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काबुल: अफगानिस्तान (Afghanistan) में रहने वाले सिखों (Sikh) की स्थिति दिन ब दिन खराब होती जा रही है. अब उनके पास व्यावहारिक रूप से दो ही विकल्प रह गए हैं, या तो वे इस्लाम काबुल कर लें या मुल्क छोड़ दें. इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट्स एंड सिक्योरिटी की रिपोर्ट में यह बात कही गई है. वैसे, अफगानिस्तान में अशरफ गनी सरकार के पतन से पहले भी सिखों की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन अब हालात ज्यादा खराब हो गए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, कट्टरपंथियों ने स्पष्ट कर दिया है कि या तो सिख सुन्नी मुसलमान बन जाएं या देश छोड़ दें. बता दें कि अफगानिस्तान में सिखों की संख्या कभी हजारों में थी, लेकिन धीरे-धीरे कम होती गई. यहां उन्हें व्यवस्थागत भेदभाव का सामना करना पड़ता है और उन्हें धार्मिक हिंसा का भी शिकार बनाया जाता है. इस देश में सिखों की बड़ी आबादी काबुल में रहती है, जबकि कुछ गजनी और नांगरहार प्रांतों में भी रहते हैं. पांच अक्टूबर को 15 से 20 आतंकियों ने गुरुद्वारे में घुसकर गार्डों को बांध दिया था. यह हमला काबुल के कार्त-ए-परवान जिले में हुआ था. अफगानिस्तान में सिख अक्सर इस तरह के हमलों और हिंसा का अनुभव करते हैं.
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अफगानिस्तान में कई सिख विरोधी हमले हो चुके हैं. पिछले साल जून में कथित तौर पर अफगान सिख नेता का अपहरण कर लिया गया. मार्च 2019 में एक अन्य सिख का अपहरण कर लिया गया और उसकी हत्या कर दी गई. बाद में अफगान पुलिस ने घटना के संदेह में दो लोगों को गिरफ्तार किया था. इसके अलावा कंधार में एक अन्य सिख को अज्ञात बंदूकधारियों ने भून डाला था.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने शुक्रवार को कहा कि पूरे अफगानिस्तान में तालिबान प्रशासन के अधिकारी लोगों को जबरन उनकी संपत्ति से बेदखल कर रहे हैं. उनका मकसद अपने समर्थकों को जमीन वितरित करना है. संगठन ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि जमीन से बेदखल करने में खासतौर से हजारा शिया समुदाय और पूर्ववर्ती सरकार से जुड़े लोगों को निशाना बनाया जा रहा है.