अमेरिका और रूस के बीच संघर्ष का एक पुराना इतिहास है. अमेरिका और सोवियत संघ के बीच 1945 में शुरू हुआ कोल्ड वॉर वर्ष 1991 तक चला था. इस दौरान इन दोनों देशों ने कई देशों में Proxy War भी लड़ा, जिनमें कोरिया, वियतनाम और अफगानिस्तान युद्ध अहम हैं.
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नई दिल्ली: आज हम आपको दुनिया की सबसे बड़ी मीटिंग के बारे में बताएंगे. स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर से कुछ तस्वीरें सामने आई हैं, जहां 16 जून को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की मुलाकात हुई.
इन तस्वीरों को आप ध्यान से देखेंगे तो आपको जो बाइडेन के साथ अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन के हाथ में एक नोटपैड नजर आएगा और बाइडेन के चेहरे के हाव भाव भी काफी बदले हुए दिखेंगे. लेकिन दूसरी तरफ जब आप रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और उनके विदेश मंत्री की तस्वीरें देखेंगे, तो वो इस बैठक में बिल्कुल बेफिक्र अंदाज में नजर आएंगे.
इस समय पूरी दुनिया दो धुरी पर टिकी हुई है और वो दो धुरी ये दोनों देश हैं. 1940 के दशक में जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हो गया था और अमेरिका और सोवियत संघ के बीच कोल्ड वॉर चल रहा था, तब इस कोल्ड वॉर ने दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया था. एक तरफ वो देश थे जो अमेरिका के साथ थे और दूसरी तरफ वो देश थे, जो सोवियत संघ का समर्थन कर रहे थे.
यानी अमेरिका और रूस के बीच संघर्ष का एक पुराना इतिहास है और इस संघर्ष में ऐसी मुलाकातों के कई स्पीड ब्रेकर आए हैं. आप इसे समझिए कि जिस तरह भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव की स्थितियां रही हैं, वैसा ही रिश्ता अमेरिका और रूस का है और दोनों देशों के राष्ट्र प्रमुखों की मुलाकात हमेशा अहम पड़ाव बनी हैं.
यहां एक दिलचस्प बात ये भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के बीच ये पहली मुलाकात नहीं है. आज से 10 वर्ष पहले भी दोनों नेता मिले थे. उस समय जो बाइडेन अमेरिका के उप राष्ट्रपति थे और पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की टीम का हिस्सा थे, जबकि पुतिन रूस के प्रधानमंत्री थे क्योंकि, तब तक रूस में कोई व्यक्ति अपने दो कार्यकाल के बाद राष्ट्रपति पद पर नहीं बना रह सकता था.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उस समय बाइडेन ने कहा था कि पुतिन के अंदर आत्मा नहीं है. सोचिए 10 साल पहले उन्होंने ये बात कही थी और आज वो उन्हीं के साथ जेनेवा में अलग अलग विषयों पर चर्चा कर रहे हैं. एक और दिलचस्प बात ये है कि जो बाइडेन, पुतिन को किलर भी कह चुके हैं, जिस पर 15 जून को उनसे एक बार फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल पूछा गया और उन्होंने इस सवाल के जवाब में यही कहा कि हां वो अपने बयान को ईमानदारी से मानते हैं.
जो बाइडेन ने इसी वर्ष अमेरिका के राष्ट्रपति का कार्यभाल संभाला है, लेकिन पुतिन के पास राष्ट्रपति का 18 वर्षों का अनुभव है और वो चार साल रूस के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं.
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच 1945 में शुरू हुआ कोल्ड वॉर वर्ष 1991 तक चला था. इस दौरान इन दोनों देशों ने कई देशों में Proxy War भी लड़ा, जिनमें कोरिया, वियतनाम और अफगानिस्तान युद्ध अहम हैं.
हालांकि 1991 में जब सोवियत संघ 15 स्वतंत्र देशों में बंट गया था तब उसके बाद अमेरिका का दुनिया में प्रभुत्व काफी बढ़ा और इसकी वजह से अमेरिका और रूस के बीच कई मौकों पर तनाव जबरदस्त तरीके से उभरा और ये तनाव आज भी कई मुद्दों पर है.
पूरी दुनिया में सबसे अधिक परमाणु हथियार इन्हीं दोनों देशों के पास हैं. अमेरिका के पास 5 हजार 550 परमाणु हथियार हैं और रूस के पास पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा 6255 परमाणु हथियार हैं. हालांकि वक्त के साथ अब परमाणु हथियारों का रूप भी बदल गया है. आज के दौर में साइबर अटैक को नया परमाणु हमला माना जाता है और 16 जून को हुई मुलाकात में भी यही मुद्दा सबसे प्रमुख था.
