WHO ने चेताया, देर तक काम करने या करवाने की आदत बदल डालें; Long Working Hours हैं जानलेवा
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WHO ने चेताया, देर तक काम करने या करवाने की आदत बदल डालें; Long Working Hours हैं जानलेवा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के तकनीकी अधिकारी फ्रैंक पेगा ने कहा की हमारे पास कुछ सबूत हैं जो दिखाते हैं कि जब लॉकडाउन जैसे फैसले लिए जाते हैं, तो कामकाजी घंटों की संख्या में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है. यानी इसका सीधा असर कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर पड़ता है, जो उनके लिए बेहद खतरनाक है. 

 

फाइल फोटो

जिनेवा: यह खबर उन सभी एम्प्लॉयी और एम्प्लॉयर के लिए है, जिन्हें देर तक काम करने और करवाने की आदत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने आगाह किया है कि कोरोना (Coronavirus) महामारी के दौर में यह ‘आदत’ जानलेवा साबित हो सकती है. WHO ने कहा कि हर साल हजारों लोग लंबे कामकाजी घंटों (Long Working Hours) के चलते अपनी जान गंवाते हैं और कोरोना महामारी से स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है. 

  1. विश्व स्वास्थ्य संगठन और श्रम संगठन ने किया शोध
  2. सप्ताह में 55 घंटे या उससे अधिक काम खतरनाक
  3. कई तरह की बीमारियों का बना रहता है खतरा

2016 में हुई थीं इतनी Deaths

लंबे कामकाजी घंटों (Long Working Hours) से जीवन को होने वाले नुकसान के संबंध में पहले वैश्विक अध्ययन के बारे में बताते हुए WHO ने कहा कि यह आदत अब बदलने की जरूरत है, क्योंकि इससे बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 2016 में लंबे समय तक काम करने के चलते 745,000 लोगों की स्ट्रोक और दिल संबंधी बीमारियों से मौत हुई थी.

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Heart Disease में 42% इजाफा

डब्ल्यूएचओ के तकनीकी अधिकारी फ्रैंक पेगा (Frank Pega) ने एक न्यूज ब्रीफिंग में बताया कि देर तक काम करना घातक हो सकता है और आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘2000 से 2016 यानी 16 सालों में दिल संबंधी बीमारियों से होने वाली मौतों में अनुमानित 42 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी. जबकि स्ट्रोक के मामलों में 19 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई. जो दर्शाता है कि स्थिति अच्छी नहीं है’. 

ज्यादातर Male बने शिकार

WHO और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा किए गए संयुक्त इस अध्ययन से पता चला है कि अधिकांश पीड़ित (72%) पुरुष थे और मध्यम आयु वर्ग या उससे अधिक उम्र के थे. अध्ययन में यह भी पता चला कि लंबे कामकाजी घंटों का प्रभाव काफी समय बाद नजर आता है. लंबी शिफ्ट में काम करने वालों के शरीर पर विपरीत प्रभाव होते रहते हैं, जो सालों बाद बड़े खतरे के रूप में सामने आते हैं और कई बार उनसे बचना संभव नहीं हो पाता. 

ये Countries सबसे ज्यादा प्रभावित 

WHO के अनुसार, दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाले लोग, जिसमें चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं - सबसे अधिक प्रभावित रहे. अध्ययन में कहा गया है कि सप्ताह में 55 घंटे या उससे अधिक काम करने में स्ट्रोक का खतरा 35% और दिल संबंधी बीमारियों का 17% अधिक हो जाता है. हालांकि, WHO ने यह स्पष्ट नहीं किया कि कोरोना हमारी के मद्देनजर कितने घंटे काम करना सही है, लेकिन इतना जरूर कहा कि देर तक काम करना नुकसानदायक हो सकता है.  

Lockdown में बढ़ जाता है काम

फ्रैंक पेगा ने कहा की हमारे पास कुछ सबूत हैं जो दिखाते हैं कि जब लॉकडाउन जैसे फैसले लिए जाते हैं, तो कामकाजी घंटों की संख्या में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है. यानी इसका सीधा असर कर्मचारी के स्वास्थ्य पर पड़ता है. उन्होंने आगे कहा कि कामकाजी घंटे कम रखना नियोक्ताओं के लिए फायदेमंद है. क्योंकि इससे कर्मचारियों की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी देखी गई है. पेगा ने यह भी कहा कि आर्थिक संकट के दौर में देर तक काम करवाने से बचना एक स्मार्ट विकल्प है.

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