नई दिल्ली: फरवरी 2019 में उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच वियतनाम की राजधानी हनोई में हुई शिखर वार्ता बुरी तरह से नाकाम रही. दोनों देशों के बीच होने वाली यह दूसरी शिखर वार्ता थी. उत्तर कोरिया वह देश है जो करीब एक साल पहले तक अमेरिका सहित दुनिया भर के लिए सबसे खतरनाक देश माना जा रहा था. उसके परमाणु और मिसाइल परीक्षणों ने पूरी दुनिया को हैरान कर रखा था. इस पर अमेरिका की अगुआई में दुनिया भर के देशों ने उत्तर कोरिया पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जिसके असर के बाद से उत्तर कोरिया के का रुख कुछ नर्म हुआ और अंतत: 2018 में किम जोंग उन उत्तर कोरिया के पहले शासक बने जिन्होंने दक्षिण कोरिया में कदम रखा. आज उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच एक बार फिर दूरियां बढं रहीं हैं. जबकि दोनों कोरियाई देश भी आपस में संवाद स्थापित कर चुके हैं और उनके संवाद के कायम रहने की उम्मीदें हैं.
उत्तर कोरिया कोरिआई प्रायद्वीप का उत्तरी भूभाग है जो 120,540 वर्ग किलोमीटर (46,541 वर्ग मील) के क्षेत्र में फैला है. उत्तर में चीन और रूस, दक्षिण में दक्षिण कोरिया से अपनी जमीनी सीमा साझा करता है. इसके पश्चिम में पीला सागर और कोरिया की खाड़ी है जिसके पास जापान स्थित है. पूरे देश के ज्यादा भूभाग में ऊंचे पर्वत हैं जिनके बीच में गहरी संकरी घाटियां भी हैं. पश्चिमी तटों पर बड़े मैदान हैं. यहां शीतोष्ण जलवायु मिलती है जहां सर्दी लंबी और गर्मी का मौसम छोटा रहता है लेकिन ज्यादातर बारिश गर्मी के मौसम में होती है.
उत्तर कोरिया प्रमुख किम जोंग उन और अमेरिकी राष्ट्रपति की हनोई में चल रही वार्ता दूसरी वार्ता है. (फोटो: Reuters)
यहां लगभग सभी लोग कोरियन भाषा बोलते हैं. उत्तर कोरिया का आधिकारिक नाम डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया है. राजधानी प्योंगयांग देश का सबसे बड़ा शहर है. माना जाता है कि यहां के ज्यादातर लोग भगवान को नहीं मानते जबकि धार्मिक लोगों में बौद्ध और कन्फ्यूशयसी धर्म मानने वाले लोग सबसे ज्यादा हैं. 2012 के संयुक्त राष्ट्र आंकड़ों के मुताबिक देश की आबादी 2 करोड़ 45 लाख थी. यहां की मुद्रा उत्तर कोरियाई वॉन है.
संक्षिप्त इतिहास
यह देश ज्यादातर समय तक दूसरे देशों का हिस्सा ही रहा है इसमें जापान रूस और मंगोलिया तक शामिल हैं. 20वीं सदी की शुरुआत में कोरिया को रूस से जापान ने छीना था जो कि द्वीतिय विश्व युद्ध तक उसका हिस्सा रहा. द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय के बाद कोरिया दो भागों में बंट गया उत्तर का हिस्सा सोवियत संघ के कब्जे में आया और दक्षिण का हिस्सा जिसमें राजधानी सियोल शामिल था अमेरिका के कब्जे में आया. 1948 में यह क्षेत्र दो देशों में तब्दील हो गया उत्तर का कोरिया समाजवादी लोकतांत्रिक जन गणतंत्र, कोरिया बना जो कि उत्तर कोरिया के नाम से जाना गया. यहां के कम्युनिस्ट शासन के प्रमुख किम द्वितीय सुंग जल्दी ही कोरियन वर्कर्स पार्टी के मुखिया बन गए.
