चीन-रूस के साथ भारत के संबंधों में ‘दरार ’ पैदा करना चाहते हैं ओबामा: चीनी मीडिया
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चीन-रूस के साथ भारत के संबंधों में ‘दरार ’ पैदा करना चाहते हैं ओबामा: चीनी मीडिया

चीन और रूस के साथ भारत के रिश्तों में ‘दरार ’ पैदा करने की अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की रणनीति के प्रति आगाह करते हुए चीन के सरकारी मीडिया एवं विशेषज्ञों ने मंगलवार को चेतावनी दी कि वाशिंगटन के साथ नई दिल्ली के घनिष्ठ संबंध से चीन-भारत रिश्तों के लिए समस्या खड़ी हो सकती है।

चीन-रूस के साथ भारत के संबंधों में ‘दरार ’ पैदा करना चाहते हैं ओबामा: चीनी मीडिया

बीजिंग : चीन और रूस के साथ भारत के रिश्तों में ‘दरार ’ पैदा करने की अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की रणनीति के प्रति आगाह करते हुए चीन के सरकारी मीडिया एवं विशेषज्ञों ने मंगलवार को चेतावनी दी कि वाशिंगटन के साथ नई दिल्ली के घनिष्ठ संबंध से चीन-भारत रिश्तों के लिए समस्या खड़ी हो सकती है।

सरकारी अखबार ग्लोबल टाईम्स ने कहा, ‘ओबामा की रणनीति बिल्कुल स्पष्ट है। वह एशिया में पुनर्संतुलन कायम करने की अपनी रणनीति पूरी करने की कोशिश के तहत चीन और भारत तथा भारत एवं रूस के बीच संबंधों में दरार पैदा करना चाहते हैं।’ अखबार ने अपने पहले पृष्ठ में भारत के 66वें गणतंत्र दिवस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ओबामा की उपस्थिति को भी प्रमुखता से स्थान दिया है।

उसकी रिपोर्ट में गुआंगडोंग रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्ट्रेटेजीज के प्रोफेसर झोउ फांगयिन के हवाले से कहा गया है कि ओबामा और मोदी के कई करारों पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत और अमेरिका ने अपने संबंधों में ‘नये युग ’ का संकेत दिया।

कुल प्रेक्षकों का कहना है कि अमेरिका की चीन पर नियंत्रण रखने के लिए भारत को इस्तेमाल करने की मंशा है लेकिन ज्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत उसके चक्कर में नहीं पड़ेगा। झाउ ने कहा, ‘ओबामा तथाकथित ‘चीनी खतरे’ का मुकाबला करने के लिए गठबंधन के तहत भारत को अमेरिका के साथ संबंध मजबूत बनाने के लिए उसपर दबाव डाल रहे है क्योंकि अमरिका नई दिल्ली के आर्थिक सुधार की धीमी गति और अंतरराष्ट्रीय मामलों में अमेरिका के साथ खड़े रहने की भारत की अनिच्छा से पहले से ही हताश है।’

अखबार के मुताबिक विश्लेषक हालांकि मानते हैं कि भारत के अमेरिका का सहयोगी बनने की संभावना नहीं है क्योंकि वह अपनी पुरानी गुटनिरपेक्ष राजनयिक रणनीति का पालन करता है। झाउ ने कहा, ‘इसके अलावा, देश की अर्थव्यवस्था में तेजी लाना मोदी की शीर्ष प्राथमिकता है और उन्हें मालूम है कि निवेश और प्रौद्योगिकी के लिहाज से देश की अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए उन्हें चीन की जरूरत है।’

उनके हिसाब से मोदी विभिन्न वैश्विक शक्तियों के बीच मतभेद का फायदा उठा रहे हैं। चाइना इंस्टीट्यूट्स ऑफ कंटेम्पटरी इंटरनेशनल रिलेसंश के शोधवेत्ता फू श्याओछियांग ने भी झाउ के विचारों से सहमति जतायी है।

फू ने कहा, ‘भारत हमेशा अंतरराष्ट्रीय मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहता है जिसके लिए उसे अमेरिकी सहयोग की जरूरत है। लेकिन सरकार को पता है कि अमेरिका के साथ गठबंधन चीन-भारत संबंध के लिए मुश्किलभरा हो सकता है।’ शंघाई एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज में इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस के शोधवेत्ता हू झियोंग ने ग्लोबल टाईम्स से कहा, ‘मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ कई आर्थिक सहयोग करार किए जब उन्होंने सितंबर (2014) में भारत की यात्रा की थी। ऐसे में अमेरिका का सहयोगी बन जाना अव्यावहारिक है।’ उन्होंने कहा कि मोदी पिछले भारतीय नेताओं के विपरीत अक्सर ‘अनजाने में ’ अंतरराष्ट्रीय मामलों में अमेरिका के साथ हो जाते हैं क्योंकि वह अपनी एक उपलब्धि के तौर पर भारत की अहम भूमिका प्रदर्शित करना चाहते हैं।

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