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Ukraine Crisis: युद्ध में होने वाली तबाही की तस्वीरों को देख कर दुनियाभर के आम लोग बहुत दुखी होते हैं और प्रार्थना करते हैं कि युद्ध जल्दी से जल्दी रुक जाए. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके लिए युद्ध एक उद्योग बन चुका है या कह लीजिए हथियार बेचने की एक दुकान (Weapons Industry) बन गया है. ऐसे लोग चाहते हैं कि दुनिया में हर समय कहीं ना कहीं पर युद्ध चलता रहे और उनकी ये दुकान भी चलती रहे.
रशिया और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बाद से दुनिया की हथियार बनाने वाली बड़ी बड़ी कम्पनियां मोटा पैसा कमा रही हैं और उनके Shares आसमान छू रहे हैं. ये सारी कम्पनियां अमेरिका जैसे उन्हीं पश्चिमी देशों की हैं, जो शांति और मानव अधिकारों की सबसे ज़्यादा बातें करते हैं. ये देश पहले कमजोर देशों को अस्थिर करते हैं और फिर उन्हें युद्ध में झोंक कर वहां हथियारों की दुकान (Weapons Industry) खोल लेते हैं.
सबसे पहले आपको इस युद्ध का Latest Update बताते हैं. रशिया के मीडिया ने दावा किया है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच जल्द मुलाकात हो सकती है. ये खबर उस समय आई है, जब मंगलवार को Turkey के इस्तांबुल शहर में दोनों देशों का एक प्रतिनिधिमंडल युद्ध रोकने के लिए मिला. ये मीटिंग 3 घंटे तक चली और इसमें रशिया और यूक्रेन के बीच एक शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के बारे में चर्चा हुई. रशियन मीडिया का दावा है कि अगर इस शांति संधि पर हस्ताक्षर हो जाते हैं और यूक्रेन रशिया की शर्तों को मान लेता है तो ये युद्ध रुक जाएगा. इसके साथ ही व्लादिमीर पुतिन, जेलेंस्की से मिलने के लिए राजी हो जाएंगे. हालांकि आज बड़ा सवाल ये है कि क्या ये युद्ध इतनी से समाप्त होगा?
असल में ये युद्ध अब हथियार बनाने वाली कम्पनियों के लिए पैसा छापने की मशीन (Weapons Industry) बन गया है. अमेरिका की एक कम्पनी है, जिसका नाम है Lockheed Martin. ये कम्पनी दुनिया के अलग अलग देशों को हथियारों की सप्लाई करती है, जिनमें यूक्रेन भी है. यूक्रेन रशिया के Tanks को जिन Javelin Anti-Tank Missiles से निशाना बना रहा है, वो मिसाइल ये कम्पनी ही बनाती है.
पिछले महीने जब रशिया की सेना यूक्रेन में दाखिल हुई थी, तब अमेरिका के New York Stock Exchange में इस कम्पनी के एक शेयर की कीमत 355 US Dollars यानी लगभग 27 हजार रुपये थी. वहीं युद्ध के एक महीने बाद इस कम्पनी के एक शेयर की कीमत 453 US Dollars यानी लगभग 35 हज़ार रुपये हो चुकी है. यानी युद्ध की वजह से इस कम्पनी के Shares में 27 प्रतिशत का उछाल आया है.
मतलब यूक्रेन में युद्ध के दौरान जब-जब कोई इमारत नीचे गिरती है, तब-तब हथियार बनाने वाली इन कम्पनियों के Stocks ऊपर जाते हैं. युद्ध, दो चीज़ों से लड़ा जाता है. पहली है सेना और दूसरे हैं हथियार. किसी भी युद्ध में हथियार ही तय करते हैं कि युद्ध किस दिशा में जाएगा या कौन सा देश उस युद्ध को अंतिम रूप देगा. उदाहरण के लिए, जैसा दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका ने जापान पर परमाणु हमला करके किया था. इस हमले के बाद युद्ध पर पूर्ण विराम लग गया था और जापान भी कमजोर हो गया था.
यानी यूक्रेन और रशिया के बीच ये युद्ध जितने दिन तक चलेगा, उतना ही हथियार बनाने वाली इन कम्पनियों को फायदा होगा. इसे आप एक और उदाहरण से समझ सकते हैं. जर्मनी की एक डिफेंस कम्पनी है, जिसका नाम है Rhein Metall (A-G). अभी युद्ध में इस कम्पनी द्वारा बनाए गए किसी भी हथियार का इस्तेमाल नहीं हो रहा है. इसके बावजूद पिछले दो महीने में इस कम्पनी के Share Price में 143 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है.
सोचिए, यूक्रेन और रशिया में से कोई भी देश इस कम्पनी से हथियार नहीं खरीदता. इसके बावजूद युद्ध की वजह से इस कम्पनी के शेयर की कीमतें ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई हैं. इससे क्या पता चलता है.. इससे ये पता चलता है कि इस युद्ध ने दुनिया के बाकी देशों में बेचैनी पैदा कर दी है. ये देश समझ चुके हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता. यूक्रेन ने ऐसी ही बड़ी गलती की. वो पश्चिमी देशों पर निर्भर होकर रशिया के खिलाफ़ युद्ध में तो कूद गया लेकिन आज हथियारों के लिए उसे बार बार अमेरिका और NATO देशों से मदद मांगनी पड़ रही है. ये देखने के बाद दुनिया के दूसरे देश नहीं चाहते कि भविष्य में उनके सामने भी ऐसी स्थिति आए.
