इन 67 शब्दों में छिपा है इजरायल बनने का राज, बॉल्फर घोषणापत्र से खास रिश्ता
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इन 67 शब्दों में छिपा है इजरायल बनने का राज, बॉल्फर घोषणापत्र से खास रिश्ता

Israel Palestine Issue: इजरायली लोगों के बारे में कहा जाता है कि ये दुनिया के अलग अलग हिस्सों में थे और वहां से अरब प्रायद्वीप में बसना शुरू किया जिसकी मुखालफत इस्लामिक देश किया करते थे. इस संघर्ष के बीच ब्रिटेन ने इजरायल की स्थापना की कानूनी जिम्मेदारी को समझा और काम भी करना शुरू कर दिया. कानूनी प्रक्रिया को जमीन पर उतारने की प्रक्रिया बाल्फर घोषणापत्र के जरिए 1917 से शुरू हुई और 1948 में जाकर पूरी हुई.

इन 67 शब्दों में छिपा है इजरायल बनने का राज, बॉल्फर घोषणापत्र से खास रिश्ता

Balfour Declaration: सात अक्टूबर 2023 का दिन इजरायल शायद ही भुला पाए. उस दिन फिल्मी अंदाज में हमास के लड़ाके ना सिर्फ इजरायल की मजबूत सीमा को भेद कर दाखिल हुए बल्कि 20 मिनट के अंदर पांच हजार रॉकेट दाग डाले. हमास के हमले से इजरायल समेत दुनिया के सभी देश स्तब्ध रह गए. इजरायल ने देरी ना करते हुए युद्ध का ऐलान किया और नतीजा सबके सामने है, इजरायल अब तक हमास के 800 से अधिक ठिकानों को तबाह कर चुका है और इस लड़ाई में हजारों की संख्या में लोग मारे गए हैं. इन सबके बीच हम समझेंगे कि भारत के मणिपुर राज्य से भी छोटे इजरायल के देश बनने का आधार क्या है जिसका बॉल्फर घोषणापत्र से खास रिश्ता है.

106 साल पहले एक देश के बनने की कहानी

करीब 106 साल पहले यानी 1917 में एक छोटे से पेपर पर कुछ शब्दों(67) को जगह देने का काम हुआ. वो सिर्फ शब्द नहीं थे बल्कि एक ऐसे राष्ट्र के गठन की भूमिका बना रहे थे जिसका भविष्य रक्तरंजित है. जिसे हम समय समय पर देखते भी रहे हैं. उन 67 शब्दों के मतलब निकाले गए, ब्रिटिश संसद तक पहुंचाए गए. उन शब्दों और उनके अर्थ पर विचार मंथन हुआ जिसके बाद इजरायल अपने वर्तमान स्वरूप में आया. यह बात अलग अलग है कि उन 67 शब्दों को दुनिया के अलग अलग देश अपने नजरिए से देखते और व्याख्या करते हैं.

बॉल्फर घोषणापत्र से खास रिश्ता
बॉल्फर घोषणापत्र में यह माना गया कि यहुदी लोग इजरायली भूमि के मूल निवासी हैं यानी कि वो कहीं और से नहीं आए थे बल्कि वो सदियों से वहीं रह रहे थे. लेकिन अरब देशों का मानना है कि ब्रिटिश हुकुमत ने छल और प्रपंच के जरिए यहुदियों की बसावट को मान्यता दी. हकीकत तो यह है कि अंग्रेजों ने फिलिस्तीन की जमीन पर यहुदी देश बनाने का वादा किया जहां 90 फीसद आबादी मुसलमानों और ईसाइयों की थी. अरब देश कहते हैं कि 1948 में जब फिलिस्तीन की जमीन पर यहुदियों की बसावट को कानूनी मान्यता दी गई वहीं से फिलिस्तीनियों के लिए नक्बा का दौर यानी तबाही का दौर शुरू हो गया. यहुदी और फिलिस्तीनियों के संघर्ष में करीब 5 लाख को विस्थापित होना पड़ गया.

क्या है बॉल्फर घोषणापत्र

बॉल्फर ने एक वाक्य में 67 शब्दों के जरिए यह साफ कर दिया था कि वास्तव में ब्रिटेन क्या चाहता है. हिज मैजेस्टी यानी महामहिम की सरकार फिलिस्तीन में यहुदी लोगों के घर के पक्ष में है, इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास किए जाएंगे. हालांकि इस प्रयास के दौरान इस बात का खास ख्याल रखा जाएगा कि फिलिस्तीन में मौजूद गैर यहुदी समाज से जुड़े लोगों के नागरिक और धार्मिक भावनाओं पर प्रतिकूल असर ना पड़े. इसके साथ ही मौजूद यहुदियों को जो राजनीतिक अधिकार मिले हैं उसे पर भी नकारात्मक असर ना हो.

इस लाइन और शब्दों से साफ है कि बॉल्फर ने यहुदी राष्ट्र को वैधता प्रदान की. इस घोषणापत्र ने यहुदियों को ऐसी जगह तलाश करने का अधिकार दिया जहां वो अपने लिए देश बना सकें. यही नहीं यहुदी लोगों के संघर्ष को भी मान्यता दी गई. इस घोषणापत्र के जरिए यहुदियों ने भी मान लिया कि देश निर्माण की भूमिका में वो अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर भी जिक्र है कि इसे सिर्फ 67 शब्द नहीं माने जाने चाहिए. यह एक ऐसी घोषणा थी जिसे बुद्धिमता के साथ परखा और तौला गया था.

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