मोदी के पहले साल पर अमेरिकी मीडिया का आलोचनात्मक रूख
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मोदी के पहले साल पर अमेरिकी मीडिया का आलोचनात्मक रूख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार का आज एक साल पूरा हो गया और अमेरिकी मीडिया ने मोदी सरकार की उपलब्धियों पर आलोचनात्मक रूख जाहिर करते हुए कहा है कि उनका महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ अभियान अब तक ज्यादातर सुखिर्यों में ही रहा है और भारी अपेक्षाओं के बीच रोजगार में वृद्धि धीमी बनी हुई है।

न्यूयॉर्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार का आज एक साल पूरा हो गया और अमेरिकी मीडिया ने मोदी सरकार की उपलब्धियों पर आलोचनात्मक रूख जाहिर करते हुए कहा है कि उनका महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ अभियान अब तक ज्यादातर सुखिर्यों में ही रहा है और भारी अपेक्षाओं के बीच रोजगार में वृद्धि धीमी बनी हुई है।

मोदी के भारतीय प्रधानमंत्री के तौर पर एक साल पूरा होने पर वाल स्ट्रीट जर्नल में एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसका शीर्ष ‘इंडियाज मोदी एट वन ईयर : ‘यूफोरिया फेज’ इज ओवर, चैलेंजेस लूम’’ है। वाल स्ट्रीट जर्नल की खबर में कहा गया है ‘‘बदलाव और आर्थिक पुनर्जीवन के लिए पूर्ण बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी को भारतीय मतदाताओं द्वारा जनादेश दिये जाने के बाद वास्तविकताएं लगभग वहीं की वहीं हैं।’ इसमें कहा गया है कि विनिर्माण क्षेत्र के तीव्र विकास के उद्देश्य से शुरू किया गया मोदी का ‘मेक इन इंडिया’ अभियान अब तक ज्यादातर चर्चाओं में ही रहा है। लेख में कहा गया है कि निर्यात जैसे आर्थिक मानक बताते हैं कि अर्थव्यवस्था अभी भी लड़खड़ा रही है।

वाल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा है कि पिछले साल पूंजीगत निवेश के लिए मुद्रास्फीति समायोजित उधारी 2004 के बाद के सबसे निचले स्तर पर आ गई और निर्यात अप्रैल में लगातार पांचवे माह गिरा है। वहीं कंपनियों की आय मामूली रही है और विदेशी संस्थागत निवेशकों ने मई में अभी तक भारतीय शेयर व बांड बाजारों से करीब 2 अरब डालर की निकासी की है। न्यूयार्क टाइम्स ने एक समाचार विश्लेषण में कहा कि ‘ विदेश से देखें तो भारत उभरता हुआ सितारा नजर आ रहा है और इस साल इसके चीन से भी आगे निकलकर विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है। लेकिन भारत में रोजगार की वृद्धि सुस्त बनी हुई है, कारोबारी इंतजार करो और देखो का रख अपना रहे हैं।’ अखबार ने लिखा है,‘ मोदी को राजनीतिक जोखिम का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि विपक्षी दलों के नेताओं ने उनके दो प्रमुख सुधारों को रोक दिया है और उन पर ‘गरीब विरोधी व किसान विरोधी’ होने का आरोप लगा रहे हैं।’

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