'जलवायु परिवर्तन पर ‘पापों’ के लिए पश्चिम को माफी नहीं'
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'जलवायु परिवर्तन पर ‘पापों’ के लिए पश्चिम को माफी नहीं'

भारत ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर आज यहां कहा कि अमीर देशों को उनके अतीत के ‘पापों’ के लिए माफ नहीं किया जा सकता और उन्होंने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के दुष्प्रभावों के लिए विकासशील देशों को क्षतिपूर्ति करनी चाहिए।

लीमा (पेरू) : भारत ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर आज यहां कहा कि अमीर देशों को उनके अतीत के ‘पापों’ के लिए माफ नहीं किया जा सकता और उन्होंने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के दुष्प्रभावों के लिए विकासशील देशों को क्षतिपूर्ति करनी चाहिए।

पेरू की राजधानी में चल रहे जलवायु सम्मेलन के तीसरे दिन भारत ने कहा, ‘यह बात करना उचित नहीं है कि कोई देश अब कितना उत्सर्जन कर रहा है’ क्योंकि हो सकता है वह देश इस समय अपने उत्सर्जन में कटौती कर रहा हो।’ पर्यावरण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव और भारतीय शिष्टमंडल के अंतरिम प्रमुख सुशील कुमार ने कहा, ‘इससे उनके (अमीर देशों के) अतीत के पाप नहीं धुल जाते।’

उन्होंने कहा कि भारत का मानना है कि विकासशील देशों को उत्सर्जन के उच्च स्तर के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए जिससे उसके जैसे विकासशील देशों को नुकसान हुआ है। यह जिम्मेदारी 2015 में प्रस्तावित पेरिस समझौते में उचित मुआवजे आदि के रूप में परिलक्षित होनी चाहिए।

भारतीय शिष्टमंडल के अंतरिम प्रमुख सुशील कुमार ने यहां कहा कि भारत ने यहां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में अनुकूलन के मुद्दे को समझौते के मसौदे में हर जगह स्थान दिलाने का लक्ष्य रखा है। कुमार ने कहा, ‘हम चाहेंगे कि अनुकूलन संबंधी दीर्घकालिक लक्ष्यों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाए।’

मंत्री स्तरीय वार्ता अगले सप्ताह से शुरू होनी है जिसमें पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर सात दिसंबर को शामिल होंगे। कुमार ने कहा, ‘भारत हमेशा से न्यायोचित अधिकार का समर्थक रहा है।’ भारत चाहेगा कि विकसित देश अपने उत्सर्जन से जलवायु को होने वाले नुकसान की भरपाई विकासशील देशों को करें।

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