छह बार विंटर ओलंपिक गेम्स में हिस्सा ले चुके शिवा केशवन का सफर
Advertisement

छह बार विंटर ओलंपिक गेम्स में हिस्सा ले चुके शिवा केशवन का सफर

एथलीट शिवा ने खुद माना है कि उनका अब तक का सफर भारत में विंटर ओलंपिक गेम्स के आंदोलन को समर्पित है और वह इन खेलों को भारत में लोकप्रिय बनाने के लिए काम करते रहेंगे.

किसी आंदोलन से कम नहीं शिवा केशवन का अब तक का सफर (PIC : IANS)

नई दिल्ली : शिवा केशवन विंटर ओलंपिक गेम्स के दिग्गज एथलीटों में एक हैं. भारत का यह एथलीट ल्यूज में तब से सक्रिय है, जब इस स्पर्धा ने भारत में आधारिकारिक रूप नहीं लिया था. छह बार विंटर ओलंपिक गेम्स में हिस्सा ले चुके शिवा केशवन का अब तक का सफर भारत में विंटर ओलंपिक गेम्स के लिहाज से एक आंदोलन की तरह है. नगानो में हुए 1998 विंटर ओलंपिक गेम्स में पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले एकमात्र एथलीट शिवा ने खुद माना है कि उनका अब तक का सफर भारत में विंटर ओलंपिक गेम्स के आंदोलन को समर्पित है और वह इन खेलों को भारत में लोकप्रिय बनाने के लिए काम करते रहेंगे.

  1. ल्यूजर शिवा केशवन विंटर ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था
  2. केशवन ने एशियाई ल्यूज चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था
  3. केशवन ने 1998 में जापान में नागानो में पदार्पण किया था

हैरानी की बात है लेकिन यह सच है कि शिवा केशवन इस खेल में तब से शामिल हैं, जब से भारत में इसका नामो-निशान तक नहीं था. उस समय इसके लिए कोई आधिकारिक प्रतियोगिता नहीं थी. 

इस खेल के प्रति जुनून पाल चुके शिवा केशवन ने आधारभूत सुविधाओं के अभावों के बावजूद अपना प्रयास जारी रखा और 1988 विंटर ओलंपिक गेम्स में पहली बार हिस्सा लिया. शिवा उस समय 16 साल के थे. 

ल्यूग में अपने प्रशिक्षण के बारे में शिवा ने ओलम्पिक डॉट ओआरजी वेबसाइट से कहा, "मैंने जब प्रशिक्षण की शुरुआत की थी, तब हमारे पास कोई सुविधा, कोचिंग और उपकरण नहीं थे. अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सब चीजें नए सिरे जुटानी पड़ीं. 'कूल रनिंग' फिल्म से मदद लेकर हमने स्लेज को नया रूप देकर तैयार किया, ताकि हम इसे हाईवे पर इस्तेमाल कर सकें. भारत की सड़कों पर ट्रैफिक और गड्ढे मेरे लिए चुनौती थे लेकिन ये मेरे सफर का हिस्सा थे. मुझे लगता है कि हर चुनौती ने मुझे और भी मजबूती से आगे बढ़ने में मदद की."

इस मेहनत का फल भी शिवा को मिला. वह विंटर ओलंपिक गेम्स के इतिहास में सबसे युवा ल्यूग ओलम्पियन बने. 1988 विंटर ओलंपिक गेम्स में हिस्सा लेने पर उन्होंने कहा, "मेरा सपना पूरा हो गया था. टेलीविजन पर जिन एथलीटों को देखता था, उनके साथ स्वयं को प्रतिस्पर्धा करते देखने का अहसास अलग था. एक बार शीतकालीन खेलों में मेरे देश का ध्वज मेरे हाथ में था और उसके बाद मैंने कभी खुद को अकेला नहीं समझा, क्योंकि मैं जानता था कि अपने देश के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं. इससे मुझे आत्मविश्वास मिला."

शिवा ने कहा कि वह अब नई पीढ़ी के लिए उदाहरण पेश कर सकते हैं, क्योंकि अब एथलीटों के लिए यह महत्वपूर्ण हो गया है कि वह इस जिम्मेदारी को संभाले. देश के लोगों की नजर आप पर है. 

fallback

विंटर ओलंपिक गेम्स के प्रति युवाओं को जागरूक करने के लिए शिवा ने अब नेशनल टेलेंट स्काउट नाम से कार्यक्रम चला रहे हैं. इसके तहत शिवा अपने रोलर स्लेज के साथ गांव-गांव और स्कूलों में जाते हैं और उन्हें इस खेल का अनुभव लेने का मौका देते हैं. शिवा का मानना है कि बच्चों में शीतकालीन खेलों के प्रति बेहद जुनून है और इसीलिए उनका ध्यान स्थायी विकास कार्यक्रम के निर्माण पर है. यहां उनका लक्ष्य भी है. 

शिवा ने कहा, "ओलंपियन होना अब सम्मान की बात है. आप चाहें जिस खेल में ओलम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व करते हो, आपका सम्मान होता है. मैं इन युवाओं को यही समझाने का प्रयास कर रहा हूं कि वे इस खेल को अपनाएं और इसके माध्यम से अपने लिए तथा देश के लिए सम्मान हासिल करने का प्रयास करें. "

Trending news