शेवेलियर डी'ऑन: कहानी फ्रांस के उस मर्द की जो 33 साल एक औरत की तरह जिया
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शेवेलियर डी'ऑन: कहानी फ्रांस के उस मर्द की जो 33 साल एक औरत की तरह जिया

Chevalier d'Éon Story: उसका जन्म एक पुरुष के रूप में हुआ था लेकिन जिंदगी के आखिरी 33 साल एक महिला की तरह गुजारने पड़े. पढ़‍िए चार्ल्स डी'ऑन डी ब्यूमोंट या चार्लोट डी'ऑन डी ब्यूमोंट की कहानी.

शेवेलियर डी'ऑन: कहानी फ्रांस के उस मर्द की जो 33 साल एक औरत की तरह जिया

Chevalier d'Éon Story In Hindi: फ्रांसीसी इतिहास की यह कहानी 250 साल से भी पुरानी है. 1728 में एक बच्चे का जन्म होता है. उसका नाम रखा जाता है चार्ल्स डी'ऑन डी ब्यूमोंट. आगे चलकर वह बच्चा फ्रांस के लिए युद्ध लड़ता है, जासूसी करता है, राजदूत बनता है. 49 साल तक चार्ल्स की पहचान एक पुरुष की रही. इस दौरान उसने तमाम जासूसी मिशनों को अंजाम दिया. फ्रांस के राजा लुई 16वें उससे इतने प्रभावित थे कि 'शेवेलियर' की उपाधि दे डाली. तबसे चार्ल्स का एक नाम शेवेलियर डी'ऑन भी हो गया. 1762 में जब शेवेलियन डी'ऑन ने फ्रांस छोड़ा तब उसकी पहचान इतनी भर थी. जुलाई 1777 में जब वह वापस लौटा तो फ्रांस की सरकार ने एक घोषणा की. जिसमें शेवेलियर को एक लेखक, बुद्धिजीवी और एक महिला बताया गया. इंग्लैंड की अदालतों ने भी शेवेलियर को महिला घोषित कर दिया. जिंदगी के बाकी साल उसने एक महिला की तरह गुजारे. नाम मिला- चार्लोट डी'ऑन डी ब्यूमोंट. 1810 में जब डी'ऑन की बेहद कंगाली में मौत हुई, तब डॉक्टरों ने उसके शरीर का चेकअप किया. उन्होंने करार दिया कि कि शेवेलियर डी'ऑन जैविक रूप से पुरुष था. अखबारों में सुर्खियां बनीं. शेवेलियर डी'ऑन को 'दुनिया का सबसे बड़ा धोखेबाज' कहा गया.

आज शेवेलियर डी'ऑन के जिक्र पर इतिहासकारों में बहस छिड़ जाती है. कुछ मानते हैं कि डी'ऑन अपनी लैंगिक पहचान को लेकर स्पष्ट नहीं थे. कुछ का मानना है कि शेवेलियर डी'ऑन ने सामाजिक और राजनीतिक रणनीति के तहत लिंग बदला. कारण जो भी रहा हो, शेवेलियर डी'ऑन की कहानी 18वीं सदी के यूरोप की सबसे दिलचस्प कहानियों में से एक है.

The King’s Secret: जासूसी से डिप्लोमेसी तक

चार्ल्स डी'ऑन डी ब्यूमोंट का जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ था. जन्म के समय उसके लिंग को लेकर कोई संशय नहीं था. पेरिस में पढ़ाई पूरी करने के बाद चार्ल्स ने सिविल सर्विस में जगह बनाई. 1756 आते-आते चार्ल्स को रूस में फ्रांसीसी राजदूत का सचिव बना दिया गया था. लेकिन यह नौकरी तो केवल दिखावे की थी. असल में चार्ल्स एक खुफिया जासूसी नेटवर्क का हिस्सा था. le Secret du Roi यानी King’s Secret, यह लुई 15वें का फैलाया जासूसों और डिप्लोमेटिक एजेंट्स का नेटवर्क था. चार्ल्स को जिम्मा दिया गया था रूस में महारानी एलिजाबेथ से अच्छे संबंध स्थापित करें. हालांकि, उसी साल फ्रांस और ब्रिटेन के बीच 'सात साल का युद्ध' शुरू हो गया. 

