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देश के करोड़ों युवाओं में अपार ऊर्जा का संचार करने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने हालिया औपचारिक टेलिविजन इंटरव्यू से पार्टी कार्यकर्ताओं और युवाओं को निराश किया है। सोशल नेटवर्किंग साइटों पर युवाओं की प्रतिक्रियाएं इस बात का तस्दीक करती हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने राहुल की छवि चमकाने के लिए बहुत सोच-विचार कर इस इंटरव्यू की रूपरेखा तैयार की थी, लेकिन राहुल के जवाबों ने खुद कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने उम्मीद की होगी कि राहुल इस इंटरव्यू के जरिए विभिन्न मसलों पर अपनी राय बेबाकी और प्रभावी तरीके से रखेंगे। वह उन मसलों (भ्रष्टाचार, महंगाई) पर सीधे और स्पष्ट राय रखेंगे जो आगामी लोकसभा चुनाव में लोगों को प्रभावित करने जा रहे हैं। लेकिन वह इन मुद्दों पर बोलने की बजाय महिला सशक्तिकरण, ऊर्जावान युवा, व्यवस्था परिवर्तन और आरटीआई पर ही मुखर रहे। राहुल भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार और इस पद की तरफ रोज एक कदम आगे बढ़ने वाले नरेंद्र मोदी को चुनौती देने से बचते नजर आए। जबकि नरेंद्र मोदी राहुल या कांग्रेस पार्टी को घेरने का एक भी मौका हाथ से छूटने नहीं देते। मोदी ने अपनी हर रैली में राहुल के ऊपर तंज कसा है और कांग्रेस पार्टी को चुनौती दी है।
लेकिन राहुल अपने इंटरव्यू में ऐसा कोई भी विमर्श पैदा नहीं कर पाए जो भाजपा या नरेंद्र मोदी के माथे पर शिकन पैदा कर सके। उल्टे राहुल ने 1984 के सिख दंगों में कुछ कांग्रेसी नेताओं की भूमिका की बात स्वीकार कर भाजपा को बैठे-बिठाए मुद्दा दे दिया। दरअसल, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी करीब एक दशक के अपने राजनीतिक करियर में सियासी जोड़-तोड़ और तीन-तिकड़म को सीख नहीं पाए, वह तथ्यों को चतुराई से अपने पक्ष में भी नहीं रख पाते हैं। वह 1984 के सिख दंगों के बारे में कांग्रेस पार्टी की लाइन ही बोल गए होते तो शायद यह झमेला नहीं खड़ा होता। लेकिन बातचीत की रव में राहुल वह सच्चाई बयां कर गए जिससे कांग्रेस पार्टी हमेशा इंकार करती आई है।
राहुल का यह बयान अब उनके और उनकी पार्टी के लिए मुश्किल का सबब बन गया है। राहुल के बयान के खिलाफ दिल्ली में सिख संगठन सड़कों पर उतर आए हैं। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि राहुल सीबीआई की सामने पेश हों और उन कांग्रेसी नेताओं के नाम बताएं जो सिख विरोधी दंगों में शामिल थे।
दूसरा, राहुल ने अपने इंटरव्यू में 2002 के गुजरात दंगों के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार बताया है। राहुल ने कहा कि ‘मोदी उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री थे। 1984 और गुजरात के दंगों में यही मुख्य अंतर है कि गुजरात दंगों में वहां की सरकार शामिल थी।’ गौर करने वाली बात है कि राहुल के इस बयान का विरोध कांग्रेस की सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने किया है। राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा है कि मोदी को कानूनी तौर पर क्लीन चिट मिल गई है तो उनपर आरोप लगाना उचित नहीं है। यानी गुजरात दंगे जिसे कांग्रेस पार्टी मोदी के खिलाफ अपना सबसे बड़ा हथियार मानती रही है, इसे आगे भी लेकर चलती रही तो आने वाले समय में उसका अपने ही सहयोगी पार्टियों से टकराव हो सकता है।
कांग्रेस को ऐसा लग रहा है कि 1984 के सिख विरोधी दंगों को चर्चा के केंद्र में लाकर राहुल ने मोदी के खिलाफ उसकी रणनीति को कमजोर किया है। आगामी चुनावों तक कांग्रेस गुजरात दंगों को लेकर मोदी पर हमलावर रहती, लेकिन सिख दंगों पर बात होने पर उसे बैकफुट पर आना होगा और मोदी को ‘कम्यूनल’ बताने से पहले उसे खुद को पाक-साफ पेश करना होगा। राहुल के इस पहले औपचारिक इंटरव्यू से कांग्रेसी खेमे में निराशा का माहौल है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि राहुल सवालों का जवाब ठीक तरीके से नहीं दे पाए और इंटरव्यू के दौरान कई दफे वह ‘नर्वस’ भी दिखे।
बहरहाल, राहुल का यह पहला औपचारिक इंटरव्यू था और इंटरव्यू लेने वाला शख्स भी टेलीविजन की दुनिया का दिग्गज एंकर था। राहुल इस तरह के इंटरव्यू के आदी नहीं हैं। ऐसे में तमाम तैयारियों के बावजूद भी कुछ कोर-कसर बाकी रह जाती है। उम्मीद है कि आने वाले समय में राहुल और कई औपचारिक इंटरव्यू देंगे और तब उनसे इस तरह की चूक नहीं होगी।