कोरिया युद्ध के बाद से खत्म नहीं हुई दुश्मनी
कोरिया युद्ध 1950 में उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर हमला किया जिससे दोनों देशों के बीच तीन साल का युद्ध हुआ. 1953 में युद्धविराम तो हुआ लेकिन शांति समझौता नहीं हुआ. युद्ध के बाद किम ने घरेलू कम्युनिस्ट समूहों को खत्म कर दिया. इसके बाद किम का झुकाव धीरे-धीरे रूस से चीन की ओर होने लगा. इसके बाद उन्होंने देश तो स्वतंत्र सोच वाला देश बनाने कोशिश शुरू कर दी और कोरियन वर्कर्स पार्टी से चीन और रूस समर्थित समूहों को भी खत्म कर दिया और देश को राजनीति में स्वतंत्र, आर्थिक एवं रक्षा मामलों में आत्मनिर्भर बनाने के सिद्धांत अपनाया. 1972 में नया संविधान लागू होने के बाद किम द्वितीय सुंग देश के राष्ट्रपति बन गए जबकि कोरियन वर्कर्स पार्टी के प्रमुख भी बने रहे. इसी बीच देश की सैन्य ताकत तो मजबूत हुई लेकिन आम लोगों की परेशानियां कम होने के बजाय बढ़ती गईं उनका जीवन स्तर भी काफी प्रभावित हुआ और खाद्य पदार्थों की भारी कमी हो गई. 1994 में किम द्वितीय सुंग के निधन के बाद उनके पुत्र किम जोंग इल जिन्हें किम जोन द्वितीय भी कहा जाता है, ने उत्तर कोरिया की गद्दी संभाली. उन्हें विरासत में कई चुनौतियां मिली जिनमें देश भर में फैली खाद्य समस्या प्रमुख थी. इसके अलावा उत्तर कोरिया पर परमाणु हथियार विकसित करने का संदेह दुनिया भर में मजबूत होता जा रहा था.
परमाणु कार्यक्रम
1998 में उत्तर कोरिया ने लंबी दूरी की मिसाइल का परीक्षण किया जिसे उसने जापान के वायुक्षेत्र से ऊपर से उड़ाया. उत्तर कोरिया की इस नई क्षमता ने दुनिया भर को सकते में डाल दिया. इसके बाद से ऐसी खबरें भी आईं कि उत्तर कोरिया एनरिच यूरोनियम तैयार कर रहा है जो कि परमाणु बम का प्रमुख तत्व होता है. 2002 में उत्तर कोरिया ने इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी के पर्यवेक्षकों को देश से बाहर कर दिया इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने उत्तर कोरिया को ईरान, ईराक सहित, ‘बुराई की धुरी’ देशों में शामिल बताया. जनवरी 2003 में उत्तर कोरिया ने परमाणु अप्रसार संधि से खुद को अलग कर लिया और उसने 2005 में दावा किया कि वह अब परमाणु शक्ति संपन्न देश हो गया है. हालांकि उसकी इस क्षमता की पुष्टि नहीं हो सकी. इसके बाद 2006 और 2009 में भी उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण करने का दावा किया.
किम जोंन उन
2011 में किम जोंन द्वितीय की मृत्यु के बाद उनके सबसे छोटे पुत्र किम जोंन उन ने देश की बागडोर संभाली जिन्हें पहले से ही उत्तारिधिकारी घोषित कर दिया गया था. उन ने जल्दी ही अपनी ताकत देश में बढ़ा ली और संदिग्ध विरोधियों को भी खत्म कर दिया. किम जोंन उन ने देश का परमाणु कार्यक्रम जारी रखा. फरवरी 2012 में अमेरिका से बीजिंग वार्ता में खाद्य सहायता के बदले उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण और यूरेनियम संवर्धन बंद करने करने का प्रण लिया, लेकिन इसके बाद उत्तर कोरिया ने दूसरे प्रयास में एक उपग्रह का सफल प्रक्षेपण जो कि जापानी वायुक्षेत्र के ऊपर से गया था. इसके रॉकेट के अवशेष फिलीपींस के पूर्व स्थित सागर क्षेत्र में गिरे. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया. 2013 में भूमिगत परमाणु परीक्षण करने के पर उत्तर कोरिया की दुनिया भर में आलोचना तो हुई ही, उसके और चीन के संबंध भी बिगड़ गए. 2016 में उत्तर कोरिया ने चौथा और पांचवा परमाणु परीक्षण किया. संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध और कड़े कर दिए. 2017 में उत्तर कोरिया ने दो अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल परीक्षण किया जिनकी रेंज 8000 किमी थी.
