DNA ANALYSIS: क्रांतिकारियों के 'पोस्टर ब्वॉय' Che Guevara, जानिए उनकी कहानी
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DNA ANALYSIS: क्रांतिकारियों के 'पोस्टर ब्वॉय' Che Guevara, जानिए उनकी कहानी

चे-ग्वेरा एक ऐसी शख्सियत थे जिनका पूरा जीवन ही क्रांति का बिगुल है. जब भी कहीं क्रांति की बात होती है, बदलाव की बात होती है, सशस्त्र आंदोलन की बात होती है, वहां चे-ग्वेरा के विचारों का जिक्र जरूर होता है.

DNA ANALYSIS: क्रांतिकारियों के 'पोस्टर ब्वॉय' Che Guevara, जानिए उनकी कहानी

नई दिल्ली: आज के दौर में जब क्रांति के मायने बदल गए हैं और इसे सोशल मीडिया तक सीमित कर दिया गया है, तब आपको लैटिन अमेरिका के क्रांतिकारी चे ग्वेरा के बारे में बताते हैं. कल 14 जून को उनका जन्मदिन था.

  1. 23 साल की उम्र में चे ग्वेरा अपनी नॉर्टन 500 सीसी मोटरसाइकिल से दक्षिण अमेरिकी देश की यात्रा पर निकले.
  2. ये उनके चे-ग्वेरा बनने की शुरुआत थी.
  3. यात्राओं का जिक्र उनकी किताब 'द मोटरसाइकिल डायरीज़' में है.
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पूरा जीवन क्रांति का बिगुल

चे-ग्वेरा एक ऐसी शख्सियत थे जिनका पूरा जीवन ही क्रांति का बिगुल है. जब भी कहीं क्रांति की बात होती है, बदलाव की बात होती है, सशस्त्र आंदोलन की बात होती है, वहां चे-ग्वेरा के विचारों का जिक्र जरूर होता है. उन्होंने अपनी मौत से पहले एक बार कहा था, उन्हें तो मारा जा सकता है, लेकिन उनके विचारों को नहीं मारा जा सकता.

23 साल की उम्र में चे ग्वेरा जब अपनी नॉर्टन 500 सीसी मोटरसाइकिल से दक्षिण अमेरिकी देश की यात्रा पर निकले तो ये उनके चे-ग्वेरा बनने की शुरुआत थी. अपनी यात्राओं का जिक्र उनकी किताब 'द मोटरसाइकिल डायरीज़' में है और इस पर एक फिल्म भी बन चुकी है.

इस यात्रा के दौरान चे-ग्वेरा ने दक्षिण अमेरिकी देशों की बदहाली देखकर उसके लिए कुछ बड़ा करने का मन बनाया. उन्हें इन देशों के हालात देखकर यही समझ में आया कि पूंजीवादी विचारों को खत्म करके ही इनकी समस्या का अंत किया जा सकता है.

इसके बाद अगले 19 वर्ष चे-ग्वेरा ने पूंजीवाद के खिलाफ खासकर अमेरिका के खिलाफ क्रांति की मशाल उठा ली. मात्र 39 साल की उम्र में चे-ग्वेरा ने दुनिया छोड़ दी, लेकिन अपनी जिंदगी के 19 वर्ष उन्होंने उन देशों के नाम किए जो तानाशाहों से दबे हुए थे. 

क्यूबा के​ नेशनल हीरो 

एर्नेस्तो ग्वेरा को बहुत से लोग चे-ग्वेरा के नाम से जानते हैं. चे-ग्वेरा को क्यूबा में एक नेशनल हीरो की तरह पूजा जाता है. चे-ग्वेरा को क्यूबन क्रांति का नायक माना जाता है. वो क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के सबसे करीबी थे.

तानाशाही से मुक्त कराने का आंदोलन

क्यूबा को उसके तानाशाह राष्ट्रपति फल्गेंसियो बतिस्ता से छुटकारा दिलाने कि लिए 1953 से ही फिदेल कास्त्रो आंदोलन चला रहे थे, लेकिन वो कामयाब इसलिए नहीं हो रहे थे क्योंकि, बतिस्ता को उस वक्त अमेरिका का पूरा समर्थन था. लेकिन क्यूबा को तानाशाही से मुक्त कराने के आंदोलन को जोश तब मिला जब वर्ष 1955 में फिदेल कास्त्रो की चे-ग्वेरा से मुलाकात हुई. चे-ग्वेरा की मदद से ही 1 जनवरी 1959 में बतिस्ता को सत्ता से बेदखल कर दिया गया.

क्यूबा में सत्ता परिवर्तन के बाद चे-ग्वेरा को वहां का उद्योग मंत्री बनाया गया था. वित्त मंत्रालय भी उनके पास था, साथ ही क्यूबा के सेंट्रल बैंक के गवर्नर भी वही थे. ये इसलिए क्योंकि, फिदेल कास्त्रो को चे-ग्वेरा के ज्ञान पर भरोसा था. लेकिन चे-ग्वेरा ने 1966 में क्यूबा छोड़ दिया और कांगो और बोलिविया को तानाशाही शासन से मुक्त करवाने के लिए उनके विद्रोहियों को ट्रेनिंग देने चले गए.

