अक्सर ये पूछा जाता है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद मिखाइल गोर्बाचेव का क्या हुआ. वह कहां गए. उनके पास कितनी संपत्ति थी. वो कैसे रहते थे. क्या करते थे. तो आइए आपको इन सभी सवालों का जवाब देते हैं. गोर्बाचेव का जन्म गरीब परिवार में हुआ था. वो स्तालिन राज में बड़े हुए. उन्होंने खेतों में काम किया. कानून की पढ़ाई की. पढ़ाई के दौरान ही कॉलेज में उन्हें रैसा से प्यार हो गया और उन्होंने उनसे शादी की. आमतौर पर सोवियत संघ और रूस के राष्ट्रपतियों को वूमनाइजर के तौर पर जाना जाता है लेकिन गोर्बाचेव के बारे में कहा जाता है कि वो ऐसे नहीं थे. उन्होंने केवल अपनी पत्नी को समर्पित जीवन बिताया. वे महिलाओं की बहुत इज्जत करते थे. कुछ साल पहले उनकी पत्नी रैसा की कैंसर से मृत्यु हो गई थी.
गोर्बाचेव प्रेस की आजादी के समर्थक थे. उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी दशक तक कई इंटरव्यू दिए. वो वैश्विक घटनाओं पर खुलकर टिप्पणी करते थे. उन्होंने ग्लासनोस्ट की नीति (पूर्व सोवियत संघ में 1985 में मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा शुरू की गई सरकार को खुलकर सलाह देने और सूचना के व्यापक प्रसार की नीति) और भाषण की स्वतंत्रता को मान्यता दी थी, जिसपर उनके पहले के शासन के दौरान गंभीर रूप से अंकुश लगा दिया गया था. गोर्बाचेव ने पेरेस्त्रोइका या पुनर्गठन नामक आर्थिक सुधार का एक कार्यक्रम भी शुरू किया जो आवश्यक था, क्योंकि सोवियत अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति और आपूर्ति की कमी दोनों से जूझ रही थी. उनके समय में प्रेस और कलात्मक समुदाय को सांस्कृतिक स्वतंत्रता दी गई थी.
पर्यावरणीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए गोर्बाचेव ने 1992 में ग्लोबल इनवायरमेंटल एनजीओ, ग्रीन क्रॉस की स्थापना की थी. आपको बताते चलें कि अपना पद छोड़ने के काफी समय बाद तक वो विदेशी नेताओं के साथ बैठक करते रहे. साल 2011 में जब वो 80 साल के हो गए तब उनके सम्मान में शेरोन स्टोन और केविन स्पेसी ने लंदन के अल्बर्ट हॉल में एक मैराथन चैरिटी कार्यक्रम का आयोजन किया. तब बिल क्लिंटन और बोनो समेत अन्य बड़ी हस्तियों ने उन्हें शुभकामनाएं दी थीं.
1996 के राष्ट्रपति चुनाव में, गोर्बाचेव को 1% से भी कम वोट मिले. कहा जाता है कि इस चुनाव में उनके लंबे समय से राजनीतिक विरोधी बोरिस येल्तसिन ने मीडिया के बनाए गए माहौल के चलते आसानी से जीत हासिल की. साल 2000 में गोर्बाचेव ने एक डेमोक्रेटिक पार्टी के गठन में बड़े पैमाने पर सहयोग किया लेकिन उन्होंने फिर किसी राजनीतिक पद की मांग नहीं की.
उनके पास कई मकान, फ्लैट और कॉटेज मास्को से लेकर ब्रिटेन और अमेरिका तक में थे. उनकी कई कंपनियां थीं. जर्मनी में उनके पास बावरिया की पहाड़ी पर 27 एकड़ में फैला शानदार किलेनुमा बंगला है जहां वो पूरी शानोशौकत के साथ शानदार जिंदगी गुजारते थे. आपको बताते चलें कि आलीशान घर में 17 कमरे हैं.
अपने करीबी लोगों की सलाह के खिलाफ जाकर, गोर्बाचेव ने अपने चैरिटी इंस्टीट्यूट की फंडिग के लिए पश्चिमी देशों के बड़े ब्रांड्स के विज्ञापनों में काम किया. गौरतलब है कि उनका गोर्बाचेव फाउंडेशन दुनियाभर में काम करता है. सोवियत संघ के राष्ट्रपति पद से हटने के बाद उन्हें दुनियाभर में तमाम अवार्ड्स और सम्मान मिले. नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला. बहुत कम लोगों को जानकारी है कि उन्होंने दो कामर्शियल एड में भी काम किया. एक एड पिज्जा हट का था तो दूसरा ऑस्ट्रिया की फेडरल रेलवे ओबीबी का. वैसे उन्होंने फैशन ब्रांड लुईस विटन के लिए अपनी तस्वीरों के इस्तेमाल की इजाजत दी थी.
राष्ट्रपति पद का कार्यकाल और सोवियत संघ के टूटने के बाद वो ज्यादातर विदेशों में अमूमन अमेरिका या जर्मनी में रहते थे. उन्हें पश्चिमी यूरोप को आजादी और जर्मनी के एकीकरण को मंजूरी देने वाले शख्स के तौर पर देखा जाता है, लेकिन उनके अपने देश में गोर्बाचेव वो नेता हैं, जिसने अपना पूरा साम्राज्य अपनी आंखों के सामने गंवा दिया था. गोर्बाचेव को रूस के बड़े साहित्यकार दोस्तोव्स्की बहुत पसंद थे और वो जासूसी नॉवेल पढ़ना भी पसंद करते थे.
रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) की शुरुआत होने के बाद से कहा जा रहा है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन (Vladimir Putin) विखंडित हुए सोवियत संघ को एक करना चाहते हैं. इन दिनों सोवियत संघ को बहुत ज्यादा याद किया जा रहा है. लोग जानना चाहते हैं कि ये कितना विशाल था और कैसे टूटा. बहुत से लोग रूस को अब भी सोवियत संघ कहकर बुलाते हैं और यूएसएसआर के ज़िक्र के साथ-साथ मिखाइल गोर्बाचेव का नाम लेते हैं. मिखाइल गोर्बाचेव वही शख्स हैं जिनके देखते ही देखते सोवियत संघ के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे. आज गोर्बाचेव का निधन हो गया तो एक बार फिर पूरी दुनिया उन्हें याद कर रही है.
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