सात साल के युद्ध (1756-1763) के दौरान, चार्ल्स ने एक सैनिक के रूप में लड़ाई लड़ी. हालांकि, ब्रिटेन के आंगे फ्रांस पस्त होता दिख रहा था. मार्च 1762 में, लुई 15वें ने शांति वार्ता का प्रस्ताव रखा. अगस्त 1762 में पेरिस की संधि पर बातचीत करने के लिए चार्ल्स को लंदन भेजा गया. अगले वर्ष संधि पर हस्ताक्षर हुए. चार्ल्स को इसके लिए ऑर्डर ऑफ सेंट-लुई से सम्मानित किया गया. अब वह आधिकारिक तौर पर 'शेवेलियर' (नाइट) बन गए थे. उस वक्त चार्ल्स की उम्र सिर्फ 35 साल थी.

संधि की वजह से, फ्रांस से उत्तर अमेरिका की कॉलोनियां छिन गईं. कर्ज में डूब रहे फ्रांस ने ब्रिटेन से बदला लेने की ठानी. King’s Secret ग्रुप को नया मकसद दिया गया- ब्रिटेन पर आक्रमण. अप्रैल 1763 में, शेवेलियर डी'ऑन को मंत्री बना दिया गया. राजदूत का दर्जा देकर ब्रिटिश दरबार में भेजा गया. लेकिन असली राजदूत तो कॉम्टे डी गुएर्ची था, जिनके आते ही डी'ऑन को फिर सचिव बना दिया जाता. डी'ऑन ने अपने उच्चाधिकारियों को लिखे पत्रों में इस बात पर नाराजगी जाहिर की. उसके व्यवहार से तंग आकर, छह महीनों के भीतर ही पद से हटा दिया गया. लुई 15वें ने डी'ऑन को फ्रांस वापस प्रत्यर्पित करने का आदेश दिया, लेकिन ब्रिटेन के विदेश मंत्री ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि डी'ऑन एक निजी नागरिक के रूप में ब्रिटेन में रहने के लिए स्वतंत्र है.

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फ्रांस की सरकार को किया ब्लैकमेल

फ्रांसीसी विदेश मंत्रालय ने डी'ऑन के अपहरण और गिरफ्तारी के लिए कई बार कोशिशें कीं. जवाब में डी'ऑन ने धमकाया कि वह सारे राज उगल देगा. मार्च 1764 में उसने एक एक किताब छापी जिसमें मंत्री बनाए जाने के बाद की चिट्ठियों का ब्यौरा था. कहा कि और किताबें भी आएंगी. उस एक किताब से खासा विवाद पैदा हुआ. इस विवाद ने यूरोप के राजनीतिक मंच पर डी'ऑन को प्रमुख किरदार बना दिया. ब्रिटेन में डी'ऑन की लोकप्रियता बड़ी तेजी से बढ़ी. लुई 15वें ने चुपचाप डी'ऑन को गोपनीय दस्तावेजों के बदल ताउम्र पेंशन देने का फरमान दिया. इसके बाद डी'ऑन ने कोई किताब नहीं छापी लेकिन उसे फ्रांस आने से भी प्रतिबंधित कर दिया गया था. अगला एक दशक उसने लंदन में ही गुजारा.

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ब्रिटिश म्यूजियम में शेवेलियर डी'ऑन का पोर्ट्रेट 

 1774 में लुई 15वें की  मौत के बाद, लुई 16वें ने फ्रांस की गद्दी संभाली. वह इस खुफिया सेवा को खत्म करना चाहते थे और ब्रिटेन पर आक्रमण की मंशा भी नहीं रखते थे. इसलिए 1775 में फ्रांसीसी सरकार ने डी'ऑन से फिर संपर्क साधा. उसकी फ्रांस वापसी और जासूसी से जुड़े सारे खुफिया दस्तावेज लौटाने पर चर्चा हुई. महीनों तक बातचीत के बाद तय हुआ कि राजा उसके बड़े कर्ज चुका देंगे और पेंशन भी देंगे और सबके सामने डी'ऑन को एक महिला के रूप में मान्यता देंगे.

