Trending Photos
नई दिल्ली : 'होम ऑफ क्रिकेट' यानी लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड के पैवेलियन में तीन पूर्व भारतीय क्रिकेटरों के पोर्ट्रेट लगाए गए हैं. ये तीन महान खिलाड़ी हैं दिलीप वेंगसरकर, बिशन सिंह बेदी और कपिल देव
बीसीसीआई ने अपने टि्वटर अकाउंट पर भी इस पोर्ट्रेट को शेयर करते हुए इस बात की जानकारी दी. पिछले सप्ताह यहां श्रीलंकाई क्रिकेटर कुमार संगकारा और महेला जयवर्धने के पोर्ट्रेट भी लगाए गए. इससे पहले, लॉर्ड्स में ग्लेन मैक्ग्राथ, शेन वॉर्न और विवियन रिचर्ड्स के पोर्ट्रेट भी लग चुके हैं.
The portraits of three legendary #TeamIndia members at the @HomeOfCricket pavilion - Vengsarkar, @BishanBedi, @therealkapildev pic.twitter.com/TyU7Q1Sm5B
— BCCI (@BCCI) May 26, 2017
कपिल देव
लॉर्ड्स की बालकनी में वर्ल्ड कप उठाए कपिल देव या अपनी आउट स्विंग गेंदों से विपक्षी टीमों को छकाते कपिल, या जिंबाब्वे के खिलाफ नाबाद 175 रनों की पारी खेलने वाले कपिल उनकी हर पारी खास रही है.
टेस्ट में 5000 से ज्यादा रन और 400 से ज्यादा विकेट. वनडे में 3000 से ज्यादा रन और 250 से ज्यादा विकेट उनके नाम हैं. कपिल देव ने भारत की ओर से कुल 225 वनडे मैच खेले. इन मैचों में उन्होंने कुल 3783 रन बनाए. इस दौरान उनकी स्ट्राइक रेट 95.07 रही, यानी प्रति 100 गेंद पर 95.07 रन.
इस आंकड़े की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि कपिल ने अपना आखिरी वनडे मैच अक्टूबर, 1994 में खेला था, तब तक क्रिकेट की दुनिया में बल्लेबाजों का तूफानी दौर शुरू नहीं हुआ था.
उन्होंने वनडे में 3,979 गेंदों पर 3,783 रन बनाए थे. इसमें उन्होंने 291 चौके और 67 छक्के जमाए थे. अब इन 358 बाउंड्री को उनकी पारी से निकाल दें तो तो कपिल ने 3,621 गेंदों पर 2,217 रन बनाए.
जिन गेंदों पर वे चौके छक्के नहीं जमा पाए उस पर एक दो रन लेकर रन बनाने की उनकी दर 61.2 रही. क्रीज बदलने की रफ्तार की दर के मामले सहवाग और गिलक्रिस्ट भी उनसे पिछड़ गए क्योंकि कपिल अव्वल नंबर पर हैं.
184 टेस्ट पारियों में बल्लेबाजी करने के बावजूद वे कभी रन आउट नहीं हुए. इतना ही नहीं, 221 वनडे मैचों में बल्लेबाजी के दौरान वे महज 10 बार रन आउट हुए.
कपिल देव को अपने करियर में जितनी गेंदबाजी की, उतना कम ही तेज गेंदबाजों को मौका मिला है. इसके अलावा उन्हें लंबे समय तक अपने दम पर टीम इंडिया की तेज गेंदबाजी की बागडोर संभालनी होती थी. लेकिन अपने पूरे करियर में वे बेहद अनुशासित गेंदबाज रहे. अपने टेस्ट करियर में उन्होंने महज 20 बार ही नो बॉल फेंकी है.
बिशन सिंह बेदी
अपनी खास शैली के बाएं हाथ के स्पिनर बिशन सिंह बेदी भारत के महान स्निपरों में से एक थे. अपनी खास स्पिन गेंदबाजी से बेदी ने बल्लेबाजों को खासा परेशान किया है. उन्होंने कभी अपनी स्पिन गेंदों में स्पीड डाल दी तो कभी बाउंस करा दिया, कभी लेग ब्रेक गेंद डाल दी तो कभी और प्रयोग किया.
25 सितंबर 1946 को अमृतसर में जन्मे बिशन सिंह बेदी ने 15 साल की उम्र में ही प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेला.