हालांकि बोलिविया में ये उनके आखिरी कुछ वक्त थे. बोलिविया के विद्रोहियों के सामने सेना और अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA थी. अमेरिका क्यूबा में आई क्रांति से खफा था और इसी वजह से वो लगातार चे-ग्वेरा को तलाश रहा था.

7 अक्टूबर 1967 को एक जासूस ने बोलिविया की सेना और CIA को चे-ग्वेरा की लोकेशन बताई. जिसके बाद 8 अक्टूबर को चे-ग्वेरा को एक मुठभेड के बाद पकड़ लिया गया. 9 अक्टूबर को चे-ग्वेरा शहीद हो गए. सार्जेंट मारियो टेरेन को चे-ग्वेरा को मारने का निर्देश दिया गया थे, जिसमें सिर पर गोली ना मारने की बात कही गई थी. मारियो टेरेन ने चे ग्वेरा को 9 गोलियां मारी थीं.

चे ग्वेरा की मौत की खबर फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा को जनता को दी थी.

लगभग 30 सालों तक बोलिविया में ही दफन किए गए चे-ग्वेरा के शव को बाद में क्यूबा लाया गया और फिर पूरे सम्मान के साथ दोबारा दफन किया गया.

सामाजिक चेतना को लेकर चे-ग्वेरा के विचार

चे-ग्वेरा को लेकर दो तरह के लोग मिलते हैं. एक वो जो उनके विचारों और काम की तारीफ करते हैं और दूसरे वो जो उनके हिंसा के रास्ते को गलत मानते हैं. लोगों को हक दिलाने के लिए चे-ग्वेरा का रास्ता हिंसा से भरा हुआ था, लेकिन सामाजिक चेतना को लेकर चे-ग्वेरा के विचारों से सभी प्रभावित हैं. चे-ग्वेरा ने क्यूबा की नई सरकार के लिए कई ऐसी योजनाएं बनाई जिनसे क्यूबा की जनता को फायदा हुआ.

चे-ग्वेरा ने क्यूबा की जनता को शिक्षा के प्रति प्रेरित किया. 1961 तक क्यूबा में साक्षरता दर 60 से 76 प्रतिशत थी, लेकिन चे-ग्वेरा ने इसके लिए एक योजना तैयार की. क्रांति के दौरान उन्होंने जंगलों में बसे गांवों में जो स्कूल और शिक्षक तैयार किए थे, उन्हें क्यूबा की जनता को साक्षर करने का जिम्मा दिया. एक साल के अंदर क्यूबा की साक्षरता दर 96 प्रतिशत हो गई थी.

शिक्षा ही नहीं चे-ग्वेरा ने दूसरे देशों के साथ क्यूबा के संबंध सुधारने के लिए लगभग पूरी दुनिया का चक्कर लगाया. अपने विदेश के दौरे के दौरान चे-ग्वेरा 30 जून 1959 को भारत भी आए थे..भारत यात्रा के दौरान चे-ग्वेरा ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात भी की थी और फिदेल कास्त्रो को दी गई अपनी 3 पन्नों की रिपोर्ट में चे-ग्वेरा ने भारत की तारीफ की. उन्होंने भारत की यात्रा को लेकर लिखा, 'इस यात्रा में हमें कई लाभदायक बातें सीखने को मिलीं, सबसे महत्त्वपूर्ण बात हमने ये जानी कि एक देश का आर्थिक विकास उसके तकनीकी विकास पर निर्भर करता है.’

अपने यात्रा के दौरान चे-ग्वेरा महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलनों के तरीके से भी प्रेरित हुए. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा था.

‘जनता के असंतोष के बड़े-बड़े शांतिपूर्ण प्रदर्शनों ने अंग्रेजी उपनिवेशवाद को आखिरकार उस देश को हमेशा के लिए छोड़ने को बाध्य कर दिया, जिसका शोषण वह पिछले डेढ़ सौ वर्षों से कर रहा था.’

चे-ग्वेरा जिस दौरान क्यूबा की सरकार में मंत्री थे तब वो अपनी सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल अपनी पत्नियों को भी नहीं करने देते थे. उनका मानना था जब मैं खुद ही उन उसूलों को नहीं मानूंगा जिसकी अपेक्षा देश के बाकी लोगों से हैं तो कैसे चलेगा. चे-ग्वेरा ने अपने आखिरी वक्त में कहा था कि तुम एक इंसान को मारने आए हो लेकिन उसके विचारों को नहीं मार सकते. यही विचार आज के आंदोलनों की ताकत बनते हैं और युवाओं को प्रभावित करते हैं.

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