Why France Military Failed in Mali: पिछले महीने फ्रांस के राष्ट्रपति ने अपने सैनिकों को माली से वापस बुला लिया. ये सैनिक करीब 9 साल पहले इस्लामी चरमपंथियों से लड़ने के लिए माली में गए थे और माली की मदद कर रहे थे. पर सवाल ये है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि रिश्तों में दरार आ गई.
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France and Mali Relation Change: दुनिया के ताकतवर देशों में से एक फ्रांस और छोटे से मुल्क माली के बीच कभी मजबूत दोस्ती थी, लेकिन आज इनके रिश्तों में उतनी ही तल्खी है. दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ खूब बयानबाजी करते हैं. स्थिति इतनी खराब हो गई है कि पिछले महीने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने सैनिकों को माली से वापस बुला लिया. ये सैनिक करीब 9 साल पहले इस्लामी चरमपंथियों से लड़ने के लिए माली में गए थे और माली की मदद कर रहे थे. पर सवाल ये उठता है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि रिश्तों में दरार आ गई.
इस तरह मधुर बने संबंध
माली और फ्रांस के रिश्तों की शुरुआत 19वीं सदी में हुई थी. औपनिवेशिक इतिहास दोनों देशों को जोड़ता है. फ्रांस में माली मूल के लोग बड़ी संख्या में हैं. माली में भी फ्रांस के प्रवासी हैं. 1991 में जन आंदोलनों के बाद यहां लोकतंत्र आया. 1990 के दशक और 2000 के बाद के कुछ साल तक फ्रांस एक बार फिर माली के सबसे करीबी साझेदारों में शुमार हो गया. 2011 लास्ट में माली में संघर्ष शुरू हुआ और इस संघर्ष की अगुवाई सशस्त्र समूह तुआरेग कर रहा था. देश में चरमपंथी हावी हो रहे थे. ऐसे में माली ने 10 जनवरी 2013 को फ्रांस से मदद मांगी. कुछ ही दिन में फ्रांस के सैनिक माली पहुंच गए. फ्रांस के सैनिकों ने चरमपंथियों और विद्रोहियों से युद्ध छेड़ दी और माली को राहत दिलाई. दोनों देशों के संबंध और मधुर हुए.
फिर इस तरह बढ़ने लगी दूरी
रिपोर्ट के मुताबिक, फ्रांस की सेना ने जब माली के उत्तरी हिस्से में तुआरेग विद्रोहियों और इस्लामी चरमपंथी समूहों के कब्ज़े वाले इलाकों में जीत दर्ज की तो उन्होंने माली के सैनिकों को साथ में शहर में आने से रोक दिया. यहीं से तल्खी की शरुआत हुई. कुछ दिन बाद माली में मौजूद फ्रांस की सेना ने जिहादियों से लड़ने के लिए तुआरेग समूह से गठजोड़ किया. माली प्रशासन को यह बात हजम नहीं हुई और यहां से संबंधों का ग्राफ नीचे आने लगा. इस बीच माली में चुनाव की मांग उठने लगी. फ्रांस ने नए सिरे से चुनाव कराने का समर्थन किया. जबकि अधिकतर लोग डॉक्टर निगाली को पीएम चाहते थे. वहीं चरमपंथी समूह फिर यहां सक्रिय होने लगे थे.
एक दूसरे पर कर रहे जुबानी हमले
तमाम जटिलताओं के बीच फ्रांस के कमांडर इन चीफ इमैनुएल मैक्रों ने फरवरी 2022 में माली से सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया. इस फैसले के कुछ हफ़्ते पहले माली के सैन्य अधिकारियों ने फ्रांस के राजदूत को आदेश दिया कि वो 72 घंटे में देश छोड़ दें. ये फ्रांस के विदेश मंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया थी. उन्होंने माली के सैन्य शासन को अवैध और नियंत्रण से बाहर बताया था. इस साल मई में माली ने फ्रांस के साथ रक्षा समझौते को रद्द कर दिया. माली ने ये भी कहा कि फ्रांस के पास सैनिक अभियान चलाने का कोई वैध आधार नहीं है. धीरे-धीरे पिछले महीने फ्रांस की सेना माली से आ चुकी है.
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