दिल्ली में सिर्फ ग्रीन पटाखे, यानी पटाखों पर बैन- सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते के आदेश की व्याख्या करते हुए यह कहा है कि दिल्ली में सिर्फ ग्रीन पटाखों का ही इस्तेमाल हो सकेगा.
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा 23 अक्टूबर के आदेश में तब्दीली करते हुए तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में दिन के दो घंटे पटाखे चलाने की अनुमति दे दी गई है. इस दिवाली अब उत्तर भारत में रात को और दक्षिण भारत में दिन को सिर्फ दो घंटे ही पटाखे चलेंगे. बिहार, पूर्वांचल, दिल्ली और मुंबई में छठ पर्व पर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पटाखे चलाने के लिए क्या सुप्रीम कोर्ट से अब नए आदेश जारी होंगे?
दिल्ली में सिर्फ ग्रीन पटाखे, यानी पटाखों पर बैन- सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते के आदेश की व्याख्या करते हुए यह कहा है कि दिल्ली में सिर्फ ग्रीन पटाखों का ही इस्तेमाल हो सकेगा. कम धुएं और कम शोर वाले ग्रीन पटाखों में लेड, मरकरी जैसे रसायन नहीं होने चाहिए, जिनका पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पीईएसओ) द्वारा प्रमाणन होगा. नेशनल एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीयूट (नीरी) की नागपुर लैब द्वारा बनाए जा रहे ग्रीन पटाखों को स्वास, सफल और स्टार नाम दिया गया है, जिनकी बिक्री अब दिवाली बाद ही संभव हो सकेगी. तो क्या इस साल दिल्ली में पटाखे फिर नहीं चल सकेंगे?
सरकार और एमसीडी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना क्यों- दिल्ली में ग्रीन पटाखों के सामूहिक इस्तेमाल के लिए सरकार द्वारा मैदान और पार्कों में जरूरी इंतजाम के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए केन्द्र सरकार ने दिल्ली पुलिस, दिल्ली प्रशासन और एमसीडी के अधिकारियों के साथ मीटिंग की है.
समाचारों के अनुसार उत्तरी एमसीडी ने दीवाली की रात 8 से 10 बजे के दौरान पटाखे चलाने के लिए 119 कम्यूनिटी हॉल और 3625 पार्कों का चयन किया है. पूरी दिल्ली में लगभग 500 कम्यूनिटी हॉल और 10 हजार पार्कों में पटाखों के सामूहिक इस्तेमाल की अनुमति दी जा सकती है. पीईएसओ द्वारा प्रमाणित ग्रीन पटाखे तो दिवाली तक बन नहीं पाएंगे, इसलिए दिल्ली में लगभग 50 लाख किलो पटाखों के स्टाक को ग्रीन पटाखा के नाम पर बेचा जा रहा है. तो क्या इस दिवाली में सरकारी इन्तजाम के तहत सार्वजनिक स्थानों पर बैन किए गए पटाखों का इस्तेमाल किया जाएगा? सुप्रीम कोर्ट के आदेश के सामूहिक उल्लंघन के लिए क्या इलाके के थानेदार के साथ दिल्ली के सरकारी अधिकारी भी जवाबदेह होंगे?
सभी राज्यों का पक्ष सुने बगैर, थानेदारों पर अवमानना की तलवार क्यों
फैसले में यह कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने की जवाबदेही स्थानीय थानेदार या एसएचओ पर होगी. पिछले तीन सालों से सुनवाई के बावजूद सभी राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित पक्ष नहीं रखा तो फिर पुलिस द्वारा आदेश का क्रियान्वयन कैसे होगा? गली-मोहल्लों में बच्चों द्वारा पटाखे फोड़ने पर थानेदार द्वारा किस कानून के तहत कार्रवाई और गिरफ्तारी होगी? आदेश लागू नहीं होने पर क्या देशभर के थानेदारों के विरुद्ध अदालती अवमानना का मामला चलेगा?
नए फैसले की बजाय पुराने कानूनों पर अमल का आदेश क्यों नहीं
तीन बच्चों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर तमाम सांसदों द्वारा सवालिया निशान खड़ा करना संवैधानिक व्यवस्था के लिए घातक है. पर्यावरण की दृष्टि से बेहतरीन पहल होने के बावजूद, न्यायिक कसौटी के लिहाज से सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अनेक खामियां हैं.
सवाल यह है कि इस फैसले की बजाय पुराने कानूनों पर अमल का सिस्टम क्यों नहीं दुरुस्त किया जाता?
वर्तमान नियमों के अनुसार रात दस बजे के बाद तेज ध्वनि में संगीत के साथ पटाखों का भी इस्तेमाल नहीं हो सकता. पटाखों की बिक्री सिर्फ लाइसेंसी दुकानदारों द्वारा की जा सकती है और इन्हें ऑनलाइन भी नहीं बेचा जा सकता. सार्वजनिक स्थानों और पार्कों में भी पटाखों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध के साथ, इस बारे में एनजीटी के भी अनेक आदेश हैं. वर्तमान नियमों के बारे में जनता और पुलिस को जागरूक करने की बजाय, हर साल पारित किए जा रहे अस्पष्ट आदेशों से सुप्रीम कोर्ट की साख दांव पर लगना, लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है.
चुनावी साल में विवादों के घेरे में सुप्रीम कोर्ट
चुनावी साल में राजनेताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की अवज्ञा करने से संवैधानिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो सकती है. दिल्ली में सील तोड़ने के लिए भाजपा नेता मनोज तिवारी के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की कार्यवाही में कई राउण्ड की बहस के बाद निर्णय सुरक्षित हो गया.
सुप्रीम कोर्ट के पास अयोध्या विवाद जैसे राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर जल्द सुनवाई का समय नहीं है तो पटाखे जैसे छुट-पुट हजारों मामलों पर अवमानना की कार्रवाई कैसे होगी? अवमानना के डंडे से डराने के बावजूद पटाखों पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश यदि देशभर में लागू नहीं हो पाया तो इससे हुई संवैधानिक व्यवस्था को हुई क्षति के लिए किसकी जवाबदेही होगी?