डिटेंशन कैंप में चीन के टॉर्चर की दिल दहलाने वाली दास्तां, जानिए शख्स की आपबीती
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डिटेंशन कैंप में चीन के टॉर्चर की दिल दहलाने वाली दास्तां, जानिए शख्स की आपबीती

 चीन (China) के शिनजियांग (xinjiang) में रहने वाले उइगर मुसलमानों के साथ होने वाली ज्यादती और अमानवीय व्यावहार किसी से छुपा नहीं है. शिनजियांग में चल रहे इन डिटेंशन कैंप (Detention Camp) को लेकर पूरी दुनिया में विरोध होने शुरू हो गए हैं. 

फाइल फोटो

नई दिल्ली: चीन (China) के शिनजियांग (xinjiang) में रहने वाले उइगर मुसलमानों के साथ होने वाली ज्यादती और अमानवीय व्यवहार किसी से छुपा नहीं है. शिनजियांग में चल रहे इन डिटेंशन कैंप (Detention Camp) को लेकर पूरी दुनिया में विरोध होने शुरू हो गए हैं. अमेरिका (USA) ने उइगर, कजाख समेत दूसरे मुसलमानों के साथ हो रहे अत्याचार को लेकर कई चीनी अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लगा दिए हैं. चीन के इन्हीं यातना शिविरों में दो साल बिता कर लौटे एरबक्यत ओकरबई नाम के एक कजाख ट्रक चालक ने अपनी आपबीती पत्रकार जीन एन बनिन को सुनाई है. एरबक्यत ओकरबई मई 2017 से लेकर 2019 तक शिनजियांग के डिटेंशन सेंटर में कैद थे और इस दौरान उनके साथ चीनी अधिकारियों ने बेहद अमनावीय अत्याचार किए.

  1. उइगर मुसलमानों के साथ ज्यादती और अमानवीय व्यवहार
  2. डिटेंशन सेंटर में दिए जाते हैं आलू के छिलके
  3. कैंप के अंदर शी जिंगपिंग का प्रोपेगेंडा दिखाया जाता है

एरबक्यत ओकरबई के मुताबिक
मैं अलताय क्षेत्र के काबा काउंटी से हूं और मेरी पत्नी तारबगतई से है. हमने साल 2009 में शादी की थी और उसके बाद मैं तारबगतई चला गया. मैनें यहीं बसने का भी फैसला कर लिया था जिसकी वजह से मैंने यहां एक घर भी खरीद लिया था. साल 2016 में कजाखस्तान की नागरिकता के लिए मैंने आवेदन भी दे दिया था लेकिन एक दिन अचानक मेरे पिता की तबीयत खराब हो गई जिसकी वजह से मुझे वापस लौटना पड़ गया.

एक दिन मेरे पास फोन आया कि मुझे कोक्तोगई पुलिस स्टेशन आना है जहां जाने पर मेरा फोन छीन लिया गया और फिर मुझे टैचेंग शहर ले जाया गया. हम आधी रात को न्यू पुलिस स्टेशन पहुंचे जहां पर मेरे हाथ, पांव और कलाइयों को बांध दिया गया और फिर मुझे हथकड़ी लगाई गई. फिर इसके बाद मेरी पिटाई की गई और मुझे एक जगह से दूसरी जगह घसीटा गया. पिटाई करने के बाद मुझे प्री-डिटेंशन ट्रायल सेंटर ले जाया गया.

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वहां ले जाने के बाद एक बार फिर से मेरी पिटाई की गई. आयरन रॉड से मेरे चेहरे पर जोरदार हमला किया गया, जिससे मेरा चेहरा खून से लथपथ हो गया और मेरे चेहरे पर निशान पड़ गया. इस दौरान हमें खाने के लिए गाजर के पत्ते, आलू के छिलके, घास से बने खाने के समान के साथ आधी पकी पावरोटियां दी जाती थी. एक दिन मुझे इतनी जोर से भूख लगी कि मैने सुबह चार बजे जोर जोर से चिल्लाकर रोटी मांगने लगा जिसके बाद वहां गार्ड बुलाए गए और मेरी लेदर बेल्ट से पिटाई की गई. 22 नवंबर 2017 तक मैने वहां 98 दिन बिता लिए थे. इस दौरान मेरा वजन 97 किलो से घटकर 71 किलो हो गया था.

एरबक्यत ओकरबई के मुताबिक रीइजूकेशन कैंप में  पहुंचने के दस दिन के बाद कक्षाएं शुरू हुईं. रात में बातचीत के दौरान पता चलता था कि लोग मामूली वजहों से इन कैंपों में लाए गए हैं, जैसे कि कुछ कजाखस्तान गए थे तो कुछ ने व्हाटसअप का इस्तेमाल किया था. कुछ ने अपने आईडी का इस्तेमाल कजाखस्तान के ग्राहकों को चीनी सिम कार्ड दिलाने के लिए किया था. इनमें से कई ऐसे भी थे जिन पर मस्जिद मे नमाज पढने और मस्जिदों में विवाह आयोजित कराए थे. 

कैंप में मुझे 40 साल की उम्र के तुरसीन नाम के एक व्यक्ति के बारे में पता चला जो सुबह के दौरान फ्लैग होस्टिंग में भाग नहीं ले पाया था, जिसकी वजह से उसे भी शिविर में भेजा गया था. शिविर में रहने के दौरान ही उसकी मौत हो गई थी. उसकी मौत की वजह दिल की बिमारी बताई गई थी लेकिन मुझे यकीन था कि उसे पीट पीट कर मार दिया गया था. कैंप में टीवी सेट भी था जिस पर शी जिंगपिंग का प्रोपेगेंडा दिखाया जाता था.

एक दिन अचानक मुझे और दूसरे 11  लोगों को एक साथ छोड़ दिया गया. हम सभी को उस दिन प्रतिज्ञा लेनी थी कि वो अपने इस अनुभव को किसी के साथ शेयर नहीं करेगें. अगले दिन वांग यिजियांग नाम की एक हान महिला अधिकारी ने बैठक की जहां और भी कजाख लोग थे. उन्होंने हमें रिहाई के बदले कम्यूनिस्ट पार्टी को धन्यवाद देने को कहा.

मेरी रिहाई के बाद मुझे पहले तीन महीने के लिए फोन रखने की अनुमति नहीं दी गई. साथ ही मेरे आईडी कार्ड को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया. कुछ दिन काम करने के बाद स्थानीय प्रशासन का फोन आया और उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं कजाखस्तान वापस जाना चाहता हूं? फिर अगले सुबह मुझे सल्तनत और बाक्यात की सीमा पर लाया गया. जब हम सीमा पार करने के लिए बस से उतरने वाले थे तो हमें एक बार फिर से हान अधिकारियों ने कैंप के अनुभव को किसी और से शेयर न करने की धमकी दी.

जब मैं अपने घर पहुंचा तो मुझे देखकर ये हैरानी हुई कि मेरे बेटा मुझे पहचान न सका. उसने मेरी पत्नी से पूछा कि ये कौन से चाचा हमारे घर आए हैं. फिर मैने उसे बताया कि मैं उसका पापा हूं. अल्माटी में एक मानवअधिकार संगठन अब मेरी मदद कर रहा है. डाक्टरों ने मुझे ये भी बताया कि मेरे खून में रोगाणु पाए गए हैं.

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