इसलिए इन देशों ने अचानक से अपना रक्षा बजट बढ़ाने का ऐलान कर दिया है. इन देशों में Romania, Sweden, Denmark, चीन और Poland जैसे देश प्रमुख हैं. इसके अलावा ब्रिटेन, फ्रांस और कनाडा जैसे देश भी अपने रक्षा बजट को बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं.
अब सोचिए, जब ये देश अपना रक्षा बजट बढ़ाएंगे, हथियारों पर ज्यादा पैसा खर्च करेंगे तो ये पैसा कहां जाएगा? ये पैसा उन्हीं कम्पनियों के पास जाएगा, जिनके शेयर की कीमतें इस युद्ध के बाद से लगातार बढ़ रही हैं.
पूरी दुनिया में हथियारों की ये इंडस्ट्री लगभग 38 लाख करोड़ रुपये की है. इस युद्ध के बाद इस इंडस्ट्री (Weapons Industry) का और विस्तार हो सकता है. वो इसलिए क्योंकि यूरोपीय यूनियन ने वादा किया है कि वो यूक्रेन को 450 Million Euros यानी लगभग 3 हजार 700 करोड़ रुपये के हथियार सप्लाई करेगा. अमेरिका ने भी यूक्रेन को हथियारों के लिए 350 Million Dollars यानी लगभग ढाई हज़ार करोड़ रुपये की आर्थिक मदद देने का ऐलान किया है. इसके अलावा इस युद्ध ने कई देशों को उनकी सैन्य रणनीति बदलने के लिए भी मजबूर कर दिया है.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी ने 'Pacifism'(पैसिफिज़्म) के सिद्धांत को अपनाया था, जिसका मतलब ये होता है कि जर्मनी सैन्य संघर्ष का पक्षधर नहीं रहेगा और वो शांतिवाद के विचार को अपनाएगा. अब उसने इस विचार को त्याग दिया है और अपनी सेना पर 112 Billion US Dollars यानी साढ़े 8 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का ऐलान किया है.
इस फैसले के बाद दुनियाभर के Investors जर्मनी की हथियार बनाने वाली कम्पनियों में निवेश करना चाहते हैं. इन कम्पनियों में Rhein Metall (रायन मेटाल) A-G का भी नाम है, जिसके शेयर की कीमते पिछले दो महीनों में 143 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं. अब आप सारी कहानी समझ गए होंगे कि कैसे युद्ध के साथ ये पूरा बिजनेस मॉडल जुड़ा हुआ है.
आपके मन में भी ये सवाल होगा कि हथियारों की इस इंडस्ट्री के बढ़ने से फायदा किन देशों को होगा. इसका जवाब ये है कि जो अमेरिका और पश्चिमी देश युद्ध को मानव अधिकारों के खिलाफ बताते हैं, वही इससे सबसे ज्यादा फायदे में रहेंगे.
हथियारों के वैश्विक बाजार में लगभग 90 प्रतिशत हिस्सेदारी सिर्फ 10 देशों की है. यानी ये 10 देश ही दुनिया में 90 प्रतिशत हथियार बेचते हैं. इन देशों में 37 प्रतिशत शेयर के साथ अमेरिका पहले स्थान पर है, रशिया 20 प्रतिशत, फ्रांस 8.2 प्रतिशत, जर्मनी साढ़े पांच प्रतिशत और चीन 5.2 प्रतिशत के ग्लोबल शेयर के साथ इस सूची में पांचवें स्थान पर है. इस सूची में भारत काफ़ी नीचे है. भारत केवल 0.2 प्रतिशत हथियार ही दुनिया को बेचता है.
अमेरिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले पांच वर्षों में हथियारों की खरीद 50 प्रतिशत तक बढ़ सकती है. यानी इसका सीधा मतलब ये है कि आने वाले वर्षों में ये युद्ध अमेरिका, रशिया और चीन जैसे देशों के हथियारों की मांग को और बढ़ा देगा और ये देश हथियार बेचकर और अमीर हो जाएंगे. इससे भी बड़ा मजाक ये है कि इसके बाद यही देश शांति की बात करेंगे, लोकतंत्र की बात करेंगे और मानव अधिकारों की बात करेंगे और दुनिया इनकी बड़ी बड़ी बातों पर आसानी से यकीन भी कर लेगी.
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पिछले 100 वर्षों में अमेरिका ने कई युद्ध लड़े. कई देशों में अपनी सेनाएं भेजीं. दूसरे विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1945 से 1990 तक सोवियत संघ के खिलाफ लंबा शीत युद्ध लड़ा. कोरिया, वियतनाम, इराक, अफ़ग़ानिस्तान और खाड़ी देशों में कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ कई वर्षों तक संघर्ष किया. केवल इन पांच लड़ाइयों पर ही उसने 328 लाख करोड़ रुपये खर्च किए. ये भारत की कुल अर्थव्यवस्था से दोगुना है, जो लगभग 190 लाख करोड़ रुपये है. दुनिया मानती है कि अमेरिका ने इन तमाम युद्धों को हार कर ये पैसा बर्बाद किया. लेकिन ये बात पूरी तरह सही नहीं है.
ये युद्ध और इन पर खर्च हुआ पैसा अमेरिका के लिए एक तरह का निवेश था. अमेरिका ने इन लड़ाइयों के बूते ही दुनिया में War Industry को खड़ा किया और दुनियाभर के देशों में आधुनिक हथियारों को खरीदने की भूख पैदा की. आज भी मानव अधिकारों की आड़ में अमेरिका वही कर रहा है. उसने अब यूक्रेन को यूरोप का नया अफगानिस्तान बना दिया गया है.