भारत की गोल्ड की सबसे बड़ी उम्मीद डिफेंडिंग चैंपियन नीरज चोपड़ा ने पेरिस ओलंपिक के भाला फेंक इवेंट में 89.45 के सीजन बेस्ट के साथ सिल्वर मेडल जीता. पाकिस्तान के अरशद नदीम ने ओलंपिक रिकॉर्ड के साथ गोल्ड अपने नाम किया.
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Neeraj Chopra Paris Olympics : भारत के स्टार भाला फेंक स्टार नीरज चोपड़ा ने पेरिस ओलंपिक में सिल्वर मेडल अपने नाम किया. पाकिस्तान के अरशद नदीम ने ओलंपिक रिकॉर्ड के साथ गोल्ड जीता. 26 साल के नीरज का दूसरा थ्रो ही, उनका एकमात्र वेलिड थ्रो रहा, जिसमें उन्होंने 89.45 मीटर फेंका. इसके अलावा उनके पांचों प्रयास फाउल रहे. वहीं, नदीम ने नया ओलंपिक रिकॉर्ड बनाते हुए दूसरा थ्रो ही 92.97 मीटर का फेंका. उन्होंने छठा और आखिरी थ्रो 91.79 मीटर का लगाया. नीरज चोपड़ा ट्रैक एंड फील्ड में बैक टू बैक ओलंपिक मेडल जिताने वाले पहले भारतीय बने हैं. नीरज चोपड़ा की स्टार एथलीट बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है. आइए जानते हैं कैसे वह भारत के स्टार एथलीट बन गए.
टोक्यो में गोल्ड, पेरिस में सिल्वर
नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड जीता था और भारत का दुनियाभर में परचम लहराया. हालांकि, इस बार पेरिस ओलंपिक में वह गोल्ड से चूक गए. नीरज ने 89.45 मीटर के साथ यह मेडल अपने नाम किया. बता दें कि नीरज चोपड़ा बचपन से इस खेल को लेकर जुनूनी नहीं थे. बचपन में नीरज चोपड़ा काफी हेल्दी थे. बस यहीं से उनके स्टार भाला फेंक खिलाड़ी बनने की कहानी शुरू हुई. आइए जानते हैं कैसे
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ऐसे शुरू हुआ स्टार बनने का सफर
नीरज चोपड़ा का जन्म 24 दिसंबर, 1997 को हरियाणा के पानीपत जिले के खंडरा गांव में हुआ था. उनके पिता सतीश कुमार किसान हैं और उनकी मां सरोज देवी गृहिणी हैं. तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े होने के नाते दो छोटी बहनों संगीता और सरिता के साथ काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. बचपन में चोपड़ा को अधिक वजन की समस्या थी. 11 साल की उम्र में उनका वजन लगभग 90 किलोग्राम था. अपने वजन को कंट्रोल करने में मदद करने के लिए, उनके पिता ने उन्हें पास के शहर मडलौडा में एक जिम में दाखिला दिलाया.
माता-पिता ने किया भरपूर सपोर्ट
नीरज के माता-पिता ने उनकी शारीरिक गतिविधि की जरूरत को सपोर्ट किया, जिससे चोपड़ा के जीवन ने एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया. पिता सतीश के साथ पानीपत के शिवाजी स्टेडियम की यात्रा ने नीरज को भाला फेंकने में इंटरेस्ट जगाया. रनिंग में कम दिलचस्पी होने के वाबजूद नीरज ने भाला फेंकने वालों को देखकर इस खेल को गंभीरता से अपनाने की प्रेरणा ली.
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पिता और परिवार का बड़ा रोल रहा
भाला फेंक में ट्रेनिंग से होने वाली फाइनेंशियल दिक्कतों को समझते हुए सतीश पिता ने चोपड़ा की महत्वाकांक्षाओं का समर्थन करने के लिए जरूरी प्रयास किए. किसान परिवार से आने के बावजूद उन्होंने अपने बेटे की ट्रेनिंग और डाइट संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किया. तीन चाचाओं सहित 19 सदस्यों के साथ एक संयुक्त परिवार में रहने से नीरज चोपड़ा को पूरी मदद मिली. पूरे परिवार ने उनके साथ खड़े होकर मार्गदर्शन किया और प्रोत्साहन दिया. जिसके दम पर वह आज देश पर परचम दुनियाभर में लहरा रहे हैं.
नीरज ने गाढ़े बुलंदियों के झंडे
सतीश कुमार ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था, 'हमारे परिवार में हम सभी ने सुनिश्चित किया कि नीरज को एक सफल भाला फेंक खिलाड़ी बनने के लिए गाइडेंस मिले. हमारे गांव ने भी उनका सपोर्ट किया और उनकी सफलता के लिए प्रार्थना की.' 2017 में भारतीय सेना में नौकरी मिलना चोपड़ा परिवार के लिए एक बड़ी राहत थी. चोपड़ा को नौकरी मिलने से स्टेबिलिटी आई. इसके बाद से नीरज चोपड़ा ने जेवलिन थ्रो में बुलंदियों के झंडे गाढ़े और पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज नीरज की पूरे देश में वाहवाही हो रही है.