India-US Relations: दिल्ली में थीं US की ट्रेजरी सचिव, अचानक मीलों दूर अमेरिका की इस लिस्ट से बाहर हो गया भारत, समझें मायने
Advertisement
trendingNow11436991

India-US Relations: दिल्ली में थीं US की ट्रेजरी सचिव, अचानक मीलों दूर अमेरिका की इस लिस्ट से बाहर हो गया भारत, समझें मायने

India-America Trade: किसी देश को निगरानी सूची में रखने के लिए जिन तीन कारकों पर विचार किया गया है, वह हैं अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार सरप्लस का साइज, चालू खाता सरप्लस और विदेशी मुद्रा बाजार में लगातार एकतरफा दखल. 

पीएम मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन

What is Currency Monitoring List: अमेरिका ने भारत को अपनी करंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से हटा दिया है. जिस वक्त यह ऐलान हुआ, तब यूएस की ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन नई दिल्ली में थीं. वह दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाने के लिए भारत दौरे पर हैं. विभाग की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत लिस्ट में बने रहने की कसौटी पर खरा नहीं उतरा. यह मॉनिटरिंग लिस्ट निगरानी करती है कि क्या देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अनफेयर कॉम्पिटिटिव एडवांटेज हासिल करने या बैलेंस पेमेंट एडजस्टमेंट का फायदा उठाने के लिए अपनी करंसी और अमेरिकी डॉलर के बीच एक्सचेंज रेट में हेरफेर करते हैं.

चीन नहीं हुआ लिस्ट से बाहर

रिपोर्ट में कहा गया कि इटली, मैक्सिको, थाईलैंड और वियतनाम को भी निगरानी सूची से हटा दिया गया है, जबकि चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान इस पर बने हुए हैं. भारत ने दो रिपोर्टिंग अवधियों में तीन मानदंडों में से एक को पूरा किया, जिससे यह हटाने के योग्य हो गया, जैसा कि चार अन्य देशों ने किया था.

रिपोर्ट का विमोचन येलन की भारत यात्रा के दौरान व्यापार बंधनों को मजबूत करने के लिए किया गया था क्योंकि चीन पर अधिक निर्भरता से समस्याओं का सामना करने के बाद अमेरिका वैश्विक आर्थिक और मैन्युफैक्चरिंग रीस्ट्रक्चरिंग चाहता है. येलेन ने फ्रेंडशोरिंग की अवधारणा की बात की यानी मित्र देशों में सप्लाई सीरीज लाना. उन्होंने कहा- ऐसी दुनिया में जहां सप्लाई सीरीज कमजोरियां भारी लागत लगा सकती हैं, हमारा मानना है कि भारत के साथ अपने व्यापार संबंधों को मजबूत करना जरूरी है. भारत हमारे भरोसेमंद व्यापारिक साझेदारों में से एक है. 

क्या हैं पैमाने

किसी देश को निगरानी सूची में रखने के लिए जिन तीन कारकों पर विचार किया गया है, वह हैं अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार सरप्लस का साइज, चालू खाता सरप्लस और विदेशी मुद्रा बाजार में लगातार एकतरफा दखल. इसके अलावा, यह मुद्रा विकास, विनिमय दर प्रथाओं, विदेशी मुद्रा आरक्षित कवरेज, पूंजी नियंत्रण और मौद्रिक नीति पर भी विचार करता है.

रिपोर्ट में खास तौर से यह नहीं बताया गया कि भारत किन मानदंडों को पूरा करता या नहीं करता है, लेकिन इसमें संबंधित क्षेत्रों में भारत के प्रदर्शन का जिक्र है. रिपोर्ट में कहा गया कि जून के अंत में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 526.5 अरब डॉलर था, जो सकल घरेलू उत्पाद का 16 फीसदी है. भारत, रिपोर्ट में शामिल अन्य देशों की तरह, मानक पर्याप्तता बेंचमार्क के आधार पर पर्याप्त - या पर्याप्त से अधिक - विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखना जारी रखता है.

रिपोर्ट के अनुसार, इसका अमेरिका के साथ 48 बिलियन डॉलर का ट्रेड सरप्लस भी था. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने आर्थिक नीति में पारदर्शिता सुनिश्चित की. एकतरफा मुद्रा हस्तक्षेप के लिए विभाग का मानदंड 12 महीनों में से कम से कम आठ में विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद है, जो सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम दो प्रतिशत है. इसने कहा कि चौथी तिमाही में भारत की विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद पिछली अवधि की तुलना में नकारात्मक 0.9 थी, या 30 बिलियन डॉलर कम थी.

(इनपुट-IANS)

ये स्टोरी आपने पढ़ी देश की सर्वश्रेष्ठ हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर

 

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news