ZEE जानकारी : शी जिनपिंग के साथ पीएम मोदी की होने वाली मुलाकात क्यों है खास?
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ZEE जानकारी : शी जिनपिंग के साथ पीएम मोदी की होने वाली मुलाकात क्यों है खास?

पूरी दुनिया में इस वक्त जिस ख़बर की सबसे ज़्यादा चर्चा है, वो है भारत और चीन के कूटनीतिक रिश्ते. 27 और 28 अप्रैल 2018 को कुछ ऐसा हो सकता है, जो अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का पूरा समीकरण बदल कर रख देगा.

ZEE जानकारी : शी जिनपिंग के साथ पीएम मोदी की होने वाली मुलाकात क्यों है खास?

आज विश्लेषण की शुरुआत हम एक Video से करेंगे . इस Video में भारतीय सेना का शौर्य, पराक्रम और वीरता दिखाई देती है. ये Video देश के दुश्मनों के लिए एक चेतावनी है . सबसे पहले आप ये Video देखिए, फिर हम इसमें छुपे संदेश की बात करेंगे . 

इस Video में जिस हथियार को दिखाया गया है उसे Grad कहते हैं . ये Multiple Rocket Launcher होता है . ये 20 सेकंड में 40 रॉकेट फ़ायर करता है और 20 से 40 किलोमीटर की रेंज में दुश्मन को संभलने का मौका नहीं मिलता. राजस्थान के पोखरण में भारतीय सेना इसका अभ्यास करती है लेकिन इस बार भारतीय सेना ने जो संदेश इस Video के साथ Post किया है वो अपने आप में बड़ी बात है . 

भारतीय सेना ने अपने Twitter handle से इस Video के साथ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ओजस्वी कविता का एक अंश भी Share किया है . 
ये पंक्तियां हैं - 
''क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो.
उसको क्या जो दंतहीन, विष रहित, विनीत, सरल हो''

इसका भावार्थ ये है कि क्षमा करना उसी व्यक्ति को शोभा देता है जिसके पास दंड देने की शक्ति हो . भारतीय सेना के पास दंड देने की शक्ति है इसीलिए भारत की सेना विनम्र है . भारत के सैनिक, दो विश्व युद्ध लड़ चुके हैं. और भारत की सेना 1947 से लेकर अब तक 5 युद्ध लड़ चुकी है. पूरी दुनिया में भारतीय सेना के अनुशासन और सद्भावना की मिसालें दी जाती हैं . 

भारत एक शांतिप्रिय देश है और शांति बनाए रखने के लिए शक्तिशाली होना भी बहुत ज़रूरी है . अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में कई बार शांतिप्रियता और विनम्रता को कमज़ोरी समझ लिया जाता है. इसलिए शक्ति प्रदर्शन भी करना होगा और ज़रूरत पड़ने पर शक्ति का प्रयोग भी करना होगा . इस वीडियो में यही संदेश दिखाई देता है.

अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की दुनिया में पिछले कुछ समय में दो ऐसी बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है. पहली घटना है, अमेरिका और नॉर्थ कोरिया के बीच सुधरते हुए रिश्ते. और दूसरी घटना है, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अचानक चीन जाने का फैसला. पूरी दुनिया में इस वक्त जिस ख़बर की सबसे ज़्यादा चर्चा है, वो है भारत और चीन के कूटनीतिक रिश्ते. 27 और 28 अप्रैल 2018 को कुछ ऐसा हो सकता है, जो अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का पूरा समीकरण बदल कर रख देगा. दिलचस्प बात ये है, कि नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग की अचानक मुलाकात वाली ख़बर से पाकिस्तान सहित कई देश बेचैन हो गये हैं. हम इसके बारे में भी आपको बताएंगे लेकिन सबसे पहले आपको उस मुलाक़ात के बारे में जानना चाहिए, जिस पर पूरी दुनिया की नज़र है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच, चीन के Wuhan (वुहान) शहर में 27 और 28 अप्रैल को एक 'अनौपचारिक बैठक' होगी. 

