दो साल पहले सुलगा था श्रीलंका, अब बांग्लादेश में तख्तापलट...डेढ़ दशक में क्यों बढ़े विरोध-प्रदर्शन
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दो साल पहले सुलगा था श्रीलंका, अब बांग्लादेश में तख्तापलट...डेढ़ दशक में क्यों बढ़े विरोध-प्रदर्शन

Protests Increased in World: जर्नल नेचर में छपी एक खबर में कहा गया कि जो विरोध-प्रदर्शन हिंसक होते हैं, उनकी तुलना में अहिंसक प्रदर्शनों का ज्यादा प्रभाव पड़ता है. स्टडी में साल 2006 से लेकर 2020 के बीच हुए विरोध-प्रदर्शनों का विश्लेषण किया गया है. इसमें भारत में साल 2020 में हुआ किसान आंदोलन सबसे बड़ा था.

दो साल पहले सुलगा था श्रीलंका, अब बांग्लादेश में तख्तापलट...डेढ़ दशक में क्यों बढ़े विरोध-प्रदर्शन

Famous Protests: बांग्लादेश में हालात काबू से बाहर हो गए हैं और प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्ता पलट हो गया है. इसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और देश के बाहर चली गई हैं. सूत्रों के मुताबिक शेख हसीना भारत आ सकती हैं. बांग्लादेश के सेना प्रमुख वकार उज जमां ने कहा कि शेख हसीना के इस्तीफे के बाद अंतरिम सरकार बागडोर संभालेगी.

बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन में अब तक 106 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और प्रदर्शनकारियों ने पीएम आवास पर कब्जा कर लिया है और हसीना की पार्टी आवामी लीग के दफ्तर में आग लगा दी है और हसीना के पिता शेख मुजीबर रहमान की मूर्ति ध्वस्त कर दी.

आरक्षण की आग में जला बांग्लादेश

लोकल टीवी चैनल ‘जमुना’ ने बताया कि विवादित आरक्षण व्यवस्था को लेकर जनता हसीना सरकार के खिलाफ लंबे वक्त से प्रदर्शन कर रही है, जिसके बाद हसीना को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा. इस विवादास्पद आरक्षण प्रणाली के तहत 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले लोगों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान है. 

समाचार चैनल ने बताया कि हसीना और उनकी छोटी बहन शेख रेहाना एक हेलीकॉप्टर से देश से रवाना हुई हैं. इसके कुछ घंटों बाद सैकड़ों प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास में घुस गए. इससे पहले, बांग्लादेश सरकार ने प्रदर्शनकारियों के आम जनता से ‘लॉन्ग मार्च टू ढाका’ में भाग लेने का आह्वान करने के बाद इंटरनेट को पूरी तरह बंद करने का आदेश दिया.  

श्रीलंका में भी दो साल पहले बिगड़ गए थे हालात

ऐसे ही हालात आज से दो साल पहले श्रीलंका में भी नजर आए थे. पड़ोसी देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी. इसके बाद पूरे देश में हिंसा भड़क गई और जनता सड़कों पर उतर आई थी. इसके बाद राष्ट्रपति के कहने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा था. जनता ने कई सांसदों तक के घर जला दिए थे. सेना जब हालात संभालने के लिए उतरी तो झड़प में कई लोगों की गोली लगने से मौत हो गई जबकि सैकड़ों घायल हो गए थे. 

डेढ़ दशक में तेजी से बढ़े आंदोलन

अगर बीते डेढ़ दशक पर नजर डालें तो आए दिन किसी ना किसी जगह से विरोध-प्रदर्शन की खबरें आती रहती हैं. साल 2006 के बाद से विरोध-प्रदर्शनों में तीन गुना का इजाफा हुआ है, जो कृषि, राजनीति, जलवायु परिवर्तन या असमानता से जुड़े हुए हैं.

अहिंसक प्रदर्शनों का ज्यादा असर

जर्नल नेचर में छपी एक खबर में कहा गया कि जो विरोध-प्रदर्शन हिंसक होते हैं, उनकी तुलना में अहिंसक प्रदर्शनों का ज्यादा प्रभाव पड़ता है. स्टडी में साल 2006 से लेकर 2020 के बीच हुए विरोध-प्रदर्शनों का विश्लेषण किया गया है. इसमें भारत में साल 2020 में हुआ किसान आंदोलन सबसे बड़ा था. जबकि 2010 में अरब स्प्रिंग, 2020 में ब्लैक लाइफ मैटर और ऑक्युपाई आंदोलन ने भी बड़ा प्रभाव डाला था. जब से हमास और इजरायल जंग के बाद भी काफी तादाद में विरोध-प्रदर्शन हुए हैं. 

स्टडी में कहा गया है कि साल 1900 से लेकर 2006 के बीच जो 300 विरोध-प्रदर्शन हुए, उनके पीछे का मकसद नेताओं को हटाना था. उदाहरण से समझें तो फिलीपींस में पीपुल्स पावर क्रांति आंदोलन हुआ था, जिसमें हिंसा नहीं हुई और इसी ताकत के बल पर 1986 में तानाशाह फर्डिनेंड मार्कोस को हटाया गया.  

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