मिरर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान ने दशकों तक गृह युद्ध (Civil War) और विनाशकारी संघर्ष का दंश झेला है. 1990 के दशक में अफगानिस्तान में तालिबान का उदय हुआ. यह आतंकी संगठन अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कट्टरपंथी मुसलमानों का है. तालिबान की स्थापना इसी उद्देश्य के साथ हुई थी कि अफगानिस्तान में इस्लामिक सरकार को काबिज करना है और यहां इस्लामिक शरिया कानून को लागू करना है. (फाइल फोटो/साभार- रॉयटर्स)
तालिबान के आतंकियों ने 1996 में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया था और उसके बाद वहां इस्लामिक शरिया कानून लागू कर दिया था. तब महिलाओं के स्कूल जाने और काम करने पर पाबंदी लगा दी गई थी. लोगों के म्यूजिक सुनने और फिल्म देखने पर बैन लगा दिया गया था. (फाइल फोटो/साभार- रॉयटर्स)
फिर अमेरिका में 9/11 हमले के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की सरकार ने तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता से बेदखल कर दिया था. लेकिन इसके बाद भी ये युद्ध खत्म नहीं हुआ. इसके बाद दशकों तक शांति वार्ता जारी रही लेकिन अफगानिस्तान का मुद्दा कभी हल नहीं हो पाया. अब आखिरकार अमेरिका और नाटो के जवान अफगानिस्तान छोड़कर जा रहे हैं और तालिबान का कब्जा पूरे अफगानिस्तान पर तेजी से बढ़ रहा है. (फाइल फोटो/साभार- रॉयटर्स)
रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान के जिन क्षेत्रों में तालिबान का कब्जा हो चुका है, वहां आतंकवादी लोगों से कह रहे हैं कि वो अपनी 12 साल से ज्यादा उम्र की बेटियों को उनके लड़ाकों के हवाले कर दें क्योंकि वो उनसे निकाह करना चाहते हैं. इसके अलावा तालिबान महिलाओं को पढ़ाई पर रोक लगा सकता है. महिलाओं के अकेले घर से निकलने पर पाबंदी लगाई जा सकती है. (फाइल फोटो/साभार- रॉयटर्स)
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद यह देश पाकिस्तान के बाद आतंकियों का बड़ा ट्रेनिंग ग्राउंड बन सकता है. तालिबान कह चुका है कि उसका टारगेट अफगानिस्तान में इस्लामिक सरकार को स्थापित करना है. तालिबानी आतंकी अफगानिस्तान के संविधान की जगह देश में इस्लामिक शरिया कानून लागू कर सकते हैं. (फाइल फोटो/साभार- रॉयटर्स)
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