Explainer: कभी फूलों का हार तो कभी तांबे का मेडल...ओलंपिक में ऐसा रहा पदकों का दिलचस्प सफर
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Explainer: कभी फूलों का हार तो कभी तांबे का मेडल...ओलंपिक में ऐसा रहा पदकों का दिलचस्प सफर

Olympic Medals History: ओलंपिक का आयोजन इस बार फ्रांस की राजधानी पेरिस में किया जा रहा है, जहां दुनिया भर के एथलीट अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने और स्वर्णिम पदक जीतने के लिए तैयार हैं.

Explainer: कभी फूलों का हार तो कभी तांबे का मेडल...ओलंपिक में ऐसा रहा पदकों का दिलचस्प सफर

Olympic Medals History: ओलंपिक का आयोजन इस बार फ्रांस की राजधानी पेरिस में किया जा रहा है, जहां दुनिया भर के एथलीट अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने और स्वर्णिम पदक जीतने के लिए तैयार हैं. भारत भी इस बार पूरी तरह से तैयार है और पिछले ओलंपिक में 7 मेडल जीतने का अपना रिकॉर्ड तोड़ने के लिए प्रयासरत है. इन ओलंपिक खेलों में दिए जाने वाले मेडल अपने आप में खास हैं. इनकी डिजाइन और निर्माण में इतिहास और आधुनिकता का अनोखा संगम देखने को मिलता है. 

पेरिस में मेडल का आकार और धातु

मेडल हेक्सागॉन (षट्भुज) आकार के होते हैं, जो फ्रांस के मानचित्र के छह कोनों का प्रतिनिधित्व करते हैं. प्रत्येक मेडल में एफिल टॉवर के मूल लोहे का एक टुकड़ा जड़ा गया है, जो इतिहास और स्थायित्व का प्रतीक है. ये टुकड़े दशकों से एफिल टॉवर के नवीनीकरण और रखरखाव के दौरान हटाए गए लोहे के संग्रह से लिए गए हैं. प्रत्येक टुकड़े को उसके मूल रंग में बहाल किया गया है और यह मेडल के केंद्र में बखूबी जड़ा हुआ है.

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क्या पूरे सोने का होता है मेडल?

ओलंपिक का गोल्ड मेडल शुद्ध सोने से नहीं बनता है. यह 92.5% चांदी और 1.34% सोने का बना होता है. इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी (IOC) के दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रत्येक स्वर्ण पदक में कम से कम 6 ग्राम सोना होना चाहिए. पेरिस में प्रत्येक स्वर्ण पदक का वजन 529 ग्राम होगा. 1912 के स्टॉकहोम खेलों में आखिरी बार ठोस सोने के पदक दिए गए थे.

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जैतून के फूल से रीसाइकल्ड धातु तक

दरअसल, ओलंपिक पदकों ने भी इन खेलों की तरह एक लंबा सफर तय किया है. जैतून के फूलों के हार से लेकर पुराने मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की रीसाइकल्ड धातु तक पहुंच गया है.

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प्राचीन काल से आधुनिक युग तक मेडल का सफर

जैतून के फूलों का हार: प्राचीन ओलंपिक खेलों में विजेता खिलाड़ियों को 'कोटिनोस' या जैतून के फूलों का हार दिया जाता था, जिसे यूनान में पवित्र पुरस्कार माना जाता था और यह सर्वोच्च सम्मान का प्रतीक था.

सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल: 1896 में एथेंस में ओलंपिक खेलों के पुनर्जन्म के साथ, विजेताओं को सिल्वर, जबकि उपविजेता को कॉपर (तांबा) या ब्रॉन्ज (कांस्य) का पदक दिया जाता था. मेडल के सामने देवताओं के पिता जीउस की तस्वीर थी, जिन्होंने नाइक को पकड़ा हुआ था.

गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज का आगमन: 1904 के सेंट लुई खेलों में पहली बार गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल का उपयोग किया गया. ये मेडल यूनानी पौराणिक कथाओं के शुरुआती तीन युगों का प्रतिनिधित्व करते थे.

डिजाइन में बदलाव: अगली एक शताब्दी में मेडल के आकार, आकृति, वजन, संयोजन और इनमें बनी छवि में बदलाव होता रहा.

1928 का डिजाइन: 1928 में इटली के कलाकार ज्युसेपी केसियोली द्वारा डिजाइन किया गया मेडल 2004 तक इस्तेमाल होता रहा.

मेजबान शहरों को छूट: 1972 म्यूनिख खेलों से मेजबान शहरों को मेडल के पिछले भाग में बदलाव करने की अनुमति दी गई.

2004 एथेंस ओलंपिक: 2004 एथेंस ओलंपिक में अगले भाग में नाइक का एक नया डिजाइन था, जो 1896 पैनाथेनिक स्टेडियम में विजेता को जीत दिलाने के लिए उड़ रही थी.

हार में लगातार बदलाव: 1960 रोम ओलंपिक से पहले तक, मेडल को विजेताओं की छाती पर पिन किया जाता था. 1960 के खेलों में उन्हें हार के रूप में पहना जाना शुरू हुआ, पहले चेन के साथ और फिर 1964 में रंगीन रिबन के साथ.

रीसाइकल्ड धातुएं: 2016 रियो खेलों में, पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता के मद्देनजर, आयोजकों ने मेडल में 30% रीसाइकल्ड धातु का उपयोग करने का फैसला किया. टोक्यो ओलंपिक भी इसी रास्ते पर चला.

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