भारत के लोगों को शांति नहीं शोर पसंद है, आवाज के 'आतंक' की क्यों हो रही अनदेखी?
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भारत के लोगों को शांति नहीं शोर पसंद है, आवाज के 'आतंक' की क्यों हो रही अनदेखी?

जीवन में हर कोई शांति चाहता है लेकिन आस-पास के शोर पर कोई भी गंभीरता से ध्यान नहीं देता. हाल की एक रिपोर्ट में ध्वनि प्रदूषण के मामले में बांग्लादेश की राजधानी ढाका टॉप पर है जबकि इस लिस्ट में दूसरे स्थान पर यूपी का मुरादाबाद शहर आता है.

भारत के लोगों को शांति नहीं शोर पसंद है, आवाज के 'आतंक' की क्यों हो रही अनदेखी?

नई दिल्ली: कई अध्ययन में ये बात सामने आ चुकी है कि ध्वनि प्रदूषण आपका हार्ट फेल भी करा सकता है. इसलिए अब हम आपको ध्वनि प्रदूषण यानी Noise Pollution पर आई एक नई रिपोर्ट दिखाएंगे, जिसमें बांग्लादेश के ढाका के बाद उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद को दुनिया का सबसे ज्यादा शोरगुल वाला शहर बताया गया है. इसमें ये भी बताया गया है कि ध्वनि प्रदूषण लोगों का हार्ट भी फेल करा सकता है. लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के लोग शांति चुनने की बजाय यही कह रहे हैं कि ये दिल मांगे शोर.

  1. यूपी के मुरादाबाद में शोर का आतंक
  2. ध्वनि हिंसा का हथियार बना हॉर्न
  3. शोर से आखिर कब मिलेगी आजादी?

शोर में शीर्ष पर पहुंचा मुरादाबाद

दुनिया में सबसे ज्यादा 119 Decibel का ध्वनि प्रदूषण बांग्लादेश की राजधानी ढाका में है और इसके बाद इस सूची में दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद शहर है, जहां ध्वनि प्रदूषण 114 Decibel है. ये शोर कितना खतरनाक है, इसका अन्दाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अगर कोई विमान आपसे 65 मीटर की दूरी पर उड़ रहा है और उस दौरान उस विमान का जो शोर आपको सुनाई देगा, लगभग उतने ही शोर के बीच मुरादाबाद के लोग अपना जीवन जी रहे हैं. यानी भारत के लोगों को शांति नहीं, शोर की आदत हो चुकी है.

इस रिपोर्ट में मुरादाबाद के अलावा भारत के चार और शहरों को शामिल किया गया है. इनमें दिल्ली में 83 Decible का शोर है, जयपुर में 84 Decible और कोलकाता और पश्चिम बंगाल के आसनसोल में 89-89 Decible का शोर दर्ज किया गया है. ये सभी आंकड़े दिन के समय के हैं और ट्रैफिक और गाड़ियों के शोर से संबंधित हैं. आजकल बार-बार गाड़ी का Horn बजाना लोगों के लिए फैशन का विषय बन गया है. लेकिन उन्हें ये नहीं मालूम कि ये भी एक तरह की हिंसा है और Horn वाली ये हिंसा लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसलिए आज हम ध्वनि प्रदूषण को 'ध्वनि हिंसा' का नाम दे रहे हैं, क्योंकि इसने हमारे समाज को असहनशील बना दिया है. सड़कों को अपनी विरासत समझने वाले लोग जब बार-बार Horn बजाते हैं और Horn बजाकर सामने वाले को रास्ते से हट जाने की धमकी देते हैं, तब वो वैचारिक हिंसा को ही बढ़ावा देते हैं.

ध्वनि हिंसा का हथियार बना हॉर्न

आज से करीब 114 वर्ष पहले Electro-Mechanical Horn का Patent कराया था. Horn का आविष्कार जरूरत के लिए किया था. लेकिन आज वही Horn, ध्वनि हिंसा का सबसे बड़ा हथियार बन चुका है. ये एक ऐसी हिंसा है, जो लोग के सीधे ह्रदय पर असर डाल रही है. संयुक्त राष्ट्र ने अपनी इस रिपोर्ट में कनाडा की एक स्टडी का जिक्र किया है, जो ये कहती है कि ट्रैफिक के शोर ने 8 प्रतिशत लोगों में Heart Failure का खतरा बढ़ा दिया है.

Indian Medical Association की रिपोर्ट भी यही कहती है कि 80 Decible से ज्यादा की आवाज ना सिर्फ कानों को नुकसान पहुंचाती है बल्कि इसका पूरे शरीर पर बुरा असर पड़ता है. ज्यादा ऊंची आवाज से Heart Rate और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. रात में होने वाला शोर, बुजुर्गों और छोटे बच्चों की नींद को प्रभावित करता है. इससे चिड़चिड़ापन और तनाव भी बढ़ जाता है.

शोर से कब मिलेगी आजादी?

