ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में रहने या हटने में भारतीय 'कढ़ी' का भी खास रोल ! जमकर छिड़ी बहस
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ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में रहने या हटने में भारतीय 'कढ़ी' का भी खास रोल ! जमकर छिड़ी बहस

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने को लेकर देश में इस सप्ताह कराए जाने वाले जनमत संग्रह की बहस में ‘कढ़ी’ भी एक बड़ा मुद्दा बन गया है। ब्रिटेन में लोकप्रिय भारतीय रेस्त्रां उद्योग का तर्क है कि ब्रिटेन और यूरोप के बीच व्यक्तियों की फ्री मूवमेंट की व्यवस्था और यूरोपीय संघ के नियमों के चलते इस उद्योग के लिए भारतीय उप-महाद्वीप से व्यंजन पकाने वाले कारीगरों को बुलाना मुश्किल होता हे।

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में रहने या हटने में भारतीय 'कढ़ी' का भी खास रोल ! जमकर छिड़ी बहस

लंदन : ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने को लेकर देश में इस सप्ताह कराए जाने वाले जनमत संग्रह की बहस में ‘कढ़ी’ भी एक बड़ा मुद्दा बन गया है। ब्रिटेन में लोकप्रिय भारतीय रेस्त्रां उद्योग का तर्क है कि ब्रिटेन और यूरोप के बीच व्यक्तियों की फ्री मूवमेंट की व्यवस्था और यूरोपीय संघ के नियमों के चलते इस उद्योग के लिए भारतीय उप-महाद्वीप से व्यंजन पकाने वाले कारीगरों को बुलाना मुश्किल होता हे।

इस देश में चार अरब पौंड (कढ़ीब 4,00 अरब रुपए) की कमाई कर रहे इस उद्योग से जुड़ा एक वर्ग यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने में अपना हित देखता है। उसे लगता है कि 28 सदस्यीय यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने से उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप से खानसामों को काम के लिए ब्रिटेन बुलाने में आसानी होगी। इस संबंध में गुरुवार को होने वाले जनमत संग्रह से पहले दक्षिण एशियाई रेस्त्राओं के मालिकों ने भारतीय मूल की मंत्री प्रीति पटेल के उस आह्वान का समर्थन किया है जिसमें ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर आने का पक्ष लिया गया है। 

ब्रिटेन का भारतीय रेस्त्रां उद्योग या ‘कढ़ी’ उद्योग कुशल श्रमिकों की कमी से जूझ रहा है। बांग्लादेश कैटर्स एसोसिएशन ने भी ब्रिटेन के ईयू से निकलने का समर्थन किया है। उसका कहना है कि इससे ब्रिटेन के कढ़ी उद्योग की हिफाजत होगी क्योंकि यूरोप संघ के नियमों से भारतीय उपमहाद्वीप से प्रशिक्षित खानसामों को ब्रिटेन लाने में अड़चने बढ़ती है। एसोसिएशन के अध्यक्ष पाशा खांडेकर कहा कि ‘कढ़ी’ उनका राष्ट्रीय व्यंजन है लेकिन दुर्भाग्य से हर सप्ताह पांच कढ़ी रेस्तरां बंद हो रहे हैं। आव्रजन नीति में निश्चित रूप से दोहरापन है जहां वे प्रशिक्षित खानसामों को वहां लाने में सक्षम नहीं है जबकि यूरोप से आने वाले श्रमिकों को पूरी छूट है। यह एसोसिएशन कढ़ीब 12,000 रेस्त्राओं का प्रतिनिधित्व करती है।

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