DNA Analysis: इस्लामिक आतंकवाद पर फ्रांस से क्या सीख सकता है भारत? पेरिस अटैक के बाद कट्टरपंथियों का रहना कर दिया मुश्किल
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DNA Analysis: इस्लामिक आतंकवाद पर फ्रांस से क्या सीख सकता है भारत? पेरिस अटैक के बाद कट्टरपंथियों का रहना कर दिया मुश्किल

DNA on Paris Terror Attack Court Order: उदयपुर में हिंदू टेलर की बर्बर हत्या के बाद देश में इस्लामिक आतंकवाद का मुद्दा फिर गर्म है. क्या इस मामले में भारत अपने मित्र देश फ्रांस से कुछ सीख सकता है. जिसने देश में कट्टरपंथियों का रहना मुश्किल कर दिया है.

DNA Analysis: इस्लामिक आतंकवाद पर फ्रांस से क्या सीख सकता है भारत? पेरिस अटैक के बाद कट्टरपंथियों का रहना कर दिया मुश्किल

DNA on Paris Terror Attack Court Order: राजस्थान के उदयपुर में हिंदू टेलर की क्रूर हत्या के बाद देश में इस्लामिक आतंकवाद से निपटने की चर्चा फिर तेज हो गई है. आज भारत चाहे तो फ्रांस से काफी कुछ सीख सकता है. भारत की तरह फ्रांस भी एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है. जिस तरह उदयपुर में पैगम्बर मोहम्मद साहब के कथित अपमान पर कन्हैया लाल की हत्या हुई है, ठीक उसी तरह वर्ष 2020 में फ्रांस के एक स्कूल में Samuel Patty नाम के एक टीचर की गला काट कर हत्या कर दी गई थी. 

फ्रांस में टीचर की भी हुई थी क्रूर हत्या

Samuel Patty की गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने अपनी क्लास में पैगम्बर मोहम्मद साहब के कुछ कार्टून दिखा दिए थे. लेकिन इसके बाद फ्रांस की सरकार ने इस्लामिक कट्टरपंथ को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए. अब फ्रांस की एक अदालत ने आतंकवादी हमलों से जुड़े एक मामले में ऐतिहासिक फैसला भी सुनाया है.

आतंकी को मिली उम्र कैद की सजा

वर्ष 2015 में पेरिस में Serial Bomb Blast और Suicide Attack हुए थे. जिनमें 130 लोगों की जानें गई थी. इस मामले में फ्रांस की अदालत ने आतंकवादी सलाह अब्दे-सलाम को उम्रकैद की सज़ा सुनाई है. अपने फैसले में ये भी कहा है कि ये आतंकवादी 30 साल की सजा काटने के बाद ही पैरोल के लिए आवेदन कर सकता है. यानी 30 साल तक ये जेल से बाहर नहीं आएगा. हमला करने वाले आतंकवादियों में सलाह अब्देसलाम ही जीवित बचा है. इस मामले में लगभग 6 वर्षों तक गहन जांच की गई और 9 महीने तक अदालत में सुनवाई चली.

फ्रांस में सबसे लंबे समय तक चला केस

यानी ये आधुनिक फ्रांस में सबसे लम्बे समय तक चला कोई कानूनी मामला है. कुल मिलाकर कहें तो फ्रांस की न्यायपालिका ने बताया है कि इस्लामिक कट्टरपंथ से कैसे लड़ा जा सकता है. लेकिन हमारे देश में ऐसा करना बहुत मुश्किल काम है. हमारे देश में आतंकवादियों के प्रति हमदर्दी जताई जाती है और जब उन्हें सज़ा दी जाती है तो सरकारों से लेकर मानव अधिकारों से जुड़ी संस्थाएं और बुद्धीजीवी सवाल उठाने लगते हैं.

अखिलेश यादव ने आतंकी से केस वापस ले लिए थे

आपको याद होगा वर्ष 2006 में वाराणसी के संकटमोचन मन्दिर में बम धमाके हुए थे. इन धमाकों में 14 पुजारियों समेत 28 लोगों की मौत हो गई थी. इस हमले के सात वर्षों के बाद 5 मार्च 2013 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वलीउल्लाह नाम के एक दोषी पर दर्ज सभी मुकदमे वापस ले लिए थे. अखिलेश यादव ने कहा था कि वलीउल्लाह को इन हमलों में उसके धर्म की वजह से जानबूझकर फंसाया गया है. जबकि अदालत ने तब सरकार के इस फैसले को पूरी तरह गलत माना था और इस पर रोक भी लगा दी थी. 

उसी आतंकी को कोर्ट ने सुनाई फांसी की सजा

कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने वलीउल्लाह को फांसी की सजा सुनाई है. सोचिए, एक तरफ़ फ्रांस है, जहां पेरिस हमलों के दोषी को कठोर सज़ा दी गई है. दूसरी तरफ़ उत्तर प्रदेश का ये मामला है, जिसमें तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने आतंकवादी को बेकसूर बताते हुए उस पर दर्ज सभी मुकदमे वापस ले लिए थे. जबकि उस पर 28 लोगों की हत्या का मामला दर्ज था. इससे पता चलता है कि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए देश के राजनीतिक दल किस हद तक नीचे गिर चुके हैं.

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