनावों के ठीक पहले वीएचपी को राम की याद आ जाती है। 2009 के लोकसभा चुनावों के पहले वीएचपी ने मंदिर राग छेड़ा था तो 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले भी यूपी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले भी वीएचपी ने मंदिर मुद्दे को गरमाने की कोशिश की थी तो वहीं एक बार फिर जबकि बिहार और यूपी के चुनावों में कुछ सालों का वक्त बाकी रह गया है वीएचपी नई मुहिम पर चल पड़ी है।