उन्होंने अपने टेस्ट करियर में कुल 67 टेस्ट मैच खेले और 266 विकेट लिए. सिर्फ अनिल कुंबले और कपिल देव ने ही बेदी से ज्यादा टेस्ट विकेट लिए हैं. बेदी ने 22 टेस्ट मैचों में भारत की कप्तानी भी की. बिशन सिंह बेदी इंग्लिश काउंटी नॉर्थैम्पटनशायर की ओर छह साल खेले और दो बार एक सत्र में 100 विकेट लिए.
दिलीप वेंगसरकर
टीम इंडिया का पूर्व कप्तान दिलीप वेंगसरकर को कवर ड्राइव का मास्टर माना जाता था. वे इतनी खूबी से यह ड्राइव लगाते थे कि फील्डर्स को कोई मौका दिए बगैर गेंद बाउंड्री के पार नजर आती थी. महाराष्ट्र के राजापुर में 6 अप्रैल 1956 को जन्मे दिलीप बलवंत वेंगसरकर वर्ष 1983 में महान हरफनमौला कपिल देव के नेतृत्व में वर्ल्डकप चैंपियन बनी भारतीय टीम के सदस्य रहे हैं. 70 और 80 के दशक में सुनील गावस्कर, गुंडप्पा विश्वास के साथ वेंगसरकर को भी भारतीय बल्लेबाजी का स्तंभ माना जाता था.
वेंगसरकर ने 116 टेस्ट और 129 वनडे मैचों में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया. दोनों ही तरह के क्रिकेट में वे समान रूप से सफल रहे. 'कर्नल' के नाम से लोकप्रिय वेंगसरकर ने टेस्ट क्रिकेट में जहां 42.13 कके औसत 6868 रन बनाए जिसमें 17 शतक और 35 अर्धशतक शामिल रहे. वनडे क्रिकेट में भी एक शतक उनके नाम पर दर्ज है.
वेंगसरकर ने 129 मैचों में 34.73 के औसत से 3508 रन बनाए. सुनील गावस्कर की कप्तानी में वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ क्रिकेट सीरीज जीतने वाली भारतीय टीम में न सिर्फ वेंगसरकर शामिल थे बल्कि टीम इंडिया को चैंपियन बनाने में अहम योगदान दिया था. किसी भी टीम में मुख्य बल्लेबाज को ही तीसरे क्रम के बल्लेबाजी जिम्मेदारी सौंपी जाती है और 'कर्नल' ने भारतीय टीम के लिए यह जिम्मेदारी कई सालों तक संभाली.
क्रिकेट का मक्का कहा जाने वाला लॉर्ड्स मैदान तो वेंगसरकर का पसंदीदा था. यहां खेलना उन्हें इस कदर रास आता था कि उनके बल्ले से रन मानो अपने आप ही निकलने लगते थे. लॉर्ड्स में लगातार तीन शतक लगाने वाले वे पहले नॉन इंग्लिश बल्लेबाज हैं.
भारत की ओर से सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ जैसे बल्लेबाजों के नाम के आगे भी यह उपलब्धि दर्ज नहीं है. लॉर्ड्स मैदान के प्रति इस दीवानेपन के आलम के चलते ही उन्हें इस मैदान के टॉप 10 प्लेयर्स के एलीट क्लब में स्थान दिया गया. लॉर्ड्स मैदान पर वर्ष 1979 में वेंगसरकर ने 0 और 103, वर्ष 1982 में 2 और 157 तथा वर्ष 1986 में नाबाद 126 और 33 रन की पारी खेली. इस ऐतिहासिक ग्राउंड पर चार टेस्ट खेलते हुए उन्होंने 72.57 के औसत से 508 रन बनाए.
आखिरी बार दिलीप वर्ष 1990 में लॉर्ड्स मैदान में खेले, लेकिन शतक नहीं बना पाए. पहली पारी में उन्होंने 52 व दूसरी पारी में 35 रन बनाए. इसी कारण उन्हें 'लॉर्ड ऑफ लॉर्ड्स' कहा जाता था. इस शानदार बल्लेबाज ने 10 टेस्ट मैचों में भारत की कप्तानी भी की हालांकि कप्तानी में उन्हें बहुत अधिक सफलता नहीं मिल पाई. वेंगसरकर ने अपना आखिरी इंटररनेशनल मैच, टेस्ट के रूप में वर्ष 1992 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पर्थ में खेला,इसमें वे दोनों ही पारियां में 10 रन का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाए.