क्रिकेट में कुछ ऐसे नायाब खिलाड़ी हुए हैं जिनके रिकॉर्ड को तोड़ना हमेशा के लिए मुश्किल दिखाई देता है, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे कुछ खिलाड़ियों को अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिल पाता. ऐसे ही एक लीजेंड थे राजिंदर गोयल, जिनका जन्म 20 सितंबर के दिन, साल 1942 में हुआ था.
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Indian Cricket : क्रिकेट में कुछ ऐसे नायाब खिलाड़ी हुए हैं जिनके रिकॉर्ड को तोड़ना हमेशा के लिए मुश्किल दिखाई देता है, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे कुछ खिलाड़ियों को अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिल पाता. ऐसे ही एक लीजेंड थे राजिंदर गोयल, जिनका जन्म 20 सितंबर के दिन, साल 1942 में हुआ था. बाएं हाथ के इस स्पिनर के नाम रणजी ट्रॉफी में 637 विकेटों का रिकॉर्ड है. रणजी ट्रॉफी में इससे ज्यादा विकेट किसी गेंदबाज ने नहीं लिए हैं.
नेशनल टीम में नहीं मिला मौका
राजिंदर गोयल इसके बावजूद कभी भारत के लिए नहीं खेल पाए थे. फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उनके नाम 18.59 की औसत के साथ 750 विकेट हैं. फिर भी वह भारत के लिए क्यों नहीं खेल पाए थे? बिशन सिंह बेदी का समकालीन होना ही उनका बड़ा दुर्भाग्य था. प्रतिभा की कमी नहीं थी, यह किस्मत ही थी. इसलिए भारत के महानतम बाएं हाथ के गेंदबाज बिशन सिंह बेदी ने एक बार कहा था कि गोयल उनसे भी बेहतर गेंदबाज थे. बस मुझे भारत के लिए खेलने का मौका मिल गया था. ये सब किस्मत का खेल है.
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बिशन बेदी के साथ की बॉलिंग
पंजाब के नरवाना में जन्मे गोयल ने पहला रणजी मैच 1958-59 में साउथ पंजाब के लिए खेला था. इसके बाद उन्होंने हरियाणा और दिल्ली का प्रतिनिधित्व किया था. दिल्ली के लिए खेलते हुए उनको बेदी के साथ बॉलिंग करने का मौका मिला था. वह बेदी के कायल थे. मन में कोई कड़वाहट नहीं थी. इसलिए साल 2001 में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि भारत के लिए सिर्फ एक ही बाएं हाथ का स्पिनर उस समय खेल सकता था और वह बिशन सिंह बेदी ही थे.
एक बार आया मौका लेकिन...
एक बार 1974 में गोयल को बेदी की गैरमौजूदगी में टीम इंडिया में जगह बनाने का मौका मिला था. बेंगलुरु में हुआ यह मैच क्लाइव लॉयड की खतरनाक वेस्टइंडीज टीम से था. विवि रिचर्ड्स तब डेब्यू करने जा रहे थे. गोयल को यकीन था कि वह टीम में जगह बना लेंगे लेकिन जब प्लेइंग 11 की बारी आई तो उनका नाम नहीं था. आगे भी ऐसे मौके आए जब लगा कि वह भारत की ओर से खेलने के लिए कुछ ही कदम की दूरी पर खड़े हैं. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. हालांकि, हमेशा की तरह उन्होंने इसके लिए किसी को दोष नहीं दिया.
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कपिल देव भी थे मुरीद
कुछ ऐसी ही उनके लिए जिंदगी की डगर थी. जब जीवन के आखिरी दिनों में वह बीमार चल रहे थे तो एक बार सबको लगा कि वह ठीक हो चुके हैं. लेकिन एक दिन अचानक उनकी सांसें थम गई. उस समय उनके क्रिकेटर बेटे नितिन उनके साथ थे. उनका जीवन समाप्त होने से करीब 35 साल पहले उनका करियर समाप्त हुआ था. दिल्ली के अलावा उन्होंने हरियाणा के क्रिकेट में भी अहम योगदान दिया था. बिशन सिंह बेदी के अलावा उनके साथ खेलने वाले बड़े क्रिकेटर थे 'हरियाणा हरिकेन' कपिल देव. कपिल ने बताया था कि अगर तब आईपीएल होता तो गोयल को बहुत ज्यादा कीमत मिलती, क्योंकि जब वे लय में होते थे और पिच से थोड़ी भी मदद मिल रही होती थी तो उनको खेलना लगभग नामुमकिन था.
2020 में दुनिया को कहा अलविदा
साल 2020 में रोहतक में बीमारी के बाद उनका निधन हुआ था. बिशन सिंह बेदी और कपिल देव ने उनके निधन पर उनको एक पूर्ण गेंदबाज और शानदार इंसान के तौर पर याद किया था. वहीं, रोहतक वासी उनको एक सज्जन इंसान के रूप में याद करते हैं. जो बुढ़ापे में भी स्कूटर पर घूमा करते थे जबकि घर पर कार खड़ी रहती थी. बिशन सिंह बेदी के शब्दों में, "वह भगवान के बंदे थे." गुडप्पा विश्वनाथ के शब्दों में, 'वह भारत के लिए नहीं खेले तो क्या हुआ? वह तब भी एक चैंपियन थे.'