चीन की सरकार हर उस देश को अपना नंबर एक दुश्मन मानती है, जो ताइवान को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देता है.
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चीन की सरकार हर उस देश को अपना नंबर एक दुश्मन मानती है, जो ताइवान को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देता है. इसी तरह, अगर कोई देश ये मांग करेगा कि तिब्बत को एक संप्रभु देश के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, तो चीन उसका बहुत तीखा विरोध करेगा. सच्चाई ये है कि चीन, तिब्बत पर अपनी मजबूत पकड़ रखता है और किसी भी विदेशी को तिब्बत की यात्रा करने की इजाजत नहीं देता ताकि वो वहां के हालात न देख सके.
चीन की ताइवान पर कब्जा करने और तिब्बत पर अपने कब्जे को मजबूती से रखने की महत्वाकांक्षा बीजिंग की विस्तारवादी योजनाओं का पुख्ता प्रमाण है.
चीन और जर्मनी के व्यवहार में समानता
वर्तमान की चीन सरकार और दूसरे विश्व युद्ध से पहले हिटलर के जर्मनी के व्यवहार में बहुत समानता है. वर्तमान चीन की सरकार और हिटलर के जर्मनी में ये समानता है कि वे किसी भी कीमत पर दुनिया के बाकी हिस्सों पर हावी होने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिए दूसरे देशों के लिए नैतिकता या नैतिक सिद्धांतों और उनके साथ निष्पक्ष व्यवहार के लिए बहुत कम फिक्र करते हैं.
जिस तरह दुनिया के कई देश अब चीन को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं, उसी तरह दूसरे विश्व युद्ध से पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री चेम्बरलेन ने भी हिटलर को खुश करने के लिए जर्मनी का दौरा किया था. चर्चिल ने इसे हिटलर का झांसा बताया था, जो अब इतिहास की बात है.
अब तक, चीन, ताइवान पर अपना अधिकार नहीं जमा सका है, क्योंकि ताइवान को अमेरिकी सरकार की ओर से भारी सुरक्षा दी गई है और चीन जानता है कि ताइवान को हड़पने का कोई भी कदम उठाने का अंजाम अमेरिका के साथ युद्ध होगा.
दूसरी तरफ, तिब्बत पर हमला करने और इस क्षेत्र पर आक्रामक रूप से कब्जा करने के लिए चीन को प्रोत्साहित किया गया था और चीन ने तिब्बती प्रदर्शनकारियों को हिंसक रूप से दबा दिया था, क्योंकि तिब्बत को दुनिया के किसी भी देश से सार्थक तरीके से न तो समर्थन मिला और न ही संरक्षण. नतीजतन, चीन ने तिब्बत पर कब्जा करना जारी रखा है और दुनिया चुप है क्योंकि तमाम सरकारें चीन को खुश करना चाहती हैं और चीन के साथ अपने व्यापार और व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए इससे दोस्ती बनाए रखने में भलाई समझती हैं.
भारत-चीन युद्ध
चीन अब भारत में अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताने का दावा करता है और हजारों किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर अपना कब्जा जमाए है, जिसे उसने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान हड़प लिया था. इसके अलावा, आक्रामक मुद्राएं अपनाने वाला चीन अब दक्षिण चीन सागर के द्वीपों और सेनकाकू द्वीप में जापान, फिलीपींस, वियतनाम और अन्य देशों के विरोध के बावजूद अपने मालिकाना हक का दावा करता है.
तिब्बत पर आक्रामक तरीके से कब्जा जमाने, भारतीय क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर के द्वीपों पर दावा करने के साथ-साथ ताइवान पर दावा ठोकने वाले चीन को अब तक दुनिया के किसी भी देश की तरफ से असरदार ढंग से चुनौती नहीं दी गई है.
दुनिया के ज्यादातर देशों के गैर-जिम्मेदाराना रवैये के कारण चीन को अपने क्षेत्र और प्रभाव वाले क्षेत्रों का विस्तार जारी रखने के लिए प्रोत्साहन मिलता है. हालांकि दुनिया भर में तिब्बतियों की आवाज जोर से नहीं सुनी जा रही है, लेकिन ऐसे देश भी हैं जो कभी-कभी ताइवान के समर्थन में आवाज उठाते हैं.
ताइवान काफी पहले ही चीनी वायरस के बारे में दुनिया के सामने खुलासा कर चुका है लेकिन डब्ल्यूएचओ ने ताइवान की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया क्योंकि ताइवान डब्ल्यूएचओ का सदस्य नहीं है. अब, ताइवान को डब्ल्यूएचओ के सदस्य के रूप में शामिल करने की सुगबुगाहट तेजी से सुनी जा रही है.
न तो ताइवान और न ही तिब्बत यूएनओ का सदस्य है, इससे साफ है कि यूएनओ इन क्षेत्रों को संप्रभु देशों के रूप में मान्यता नहीं देता है.
ताइवान और तिब्बत और दूसरे क्षेत्रों पर चीन के दावे से चीन की सरकार की मानसिकता का पता चलता है और ये निश्चित रूप से लंबे समय में दुनिया में स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है. जहां चाहे जाने और कुछ भी करने की छूट के साथ ये बहुत मुमकिन है कि चीन आने वाले दिनों में दूसरे देशों पर भी दावे कर सकता है, जिसे दुनिया को रोकना होगा.
ताइवान और तिब्बत चीन के नाजायज क्षेत्रीय दावों के दो टेस्ट केस हैं, जिनको लेकर दुनिया के बाकी हिस्सों से बहुत कम विरोध होता है. ये बहुत जरूरी है कि ताइवान और तिब्बत को संप्रभु देशों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, जो चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं को कम करने और उसे पराजित करने के लिए एक आवश्यक कदम है.
संयुक्त राष्ट्र संगठन अपनी वर्तमान संरचना और कामकाज के तरीके से ताइवान और तिब्बत को इंसाफ दिलाने की स्थिति में नहीं है.
आज, चीन की कार्यप्रणाली और चाल-चलन के बारे में दुनिया में संदेह बढ़ रहा है. ये तथ्य कि चीन ने वुहान वायरस के बारे में जानकारी छिपाई और सही समय पर इसको लेकर दुनिया को पहले से आगाह नहीं किया, ये साबित करता है कि चीन गैर जिम्मेदाराना व्यवहार दिखा सकता है. आज, COVID 19 संकट के कारण दुनिया में जो विनाश हो रहा है, उसके लिए सीधे तौर पर विश्व समुदाय के कल्याण के प्रति चीन का उदासीन रवैया है.
निश्चित रूप से, किसी को ये नहीं सोचना चाहिए या कहना चाहिए कि चीन को अस्थिर किया जाए. लेकिन, निश्चित रूप से, ये सोच बढ़ रही है कि अब चीन को दुनिया को अस्थिर करने से रोका जाना चाहिए और अन्य देशों पर कब्जा करने के उसके आक्रामक तरीकों का कड़ा विरोध किया जाना चाहिए.
चीन के क्षेत्रीय विस्तार की योजना के खिलाफ इस तरह के विश्वव्यापी विरोध की शुरुआत करने का पहला मकसद ताइवान और तिब्बत को स्वतंत्र और संप्रभु देशों के रूप में मान्यता देना है. इससे चीन का घमंड टूटेगा और वश में आएगा.
(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)