दुनियाभर में कई देश ऐसे हैं जहां आज भी महिलाओं को हीन भावना से देखा जाता है. कभी धर्म तो कभी परंपरा के नाम पर महिलाओं पर अत्याचार होता रहा है. ऐसी ही एक परंपरा या यूं कहें कि अत्याचार है फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (FGM) जिसे आसान भाषा में महिलाओं का खतना कहा जाता है. इंटरनेशनल लेवल पर रोक के बावजूद दुनिया में कई देश ऐसे हैं जहां पर परंपरा के नाम पर आज भी महिलाओं का खतना आम बात है. एक स्टडी के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 20 करोड़ महिलाओं और लड़कियों का खतना हुआ है.
अफ्रीकी देशों में ये परंपरा आम है. यमन, इराक, मालद्वीप और इंडोनेशिया में महिला खतना सबसे ज्यादा चलन में है. लेकिन यह प्रथा एशिया, मध्य पूर्व, लैटिन अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी अमेरिका के कई विकसित देशों में आज भी जारी है. साल 2020 में यूनिसेफ ने आंकड़े जारी किए जिनके मुताबिक दुनियाभर में करीब 20 करोड़ बच्चियों और महिलाओं के जननांगों को नुकसान पहुंचाया गया है.
जिन देशों में लगभग सभी महिलाओं को खतना कराना पड़ता है, उनमें सोमालिया, जिबूती और गिनी शामिल हैं. ये तीनों ही देश अफ्रीकी महाद्वीप में हैं.
महिलाओं के जननांगों को जानबूझकर काटने की परंपरा को आम बोलचाल की भाषा में महिलाओं का खतना कहा जाता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अनुसार ऐसी कोई भी प्रक्रिया जो बिना मेडिकल कारणों के महिला गुप्तांग को नुकसान पहुंचाती है, वह इस श्रेणी में आती है.
लड़कियों का खतना शिशु अवस्था से लेकर 15 साल तक की उम्र के बीच होता है. आम तौर पर परिवार की महिलाएं ही इस काम को अंजाम देती हैं. यह प्रक्रिया लड़कियों और महिलाओं में ने केवल शारीरिक बल्कि मानसिक नुकसान भी पहुंचाती है.
खतना के कारण महिलाओं को रक्तस्राव, बुखार, संक्रमण और मानसिक आघात जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. जबकि कुछ मामलों में तो उनकी मृत्यु भी हो जाती है.
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस प्रथा पर कानूनन रोक है, बावजूद इसके यह प्रथा जारी है. जिसके पीछे की सबसे बड़ी वजह सामाजिक दबाव है.
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