“समोसा कॉकस” वर्तमान कांग्रेस में पांच भारतीय-अमेरिकियों के समूह को कहा जाता है.
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वाशिंगटन: अमेरिका में एक ओर जहां आप्रवासियों को लेकर नकारात्मक रवैया अपने चरम पर है वहीं मध्यावधि चुनावों में भारतीय मूल के करीब 100 अमेरिकी उम्मीदवार मैदान में हैं और मजबूत दावेदार के तौर पर उभरे हैं. यूं तो चुनाव में सभी निगाहें तथाकथित “समोसा कॉकस” पर होंगी लेकिन युवा भारतीय-अमेरिकी उम्मीदवारों का इतनी संख्या में उभरना उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षा को दिखाता है.
समोसा कॉकस
“समोसा कॉकस” वर्तमान कांग्रेस में पांच भारतीय-अमेरिकियों के समूह को कहा जाता है. इनमें से अमी बेरा, प्रमिला जयपाल, राजा कृष्णमूर्ति और रो खन्ना प्रतिनिधि सभा और कमला हैरिस सीनेट की सदस्य हैं. ये सभी सदस्य विपक्षी डेमोक्रेट पार्टी के सदस्य हैं. इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल राजा कृष्णमूर्ति ने किया. अमेरिका की जनसंख्या में भारतीय मूल के अमेरिकियों की आबादी एक प्रतिशत है. भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत रिचर्ड वर्मा ने कहा, “अमेरिका की राजनीति में भारतीय-अमेरिकियों की संख्या बढ़ते देखना अद्भुत है.”
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मंगलवार को होने वाले मध्यावधि चुनावों में वर्तमान प्रतिनिधि सभा के सभी चार भारतीय-अमेरिकी सदस्यों के आसान जीत दर्ज करने की उम्मीद है. इनमें तीन बार के अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य अमी बेरा और पहली बार प्रतिनिधि सभा के लिये चुनकर आए तीन सदस्य शामिल हैं जो पुन: निर्वाचन के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. इन चार मौजूदा सदस्यों के साथ-साथ सात भारतीय-अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में चुनकर आने के लिए मैदान में हैं.
सफल उद्यमी शिव अय्यादुरई एकमात्र भारतीय-अमेरिकी हैं जो सीनेट के लिए लड़ रहे हैं. निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे अय्यादुरई का मुकाबला मजबूत दावेदार एलिजाबेथ वॉरेन से है. मध्यावधि चुनाव में केवल यही भारतीय-अमेरिकी उम्मीदवार मैदान में नहीं हैं बल्कि अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक करीब 100 भारतीय-अमेरिकी उम्मीदवार अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.
चुनाव के अहम मुद्दे
अमेरिका के मध्यावधि चुनाव में आव्रजन, स्वास्थ्य देखभाल, रोजगार सहित कई मुद्दे अहम होंगे लेकिन इन सबसे ज्यादा मायने रखेगा एक नाम- डोनाल्ड ट्रंप. वह व्यक्ति जो चुनाव में उतरा भी नहीं है. डोनाल्ड ट्रंप के 21 महीने के कार्यकाल के बाद मंगलवार को होने वाले चुनाव में हर ओर रिपब्लिकन राष्ट्रपति के नाम की ही चर्चा है.
डेमोक्रेटिक पार्टी को उम्मीद है कि ट्रंप से नाखुश मतदाता अमेरिकी सदन से रिपब्लिक पार्टी का नियंत्रण खत्म कर सकेंगे. जबकि ट्रंप के लिए प्रचार करने वालों को उम्मीद है कि बड़ी संख्या में रूढि़वादी मतदाता महत्वपूर्ण मुद्दों के आधार पर उनकी पार्टी के पक्ष में वोट देंगे और वह बहुमत कायम रख सकेगी. यहां तक कि ट्रंप ने खुद ही कहा था कि भले वह खुद इस चुनाव में नहीं उतरे हैं लेकिन 2018 के मध्यावधि चुनाव के केंद्र में वे ही हैं. मध्यावधि चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में यहूदियों पर हमला अमेरिका के आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा हमला था. इस हमले में पिट्सबर्ग में 11 लोगों की मौत हो गई थी.
कुछ दिन पहले ही डोनाल्ड ट्रंप के एक समर्थक को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित ट्रंप के विरोधियों को पाइप बम भेजने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. इन घटनाओं ने अमेरिका में यह बहस छेड़ दी है कि क्या ट्रंप के तीखे बयानों की वजह से अमेरिका में अलगाव बढ़ रहा है. इसके अलावा #मीटू के दौरान ट्रंप के खिलाफ महिलाओं ने बड़े स्तर पर प्रदर्शन किए थे, ऐसे में इस चुनाव में महिला मतदाताओं और उम्मीदवारों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी.
(इनपुट: एजेंसियों के साथ)