गणेश जी की पूजा में दूब का क्या है महत्व, जानिए इसकी कथा और वो उपाय जो बनाएगा मालामाल

गणेश चतुर्थी को प्रात: काल स्नान करने के बाद गणेशजी के मंदिर में जाकर दुर्वा की 11 या फिर 21 गांठ अर्पित करें.मान्यहता है कि ऐसा करने से आपके हर काम से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और आपको धन की प्राप्ति होती है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 12, 2021, 08:17 AM IST
  • दूर्वा को दूब, अमृता, अनंता, महौषधि आदि नामों से जाना जाता है.
  • गणेशजी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं. दूर्वा अधिक प्रिय
गणेश जी की पूजा में दूब का क्या है महत्व, जानिए इसकी कथा और वो उपाय जो बनाएगा मालामाल

नई दिल्लीः वरद चतुर्थी गणेश चतुर्थी आज दूर्वा द्वारा गणेश जी का पूजन करने से कार्यो के विघ्न दूर होते हैं. सभी देवी-देवताओं को कोई न कोई ऐसी वस्तु  जरूर होती है जो बेहद प्रिय होती है. ऐसी वस्तु जिसका प्रयोग उनकी पूजा में अवश्य किया जाता है. इसी प्रकार से गणेशजी को दूर्वा या दूब घास बेहद प्रिय होती है और उनकी पूजा में दुर्वा अर्पित करना बेहद जरूरी माना गया है.

दूब से करिए ये उपाय
आज का दिन गणपतिजी को समर्पित होता है और इस बार यह बेहद शुभ संयोग है कि आज के दिन को दूर्वा विनायकी चतुर्थी कहा जाता है. इस दिन उनकी पूजा करने से आपके जीवन से सभी प्रकार की विघ्न बाधाएं दूर होकर कार्यसिद्धि प्राप्त होती है.गणपति की पूजा में दूब घास से जुड़ा एक विशेष उपाय जो आपको मालामाल कर देगा.  

गणेश चतुर्थी को प्रात: काल स्नान करने के बाद गणेशजी के मंदिर में जाकर दुर्वा की 11 या फिर 21 गांठ अर्पित करें.मान्यहता है कि ऐसा करने से आपके हर काम से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और आपको धन की प्राप्ति होती है.

गणेश जी को इसलिए प्रिय है दूब
गणेशजी को पूजा में दूर्वा जरूर चढ़ानी चाहिए.इस संबंध में एक कथा प्रचलित है.

कथा के अनुसार पुराने समय में अनलासुर नाम का एक राक्षस था.इस राक्षस के आतंक को सभी देवता खत्म नहीं कर पा रहे थे, उस समय गणेशजी ने अनलासुर को निगल लिया था. जिससे गणेशजी के पेट में बहुत जलन होने लगी थी. इसके बाद ऋषियों ने खाने के लिए दूर्वा दी.

दूर्वा खाते ही गणेशजी के पेट की जलन शांत हो गई. इसी के बाद से गणेशजी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है.

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दूर्वा से गणपति दूर करेंगे दु:ख
पंचदेवों में से प्रथम पूजनीय गणपति (Ganapati) की साधना में दूर्वा का विशेष प्रयोग किया जाता है. मान्यता है कि यदि साधक गणपति की पूजा दूर्वा की कोपलों से करता है तो उसे कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है.

सभी जगह आसानी से मिल जाने वाली इस दूर्वा को गणपति पर चढ़ाने से विशेष कृपा प्राप्त होती है. दूर्वा चढ़ाने से प्रसन्न होकर गणपति सभी कष्टों और विघ्न-बाधाओं को दूर करते हैं.

कैसे चढ़ाते हैं दूर्वा
गणेशजी को दूर्वा एक खास तरीके से चढ़ाई जाती है. दूर्वा का जोड़ा बनाकर गणेशजी को चढ़ाया जाता है. 22 दूर्वा को एक साथ जोड़ने पर दूर्वा के 11 जोड़े तैयार हो जाते हैं. इन 11 जोड़ों को गणेशजी को चढ़ाना चाहिए.
पूजा के लिए किसी मंदिर के बगीचे में उगी हुई या किसी साफ जगह पर उगी हुई दूर्वा ही लेना चाहिए.

जिस जगह गंदा पानी बहकर आता हो, वहां की दूर्वा भूलकर भी न लें.
दूर्वा चढ़ाने से पहले साफ पानी से इसे धो लेना चाहिए.
गणेशजी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं. गणपतिजी को दूर्वा अधिक प्रिय है. कार्तिक माहात्म्य में भी कहा है कि 'गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया'  अर्थात गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की दूब से पूजा न करें. 

जानिए दूर्वा का महत्व
दूर्वा को दूब, अमृता, अनंता, महौषधि आदि नामों से जाना जाता है. हमारे देश में ऐसा कोई मांगलिक कार्य नहीं है, जिसमें हल्दी और दूब की जरूरत न पड़ती हो. शादी-ब्याह जैसे शुभ कार्यों में जब दूर्वा से हल्दी छिड़की जाती है तो ऐसा लगता है कि मानो सौभाग्य छिड़का जा रहा हो.

विघ्न विनाशक गणपति की पूजा में तो दूर्वा का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है. 

भारतीय संस्कृति में विवाह एक पवित्र रिश्ता है.इसकी पवित्रता के लिए ही सात फेरे से लेकर कई तरह के शगुन किये जाते है.इसमें गठबंधन करते समय वधू के पल्लू और वर के दुपट्टे या धोती में सिक्का (पैसा), पुष्प, हल्दी, दूर्वा और अक्षत, पांच चीजें बांधी जाती हैं, जिनका अपना-अपना महत्व है. 

सिक्का: पुष्प: हल्दी: अक्षत:  दूर्वा: – प्रतीक है कि कभी प्रेम भावना न मुरझाने देना. दूर्वा का जीवन तत्व कभी नष्ट नहीं होता. सूखी दिखने पर भी यह पानी में डालने पर हरी हो जाती है. ठीक इसी तरह दोनों के मन में एक-दूसरे के लिए अटूट प्रेम और आत्मीयता बनी रहे.

शास्त्रों के अनुसार नरसिंह अवतार के समय जब भगवान के कुछ बाल पृथ्वी पर गिरे उनसे ही दूर्वा और कुश उत्पन्न हुई. व्यवसाय में जब बुध शुक्र का योग ठीक ना चल रहा हो तो हरी दूर्वा से गौ सेवा करने से लाभ होता है . स्वस्थ में लाभ के लिए दूर्वा द्वारा शिव का अभिषेक करने से लाभ होता है. दुर्वासा ऋषि की शक्ति भी इसी दूर्वा के कारण ही थी. 

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