2018 में आया बदलाव का दौर
2018 में दक्षिण कोरिया के पियोंगचांग में हुए शीतकालीन ओलंपिक में उत्तर कोरिया की टीम ने भाग लिया. इससे दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने में मदद की आशा जगी जब किम जोंग उन की बहन किम यो जोंग दक्षिण कोरिया जाने वाली उत्तर कोरिया के शासक परिवार की पहली सदस्या बनीं. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच संवाद शुरू हुआ और अप्रैल 2018 में दक्षिण कोरिया के पनमुनजोम में दोनों देशों के प्रमुख, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जाए इन की मुलाकात हुई जिससे दोनों देशों के बीच शांति की उम्मीद जगी. हुनेई वार्ता की नाकामी के बावजूद अभी दोनों देशों के बयानों में तल्खी नहीं आई है, वाबजूद इसके कि हाल ही में उत्तर कोरिया में परणाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की गतिविधियां देखी गई हैं.
सिंगापुर में उन और ट्रंप की पहली मुलाकात
जून 2018 में सिंगापुर में किम जोंग उन की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच पहली मुलाकात हुई. बैठक में किम ने कोरियाई प्रायद्वीप के पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में कार्य करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी. हालांकि इसके अलावा बैठक के घोषणापत्र में कुछ नहीं कहा गया. अब दोनों नेताओं की बैठक वियतनाम की राजधानी हनोई में 27 फरवरी और 28 फरवरी को दूसरी शिखर वार्ता में भाग ले रहे हैं. इस वार्ता को लेकर दोनों ही नेताओं पर परमाणु निरस्त्रीकरण पर ठोस कदम उठाने का दबाव था, लेकिन वार्ता बीच में ही खत्म हो गई.
दुनिया की सबसे बड़ी सेना है यह
उत्तर कोरिया में सैन्य ताकत को प्राथमिकता दी जाती है. यहां की सेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना बनाते है. इससे ज्यादा बड़ी सेना चीन, अमेरिका और भारत के पास है. एक आंकड़े के मुताबकि यह देश की 37 प्रतिशत आबादी सक्रिय सेना का हिस्सा है. वहीं दूसरा आंकड़ा इस देश की एक चौथाई आबादी बताता है. उत्तर कोरिया की आर्थिक नीति पूरी तरह से सरकार निर्धारित प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित रहती है. यहां की अर्थव्यवस्था में सैन्य सामग्री उत्पादन, विद्युत उर्जा, कोयला, लोहअयस्क और अन्य खनिज का उत्खनन, धातु उद्योग, कपड़ा उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण और पर्यटन शामिल हैं. खाद्य प्रसंस्करण यहां काफी देर से शुरू हुई जिसपर 1990 के दशक में यहां की खाद्य़ पदार्थों की कमी के बाद जोर दिया गया. हालांकि अभी इस देश में कड़े नियंत्रण की वजह से यहां के आर्थिक हालातों का ठीक ठीक आंकलन करना संभव नहीं है.
एक साल में सुर बदल गया किम जोंग उन का
इसके बावजूद किम जोंग उन जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय मंच में बातचीत की राह पर चल रहे थे, उससे साफ है कि वे बातचीत के लिए मजबूर हुए हैं. इस मजबूरी की वजह घरेलू कमजोर आर्थिक स्थिति होने की संभावना ज्यादा बताई जाती थी. माना जा रहा था कि लंबे से कड़े होते जा रहे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का असर आखिरकार रंग ला रहा है. किम जोंग उन दुनिया में उत्तर कोरिया को अकेला कर देश एक बड़ी ताकत नहीं बन सकते. बताया जा रहा है कि किम जोंग उन तो निरस्त्रीकरण की दिशा में कदम उठाने को तैयार थे, लेकिन वे चाहते थे कि अमेरिका पूरी तरह से प्रतिबंध हटा ले. इसी अवरोध ने वार्ता को इस तरह से अचानक नाकाम कर दिया. फिलहाल दोनों ही देश एक दूसरे के खिलाफ कड़ी या तीखी बयानबाजी से बचते दिख रहे हैं. वहीं बातचीत का रास्ता पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है.
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