शोर आपकी काम करने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है और इससे किसी व्यक्ति की पूरी Personality में नकारात्मक बदलाव आ सकते है. WHO के मुताबिक ध्वनि प्रदूषण के कारण भारत में करीब 6 करोड़ 30 लाख लोगों की सुनने की क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित हो चुकी है. World Hearing Index नामक एक रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई और दिल्ली, दुनिया के उन टॉप टेन शहरों में शामिल हैं. जहां सबसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण है और इसकी वजह से सबसे ज्यादा लोग अपनी सुनने की क्षमता खो रहे हैं. यानी हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी तो सबको मिली हुई है. लेकिन शोर ना सुनने की आजादी किसी के पास नहीं है. 

आपको अपने बचपन के दिन याद होंगे, जब क्लासरूम में घुसते ही टीचर बच्चों से कहते थे कि शोर बंद कर दो. घर में भी जब शोर होता है तो माता-पिता कहते हैं कि शोर मत करो. यहां तक कि जब आप डॉक्टर के यहां जाते हैं तो वहां भी Keep Silence का बोर्ड लगा होता है, ऐसा इसलिए है क्योंकि ये शोर हमारी जिंदगी के लिए Slow Poison की तरह है. लेकिन हमारे देश में लोगों को अब इस शोर के साथ जीने की आदत हो गई है.

आवाज कब बन जाती है शोर?

अब आपको बताते हैं कि कैसे और कब एक आवाज, शोर में तब्दील हो जाती है. ध्वनि प्रदूषण को मापने का पैमाना Decible होता है और एक सामान्य व्यक्ति Zero Decible तक की आवाज सुन सकता है. ये पेड़ के पत्तों की सरसराहट जितनी आवाज होती है. सामान्य तौर पर घर में आप जो बातचीत करते हैं, वो 30 Decible की होती है. ऑफिस में जोर से होने वाली बातचीत 70 Decible के आस-पास होती है. ज्यादा शोर करने वाली Motorcycles की 80 Decible की आवाज आपके कानों पर बुरा प्रभाव डालती है. Underground मेट्रो ट्रेन की 100 Decible की आवाज से आपकी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंच सकता है. बारात और पार्टियों में बैंड-बाजा या लाउडस्पीकर की आवाज 110 Decible तक होती है, जबकि सायरन की आवाज 130 Decible का शोर पैदा करती है. ये आवाजें आपके कान को स्थायी नुकसान भी पहंचा सकती हैं.

पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक रिहायशी इलाकों में दिन के समय शोर 55 Decible से ज्यादा नहीं होना चाहिए जबकि रात में इसकी सीमा 45 Decible तय की गई है. हालांकि आजकल के युवा Earphones का ज्यादा इस्तेमाल करके अपनी सुनने की क्षमता को खुद ही खत्म कर रहे हैं और आप कह सकते हैं कि आज की पीढ़ी का दिल मोर नहीं शोर पसन्द करता है.

ध्वनि प्रदूषण के लेकर क्या है कानून

भारत में Environment Protection Act के तहत ध्वनि प्रदूषण फैलाने पर जुर्माने का प्रावधान है. ये चालान केवल गाड़ियों का ही नहीं, तेज आवाज में DJ और लाउड स्पीकर बजाने पर भी हो सकता हैं. हालांकि उसके लिए नियम थोड़े से अलग हैं. धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन में रात 10 बजे से रात 12 बजे तक अगर आप लाउड स्पीकर या तेज Music वाला DJ बजाना चाहते हैं तो इसके लिए अनुमति लेनी होगी. नियम के मुताबिक ऐसे दिनों की संख्या एक वर्ष में 15 से ज्यादा नहीं हो सकती. हालांकि रात 12 बजे से सुबह 6 बजे तक ऐसी कोई Permission नहीं मिल सकती.

दूसरे देशों की बात करें तो वर्ष 1930 से लंदन और पेरिस में रात में Horn बजाना मना है. 1936 में जर्मनी में Honking के लिए नियम बना दिए गए थे. दक्षिण अमेरिका के देश Peru में 2009 में बिना जरूरत हॉर्न बजाने के कड़े नियम बना दिए गए थे. नियमों का उल्लंघन करने पर वहां लाइसेंस रद्द करने के अलावा कार जब्त कर ली जाती है. इसके अलावा कनाडा के एक शहर पेट्रोलिआ में लोग Noise Pollution की वजह से किसी भी समय चिल्लाकर बात नहीं कर सकते, तेज आवाज में गाने नहीं गा सकते और सीटी भी नहीं बजा सकते. क्या भारत में ऐसे नियम लागू करना सम्भव है?

हमारे देश में राजनीतिक खबरों पर तो काफी शोर होता है. लेकिन ऐसी खबरें, जो लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं, उन पर बात तक नहीं होती. लोग भी ऐसी खबरों को ज्यादा गम्भीरता से नहीं लेते. इसलिए आज हमारी आपसे अपील है कि इस शोर को नजरअन्दाज मत करिए क्योंकि ये शोर आपको बहुत बीमार बना सकता है.

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