Devasahayam Pillai: 23 अप्रैल 1712 को कन्याकुमारी जिले के नट्टलम में पैदा हुए देवसहायम पिल्लई को रविवार को पोप फ्रांसिस ने संत की उपाधि दी. इस उपलब्धि को हासिल करने वाले वह पहले भारतीय हैं. देवसहायम ने 1745 में हिंदू धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया था.
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First Indian to Become Saint: भारत और भारतीयों का परचम इन दिनों हर जगह लहरा रहा है. बात बिजनेस की हो या साइंस या फिर धर्म की, हर जगह इंडियन खास पोजिशन हासिल कर रहे हैं. इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ा है देवसहायम पिल्लई का. देवसहायम पहले साधारण भारतीय बन गए हैं, जिन्हें संत घोषित किया गया है. रविवार को पोप फ्रांसिस ने उन्हें संत घोषित किया. पिल्लई ने 18वीं सदी में ईसाई धर्म अपना लिया था.
कैननाइजेशन मास के दौरान, 85 वर्षीय पोप ने देवसहायम को संत की उपाधि दी गई. वेटिकन के सेंट पीटर्स बेसिलिका में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. इस कार्यक्रम में दुनिया भर से 50,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया. 10 नए संतों को सम्मानित करने के लिए सरकारी प्रतिनिधिमंडल भी मौजूद था.
जानकारी के मुताबिक, कोट्टार सूबा, तमिलनाडु बिशप परिषद और भारत के कैथोलिक बिशपों के सम्मेलन के अनुरोध पर वर्ष 2004 में वेटिकन द्वारा देवसहायम को धन्य घोषित करने की सिफारिश की गई थी. जन्म के लगभग 300 साल बाद, 2 दिसंबर 2012 को कोट्टार में देवसहायम को धन्य घोषित किया गया था.
देवसहायम ने ईसाई धर्म के प्रचार के दौरान विशेष रूप से जातिगत मतभेदों के बावजूद सभी लोगों की समानता पर जोर दिया. इससे उच्च वर्गों में उनके प्रति नफरत पैदा हुई और उन्हें 1749 में गिरफ्तार कर लिया गया. 14 जनवरी 1752 को उन्हें किसी ने गोली मार दी.
देवसहयम का जन्म 23 अप्रैल 1712 को कन्याकुमारी जिले के नट्टलम में एक हिंदू नायर परिवार में हुआ था. इनका नाम नीलकांत पिल्लई था. नीलकांत जब त्रावणकोर के महाराजा मार्तंड वर्मा के दरबार में एक अधिकारी के पद पर तैनात थे, तब डच नौसेना के एक कमांडर ने उन्हें कैथोलिक धर्म के बारे में बताया. 1745 में इन्होंने ईसाई धर्म अपनाने के बाद अपना नाम "लाजर" रख लिया था.