नई दिल्ली. आंवला नवमी पर पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने का विशेष महत्व है. साथ ही, जो लोग इस नवमी पर आंवले की पूजा करते हैं, उन्हें देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त मिलती है. इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने की है परंपरा
आयुर्वेद में आंवले का महत्व काफी अधिक है. कई बीमारियों में आंवले का उपयोग अलग-अलग रूप में किया जाता है. आंवले का रस, चूर्ण और आंवले का मुरब्बा ये सभी हमारे स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं. आंवले का रस पानी में मिलाकर स्नान से त्वचा संबंधी कई रोगों में लाभ मिलता है. आंवले के रस के सेवन से त्वचा की चमक भी बढ़ती है.
आंवला नवमी के संबंध में मान्यता है कि प्राचीन समय में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे शिवजी और विष्णुजी की पूजा की थी. तभी से इस तिथि पर आंवले के पूजन की परंपरा चली आ रही है.
आंवले के रस का धार्मिक महत्व भी है. मान्यता है कि नियमित रूप से पीने से स्वास्थ्य लाभ के साथ ही पुण्य में भी बढ़ोतरी होती है. विचारों में सकारात्मकता बढ़ती है. पीपल, तुलसी की तरह ही आंवला भी पूजनीय माना गया है.
स्वास्थ्य के नजरिए से आंवले के फल में पोषक तत्वों का भंडार रहता है. आंवले के नियमित सेवन से शरीर में किसी भी प्रकार की बीमारी जल्दी से प्रवेश नहीं कर पाती है. आंवला के पेड़ में जहां भगवान विष्णु का वास करते हैं वहीं दूसरी तरफ इसकी छाया में भोजन पकाकर खाने और आंवले के सेवन से शरीर व मन दोनों ही ठीक रहता है.
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