पाकिस्तान की आईएसआई गुप्त तरीके से उन लोगों को खत्म करने में लगी है जो पाकिस्तानी सेना के जुल्म और पाकिस्तान में लगातार हो रहे मानव अधिकार उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.
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नई दिल्ली: कोरोना वायरस (Coronavirus) का कहर जारी है लेकिन पाकिस्तान की आईएसआई गुप्त तरीके से उन लोगों को खत्म करने में लगी है जो पाकिस्तानी सेना के जुल्म और पाकिस्तान में लगातार हो रहे मानव अधिकार उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.
इस मामले में सबसे ताजा उदाहरण पश्तून नेता आरिफ वजीर पर कल हुआ हमला है जिसमें उनकी मौत हो गई. आरिफ वजीर पर आरोप है कि उन्होंने इस महीने अफगानिस्तान में जाकर पाकिस्तान के खिलाफ बयान दिया था, जिसके बाद से उन्हें जान से मारने की धमकियां दी जा रही थीं.
शुक्रवार को वजीरिस्तान में उनके घर के बाहर कुछ आतंकियों ने उन्हें गोली से जख्मी कर दिया था, जिसके बाद उन्हें इस्लामाबाद के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसमें उनकी आज मौत हो गई.
आरिफ वजीर की हत्या को गंभीरता से लेते हुए एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक स्वत्रंत जांच की मांग की है. आरिफ वजीर पश्तूनियों के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की ज्यादतियों के खिलाफ पिछले कुछ सालों से लगातार आवाज उठा रहे थे.
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उन्होंने इस मामले में रैली भी की थी जिसको लेकर पाकिस्तान आर्मी उनसे नाराज थी. आरिफ की हत्या से एक बात साफ हो गयी है कि पाकिस्तान में कोई सुरक्षित नहीं है, चाहें वो पत्रकार ही क्यों न हो.
पाकिस्तानी सेना से जान बचाकर विदेशों में रह रहे समाज सेवी और पाकिस्तानी पत्रकारों को भी लगातार धमकियां दी जा रही हैं. बलोचिस्तान के एक्टिविस्ट और स्वीडन में बसे साजिद हुसैन की डेड बॉडी को स्टॉकहोम से करीब 60 किलोमीटर दूर एक नदी से बरामद किया गया है.
साजिद पाकिस्तान में रहने के दौरान लगातार पाकिस्तान सेना द्वारा बेगुनाहों की हत्या और अपहरण के खिलाफ लिखते रहे लेकिन जब उन्हें परेशान किया जाने लगा तो उन्होंने स्वीडन में जा कर बसने का फैसला किया. साजिद पिछले 2 मार्च से ही लापता थे और अब उनकी डेड बॉडी मिलने से उनकी मौत का रहस्य गहरा गया है.
कई लोगों का मानना है कि पाकिस्तान की ISI के इशारे पर उन लोगों पर हमले कराए जा रहे हैं जो पाकिस्तान में मानव अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.
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इसी तरह अहमद वकास नाम के एक ब्लॉगर पर भी यूरोप के Rotterdom में पिछले फरवरी में एक जानलेवा हमला किया गया था जिसमें उनकी जान बच गयी. वकास, साजिद की तरह लगातार पाकिस्तानी सेना की हैवानियत के बारे में लिखते रहे और इसके लिए उन्हें पाकिस्तान छोड़ना पड़ा था.