एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले इस खिलाड़ी के पास आज भी अपना घर नहीं है
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एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले इस खिलाड़ी के पास आज भी अपना घर नहीं है

एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले दत्तू बब्बन भोकानल कुएं की खुदाई से लेकर प्याज बेचने और पेट्रोल पंप पर भी काम कर चुके हैं. 

दत्तू भोकानल ने एशियन गेम्स में रोइंग में गोल्ड मेडल जीता था. (फोटो: PTI)

नई दिल्ली. ज्यादातर भारतीय खेलप्रेमी दत्तू बब्बन भोकानल को एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी के तौर पर जानते हैं. लेकिन ऐसे बहुत कम लोग हैं, जिन्हें इनके संघर्ष के बारे में भी पता हो. हममें से बहुत कम लोग जानते हैं कि भोकानल दत्तू इंटरनेशनल लेवल पर सफल होने से पहले कुएं की खुदाई से लेकर प्याज बेचने और पेट्रोल पंप पर भी काम कर चुके हैं. 

दत्तू के संघर्ष का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने जब रियो ओलंपिक में हिस्सा लिया था, तब उनकी मां कोमा में थी. भोकानल दत्तू महाराष्ट्र में नासिक के पास चांदवड गांव के निवासी हैं. अपने परिवार के सबसे बड़े बेटे दत्तू उस वक्त पांचवीं कक्षा में थे, जब उन्होंने अपने पिता के साथ मजदूर बनकर कमाई करने का फैसला लिया. उनके परिवार में उनकी बीमार मां और दो छोटे भाई हैं. 

27 साल के दत्तू ने बताया, 'मैं 2004-05 में पांचवीं कक्षा में था, जब मेरा संयुक्त परिवार विभाजित हुआ. इसके बाद हम दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पा रहे थे. तब मैंने अपने पिता के साथ काम करने का फैसला लिया. मेरे पिता कुएं खोदने का काम करते थे. मैंने तब अपनी पढ़ाई जारी रखी और कई तरह के काम किए. शादियों में वेटर, खेती का, ट्रैक्टर चलाने आदि.'

दत्तू ने 2007 में स्कूल छोड़कर पेट्रोल पंप पर काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा, 'मुझे हर माह 3,000 रुपए मेहनताना मिलता था. अपने पिता के साथ काम दो वक्त की रोटी जुटा लेता था लेकिन 2011 में उनके निधन के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ गई.' दत्तू रात में पेट्रोल पंप पर काम करते थे. 2012 में सेना में भर्ती होने के बाद उनके जीवन का नया सफर शुरू हुआ. पेट्रोल पंप पर समय पर पहुंचने के लिए दत्तू स्कूल से दौड़कर जाते थे और इसी कारण उन्हें सेना में भर्ती होने में मदद मिली. 

दत्तू ने पानी के डर को हराते हुए अपने कोच के मार्गदर्शन में रोइंग का प्रशिक्षण शुरू किया. 2013 में उन्हें सेना के रोइंग नोड (एआरएन) में शामिल कर लिया गया. पुणे में छह माह के प्रशिक्षण के बाद उन्होंने राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में दो स्वर्ण पदक जीते और यहां से उनका आत्मविश्वास मजबूत हुआ।. बहरहाल, उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती 2016 में उनके सामने आई, जब एक दुर्घटना का शिकार होकर उनकी मां कोमा में चली गईं. इस मुश्किल समय में भी दत्तू ने खेल नहीं छोड़ा और ओलंपिक में लिया. 

इंडोनेशिया में हुए एशियन गेम्स में दत्तू ने क्वाड्रपल सिंगल्स इवेंट का गोल्ड जीता. उन्होंने कहा, 'फाइनल के दौरान मुझे 106 डिग्री बुखार था, लेकिन मैं अंदर से प्रेरित था।' इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने के बावजूद दत्तू इस बात को स्वीकार करने से नहीं हिचकिचाते हैं कि उनके पास अपना घर नहीं है. वे अब भी अपने छोटे भाइयों के साथ रहते हैं. दत्तू का लक्ष्य अब टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतना है.

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