Corona Cases in India: पेनसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी ने ईवैक्सीन बायोटेक कंपनी के साथ मिलकर टी-सेल पर फोकस करते हुए एक स्टडी की. यह पहली रिसर्च है, जिसमें AI की बनाई वैक्सीन का वायरस के लाइव चैलेंज मॉडल में टेस्ट किया गया.
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Corona Vaccine: पूरी दुनिया में कोरोना ने एक बार फिर दहशत पैदा कर दी है. भारत में कोरोना के मामलों की रफ्तार में तेजी आई है. लोगों को मास्क पहनने और कोविड अनुरूप व्यवहार की सलाह दी जा रही है. इस बीच एक भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक ने हैरान करने वाला खुलासा किया है. ये वैज्ञानिक कोविड-19 के टी-सेल वैक्सीन पर रिसर्च कर रहे हैं. उनकी खोज में सामने आया कि फिलहाल जो वैक्सीन मौजूद हैं, उनके मुकाबले टी-सेल वैक्सीन ज्यादा लंबे समय तक कारगर रहती है. साथ ही वायरस के भविष्य में संभावित वेरिएंट पर भी असरदार साबित हो सकती है.दरअसल, इस वक्त कोरोना की जो वैक्सीन उपलब्ध हैं, वे सार्स-कोव-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन पर अटैक करते हैं. वायरस में म्यूटेशन होने पर ये कम असरदार रह जाते हैं.
पेनसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी ने ईवैक्सीन बायोटेक कंपनी के साथ मिलकर टी-सेल पर फोकस करते हुए एक स्टडी की. यह पहली रिसर्च है, जिसमें AI की बनाई वैक्सीन का वायरस के लाइव चैलेंज मॉडल में टेस्ट किया गया.
ऐसे की गई स्टडी
रिसर्चर्स ने चूहों पर किए गए इस टेस्ट में उन्हें वायरस का भारी डोज दिया. जिन चूहों को टी-सेल बेस्ड टीके लगाए गए थे, उनमें 87.5 प्रतिशत बच गए जबकि जिन्हें ये वैक्सीन नहीं लगी थी, उनमें से एक ही बच पाया.
फ्रंटीअर्स इन इम्यूनोलॉजी मैगजीन में पब्लिश इस स्टडी में कहा गया कि वैक्सीन लगाने वाले जो चूहे बच गए वे सारे 14 दिन के अंदर संक्रमण मुक्त हो गए. पेन स्टेट में एनमिल साइंस और बायोमेडिकल साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर गिरीश किरीमंजेश्वरी ने कहा, हमारी जानकारी के मुताबिक इस स्टडी में पहली बार एआई से डिजाइन की गई टी-सेल वैक्सीन के कोविड-19 पर असर को दिखाया गया है.
क्या रहा रिजल्ट
उन्होंने कहा, चूहों में कोविड-19 के गंभीर मामलों से बचाव के लिए हमारी वैक्सीन बेहद असरदार रही. इसे इंसानों पर टेस्ट के लिए आसानी से तैयार किया जा सकता है. इस स्टडी से मौसमी और भविष्य में संभावित इंफ्लुएंजा जैसी बीमारियों के लिए टी-सेल टीके के तुरंत डिजाइन का रास्ता साफ होता है.
क्या होंगे फायदे
किरीमंजेश्वरी के मुताबिक, सार्स-कोव-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन में बदलाव से म्यूटेशन हो सकता है जिससे वायरस के नए वेरिएंट बनते हैं. उन्होंने कहा, इसका मतलब यह है कि वैक्सीन बनाने वालों को हर बार एनए वेरिएंट के लिए नए टीके बनाने होंगे. वहीं, टी-सेल वैक्सीन का फायदा यह है कि इससे बचने के लिए वायरस को कई बार म्यूटेशन से गुजरना होगा. किरीमंजेश्वर ने कहा, दूसरा फायदा यह है कि टी-सेल बेस्ड वैक्सीन से मिली इम्युनिटी आम तौर पर ज्यादा लंबे समय तक टिकती है.
(इनपुट-IANS)
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