16 साल के सौरभ चौधरी ने गुब्बारे पर निशना साधने से एशियाई खेलों में गोल्ड जीतने का सफर किया तय
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16 साल के सौरभ चौधरी ने गुब्बारे पर निशना साधने से एशियाई खेलों में गोल्ड जीतने का सफर किया तय

सौरभ के पिता जगमोहन चौधरी ने बताया कि उन्होंने सौरभ को निशानेबाजी के लिए मना कर दिया था. इसके बाद सौरभ नाराज हो गया और जिद पर अड़ गया. ऐसे में परिवार को उसकी जिद मानकर हां कहनी पड़ी. 

16 साल के सौरभ चौधरी ने एशियन गेम्स में जीता गोल्ड (PIC : PTI)

नई दिल्ली : गांव के मेले में गुब्बारे पर निशाना साधते समय सौरभ चौधरी एक दिन ओलंपिक निशानेबाजी में छाने का सपना देखा करते थे और इस बार एशियाई खेलों में स्वर्ण के साथ वह इसे साकार करने की दिशामें आगे बढ़ गए हैं. जानकारों का कहना है कि कंधे पर एयर रायफल लटकाए सौरभ जब नीले, पीले और लाल रंग के गुब्बारों पर निशॉना साधते थे, उन्हें लगता था कि वह अभिनव बिंद्रा हैं. इसके बाद समय आया जब सौरभ रात-दिन निशानेबाजी करने लगे और अंतर विद्यालय और अंतर राज्यीय प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेने लगे. उनका यह शौक धीरे धीरे जुनून में बदल गया और एक दिन वह राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में खेलने लगे. 

उनके किसान पिता जगमोहन सिंह ने (जिनके पास गांव में 20 एकड़ जमीन है) बेटे की अद्वितीय प्रतिभा को समझते हुए उसके लिए घर पर ही एक शूटिंग रेंज बना दी. स्कूल में पढ़ने वाले सौरभ ने घर की शूटिंग रेंज और उत्तर प्रदेश में अपने गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित बागपत में राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज अमित शेरॉन की अकादमी में अपने कौशल को निखारा. 

अपने बेटे के निखरते खेल से और प्रभावित होकर गन्ने की खेती करने वाले किसान पिता ने आखिरकार उसके लिए पिस्टल खरीद दी. नन्हे बच्चों जैसी शक्ल वाले, शराब पीने और गाड़ी चलाने की कानूनी वैध आयु से नीचे आने वाले 16 साल के खिलाड़ी ने जब स्वर्ण जीता तो शॉयद उन्हें पता भी नहीं था कि उन्होंने इस उम्र में कितनी बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इसलिए उनकी इस बात पर कोई हैरान नहीं हुआ जब सौरभ ने कहा कि पालेमबांग के शूटिंग रेंज में खेलते समय उन्हें ‘‘कोई दबाव महसूस नहीं हुआ’’. 

उन्होंने स्वर्ण जीतने के साथ देश-विदेश में खेल प्रेमियों को हैरान कर दिया. उन्हें कई बार के स्वर्ण पदक विजेता जीतू राय पर तरजीह देते हुए एशियाई खेलों की टीम में लिया गया था और यह उनका पहला प्रतिस्पर्धी सीनियर टूर्नामेंट था. 

सौरभ के खिलाफ मुकाबले में दो बार के विश्व विजेता जापान के तोमोयुकी मत्सुदा और चार ओलंपिक स्वर्ण एवं तीन विश्व चैंपियनशिप खिताब विजेता दक्षिण कोरिया के जिन जोंग ओह थे. लेकिन किशोर निशानेबाज ने सबको पीछे छोड़कर इतिहास रच दिया. उनकी इस उपलब्धि से इंडोनेशिया से काफी दूर उनके छोटे से गांव में उनके पिता और घर के बाकी लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे. 

सिंह ने कहा, ‘‘हमें गर्व महसूस हो रहा है क्योंकि उन्होंने देश को गौरवान्वित किया है.’’ हालांकि उन्होंने कहा, (उसे) अब भी लंबी दूरी तय करनी है. ’’

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निशानेबाजी के लिए घरवालों से बगावत कर बैठे थे सौरभ
एशियाई खेलों में भारत के लिए स्वर्ण जीतने वाले सबसे युवा एथलीट 16 साल के निशॉनेबाज सौरभ चौधरी का प्रतिस्पर्धी निशानेबाजी का सफर घरवालों से बगावत के साथ शुरू हुआ था. सौरभ ने जब घरवालों को बताया कि वह प्रतिस्पर्धी निशानेबाजी करना चाहते हैं तो उनके घर वाले इसके खिलाफ नजर आए. सौरभ को तो निशानेबाजी करनी थी और इसीलिए उन्होंने घरवालों से रार ठान ली. खाना-पीना छोड़ दिया. अंत में थक-हारकर घरवालों ने उन्हें इसकी इजाजत दे ही दी.  

सौरभ के पिता जगमोहन चौधरी ने बताया कि उन्होंने सौरभ को निशानेबाजी के लिए मना कर दिया था. इसके बाद सौरभ नाराज हो गया और जिद पर अड़ गया. ऐसे में परिवार को उसकी जिद मानकर हां कहनी पड़ी. 

बेटे की सफलता से खुश पिता ने कहा, "उसने 2015 में निशानेबाजी शुरू की. आस पड़ोस में कुछ बच्चे हैं. उनको देखकर उसको शौक हुआ. उसने आकर घर पर कहा, लेकिन हमने मना किया. हमने कहा कि पढ़ाई पर ध्यान दो. पढ़ाई और खेल साथ-साथ नहीं चल सकते. फिर वो गुस्सा हो गया. दो-तीन दिन तक गुस्सा ही रहा. खाना भी नहीं खाया. तो फिर हमने कहा कि ठीक है कर लो. हमने भी सोच लिया की जो होगा, सो होगा. इसे निशॉनेबाजी करने देते हैं. इसके बाद तो वह रुका नहीं. "

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सौरभ अभी 10वीं क्लास में है. उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने नौकरी देने का भी ऐलान कर दिया है. सौरभ के पिता ने कहा कि उन्हें अपने बेटे के पदक जीतने की उम्मीद थी. जगमोहन ने कहा, "पिछले दो साल से वह जहां भी खेला है, लगभग हर जगह से पदक के साथ लौटा है. चाहे वो राष्ट्रीय स्तर हो या अंतर्राष्ट्रीय स्तर, उसने अपनी प्रतिभा के साथ न्याय किया है. इसलिए उम्मीद थी कि पदक लेकर आएगा. लेकिन समय का भरोसा नहीं रहता कि कब बदल जाए. "

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