एक महिला के रूप में फ्रांस में वापसी

यह प्लान इसलिए काम कर जाता क्योंकि फ्रांस की सरकार के साथ-साथ बहुत सारे लोग पहले से मानते थे कि डी'ऑन असल में एक महिला है. 1770 से ही ब्रिटेन में ऐसी अफवाहें उड़नी शुरू हो गई थीं. कुछ इतिहासकारों को लगता है कि ये अफवाहें खुद डी'ऑन ने फैलाई थीं ताकि 1775 में जब फ्रांसीसी सरकार उसे बुलाने आए तो उसके पास एक कहानी तैयार हो. करीब 18 महीनों की मशक्कत के बाद, आखिरकार जुलाई 1777 में डी'ऑन इंग्लैंड से रवाना हुआ. तब तक लगभग सारे यूरोप में यह कहानी फैल चुकी थी कि डी'ऑन का जन्म एक लड़की के रूप में हुआ था लेकिन उसके पिता को बेटा चाहिए था इसलिए उसे लड़के की तरह पाला-पोसा गया. उसने एक राजदूत और सैनिक के रूप में शानदार काम किया और अब नए राजा उस पर दबाव बना रहे हैं कि वह जन्म वाले लिंग के हिसाब से ही रहे. सरकार के साथ हुए समझौते की एक शर्त यह भी थी कि डी'ऑन एक महिला की पोशाक में फ्रांस लौटेंगे. हालांकि, जब डी'ऑन ने फ्रांस की धरती पर कदम रखा, तब उन्होंने सैनिक की पर्दी पहन रखी थी. उन्हें महिलाओं के कपड़े पहनना शुरू करने में कुछ महीने और लगे.

21 नवंबर, 1777 को मैडेमोसेले ला शेवेलियरे डी'ऑन को औपचारिक रूप से वर्साय में दरबार के आगे पेश किया गया. डी'ऑन को एक महिला के रूप में एडजस्ट करने में थोड़ा वक्त जरूर लगा लेकिन बाकी दुनिया तो उन्हें औरत के रूप में ही देखती थी. 1778 में जब फ्रांस, अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुआ तब डी'ऑन ने कहा कि वे फिर से सैनिक बनकर फ्रांस के लिए युद्ध करना चाहती है. लेकिन फ्रांसीसी सरकार ने मना कर दिया. जब डी'ऑन ने जिद पकड़ ली तो फ्रांस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. 19 दिन बाद इस वादे पर रिहा किया कि फिर ऐसी जिद नहीं करेंगी. डी'ऑन की हर राजनीतिक चाल को सरकार नाकाम करती गई. आखिरकार डी'ऑन को उनके पैतृक घर में रिटायर होने को मजबूर कर दिया गया.

कंगाली में गुजरे आखिरी दिन

1785 में डी'ऑन वापस इंग्लैंड पहुंची. वहां किसी हीरोइन की तरह उनका स्वागत हुआ. हालांकि, 1789 में जब फ्रांस में क्रांति की चिंगारी भड़की तो डी'ऑन की पेंशन रोक दी गई. डी'ऑन की माली हालत खस्ता होने लगी. उन्होंने तमाम चीजों को बेचना शुरू कर दिया. तंगी इस कदर थी कि डी'ऑन को एक और बुजुर्ग महिला के साथ फ्लैट शेयर करना पड़ा. 21 मई, 1810 को 81 साल की उम्र में डी'ऑन की मृत्यु हुई. जब साथ रहने वाली महिला ने डी'ऑन के शव को देखा तो दंग रह गई. उसने डॉक्टर बुला लिए. डॉक्टरों ने जांच के बाद कहा कि डी'ऑन तो जैविक रूप से पुरुष था. यानी उसने जिंदगी के आखिरी 33 साल एक महिला के रूप में गुजार दिए और किसी को पता तक नहीं चला.

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