चीन के विदेश मंत्री के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग के निमंत्रण पर चीन जाने का फैसला किया है. 

इस मुलाकात की Script, पिछले कई दिनों से लिखी जा रही थी.

13 अप्रैल को NSA अजीत डोवल ने चीन के State Councillor, Yang Jiech (यैंग जीच) से मुलाकात की थी.

दो दिन पहले ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, Shanghai Cooperation Organisation के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए बीजिंग पहुंचीं थीं. 

और आज ही रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण भी दो दिनों के दौरे पर चीन गई हैं.

ये सिर्फ एक संयोग नहीं है. ये सब कुछ एक सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है.

कई लोगों को ये बात अजीब लग सकती है, कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जून में Shanghai Cooperation Organization Summit में शामिल होने के लिए चीन जाना ही है, तो वो अचानक 27 अप्रैल को चीन क्यों जा रहे हैं ?

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी का ये चौथा चीन दौरा होगा. वो वर्ष 2015 में पहली द्विपक्षीय वार्ता में शामिल हुए थे. इसके बाद उन्होंने 2016 में जी-20 समिट में हिस्सा लिया था. इसके बाद 2017 में BRICS समिट में हिस्सा लेने के लिए वो चीन गए थे. और अब ये अनौपचारिक बैठक होने वाली है. ये भारत की Pro-Active कूटनीति है. सबसे पहले आप ये समझिए, कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच होने वाली मुलाकात में क्या क्या हो सकता है.

कूटनीति की दुनिया में व्यक्तिगत संबंध बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं. इसलिए ये मुलाकात, पहले हुई मुलाकातों से बिल्कुल अलग होगी. इसमें इस बात पर ज़ोर रहेगा कि भारत और चीन एक साथ मिलकर क्या कर सकते हैं. इस वक़्त अमेरिका और चीन के बीच Trade War चल रहा है. इसलिए चीन और भारत एक दूसरे के करीब आ सकते हैं. ये एक अच्छा कूटनीतिक मौक़ा है.

डोकलाम जैसे मुद्दों को देखते हुए इस मुलाकात को एक 'साहसिक' कदम माना जा रहा है. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच Border से जुड़े विवादित मसलों पर खुलकर चर्चा हो सकती है. इनमें डोकलाम से लेकर बॉर्डर के करीब सड़कों के नेटवर्क तक, कई विषयों पर चर्चा हो सकती है.

चीन भारत के साथ व्यापारिक सहयोग बढ़ाना चाहता है. और भारत की कोशिश ये होगी कि चीन के साथ उसकी पार्टनरशिप इतनी बड़ी हो जाए कि पाकिस्तान जैसे छोटे मोटे दुश्मनों की कूटनीतिक अहमियत ख़त्म हो जाए.

ये बातचीत अनौपचारिक माहौल में होगी. इसके लिए एजेंडा निश्चित नहीं है और दोनों नेताओं के पास दो दिन में बात करने के लिए काफी वक्त होगा. 

चीन के साथ रिश्ते में मिठास की मात्रा कितनी होनी चाहिए, ये बात नरेंद्र मोदी अच्छी तरह जानते हैं. इसीलिए प्रधानमंत्री की चीन यात्रा में चीनी की मात्रा बहुत संतुलित होगी. इसलिए आप इसे भारत के प्रधानमंत्री की शुगर फ्री चाइनीज़ यात्रा भी कह सकते हैं. यानी चीन को लेकर नरेंद्र मोदी के मन में कोई Confusion नहीं है. लेकिन वो ये बात भी जानते हैं, कि अगर दुनिया में नया World Order यानी नई विश्व व्यवस्था बनानी है. तो भारत और चीन को Partnership करनी पड़ेगी और एक दूसरे का ख्याल रखना होगा.

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