दोनों देशों के बीच के जो मतभेद हैं वो दुनिया में नया संघर्ष पैदा कर हालात को मुश्किल बना सकते हैं. इसी मुश्किल को कम करने के लिए एक बार फिर अमेरिका और रूस के राष्ट्राध्यक्ष मिल रहे हैं. हालांकि दोनों देशों के बीच बैठक का इतिहास काफी पुराना है
अमेरिका और रूस के बीच पहली बैठक को याल्टा कॉन्फ्रेंस के नाम से जाना जाता हैं. उस समय सोवियत संघ हुआ करता था.
दोनों देश मित्र राष्ट्र के तौर पर दूसरे विश्वयुद्ध में शामिल हुए थे. वर्ष 1945 में जर्मनी जब हार के करीब था. उस वक्त अमेरिका और सोवियत संघ ने मिलकर विश्व युद्ध को खत्म करने के तरीकों पर चर्चा की थी.
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रुज़वेल्ट और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने सोवियत संघ के तानाशाह जोसेफ स्टालिन से मुलाकात की थी. ये बैठक क्राइमिया के याल्टा शहर में हुई. तीनों नेताओं ने मिलकर दूसरे विश्वयुद्ध को खत्म करने का खाका तैयार किया. लेकिन वहीं से शीत युद्ध की शुरुआत हो गई. उसके दो साल के अंदर ही वॉशिंगटन और मॉस्को एक दूसरे के विरोधी बन गए.
अमेरिका और रूस के बीच दूसरी बड़ी बैठक दशकों बाद हुई. चालीस सालों तक दोनों देशों में शीत युद्ध चला और परमाणु हथियारों की होड़ लगी रही. उसके बाद 1985 में स्विटजरलैंड के जेनेवा में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन सोवियत संघ के जनरल सेक्रेट्री मिखाइल गोर्वाचोव से मिले.
दोनों नेता, जिनके बारे में कहा जाता था कि उनकी केमेस्ट्री अच्छी है, जेनेवा समिट के दौरान कॉमन सिक्योरिटी पर राजी हुए. कॉमन सिक्योरिटी का मतलब ये हुआ कि दोनों देश अपनी-अपनी सुरक्षा के लिए काम करेंगे लेकिन आपसी सहयोग से न कि विरोध से.
जेनेवा समिट में अमेरिका और रूस परमाणु हथियारों को कम करने और राजनयिक संबंधों को मजबूत करने पर भी राजी हुए. कुछ लोगों का मानना है कि यहीं से 1991 में हुए सोवियत संघ के विघटन की नींव पड़ी.
वर्ष 2001 में तत्कालीन नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश सेंट्रल यूरोप के शहर स्लोवेनिया पहुंचे जहां उनकी मुलाकात रूस के नए नवेले राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से हुई.
इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य दशकों से चले आ रहे मतभेद को खत्म करना था. उस वक्त दोनों नेता जिस गर्मजोशी से मिले, उसने दुनिया भर को चौंकाया.
कुछ महीने बाद ही अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमला हुआ.
कहा जाता है कि व्लादिमिर पुतिन दुनिया के पहले नेता थे जिन्होंने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश का साथ देने का भरोसा दिया, लेकिन दोस्ती बहुत दिनों तक नहीं टिकी. नाटो के विस्तार के लिए अमेरिकी समर्थन से रूस नाराज हो गया.
साल 2003 में इराक में अमेरिकी हमले का भी रूस ने विरोध किया.
साल 2016 में चीन में G20 देशों की बैठक हुई. बैठक के दौरान ही तत्कालीन अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा कि मुलाकात सोलह सालों से रूस के राष्ट्रपति पद पर बने हुए पुतिन से हुई. हालांकि इस मुलाकात के कुछ खास नतीजे नहीं निकले.
ये वो वक्त था जब रूस घरेलू असंतुष्टों पर कार्रवाई कर रहा था और यूक्रेन अलग होने वाला था. साथ ही अफवाह ये थी कि 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहा है.
इन सारी बातों का असर दोनों की मुलाकात में दिखी, लेकिन बराक ओबामा जब रूस को खलनायक की तरह देख रहे थे, उसी वक्त दूसरे राष्ट्रपति का रवैया बिल्कुल अलग था.
साल 2018 में फिनलैंड के हेल्सिंकी में डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात व्लादिमिर पुतिन से हुई. जहां ट्रंप के संकेतों से संदेश गया कि रूस, अमेरिका के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देता है. ट्रंप के संकेत से पुतिन के बयानों को भी ताकत मिली.
हालांकि इससे अमेरिकी इंटेलिजेंस में असंतोष भी बढ़ा. आखिरकार डोनाल्ड ट्रंप को अपने बयानों से पीछे हटना पड़ा.
व्लादिमिर पुतिन जो पिछले बीस सालों से रूस के राष्ट्रपति हैं. चौथी बार अमेरिका के राष्ट्रपति से मिल रहे हैं. सवाल है कि इस मुलाकात में किसकी शिकायतों की लिस्ट लंबी है और क्या जो बाइडेन का अंदाज रूस के लिए अमेरिका के बदले रवैये का संकेत है.