Uttam Kshama Parva: एक त्योहार ऐसा भी जो माफी मांगने-माफ कर देने की बात करता है

Paryushan Mahaparva Uttam Kshama Parva: जैन सिद्धांत कहता है, जिसके साथ तुमने गलत किया है उससे माफी मांग लो. इसी तरह जो तुमसे माफी मांगने आ रहे हैं उन्हें भी माफ कर दो. जियो और जीने दो का यही लक्ष्य है. 

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Sep 13, 2021, 08:11 AM IST
  • बात माफी की है तो उसे दुनिया में हर धर्म और हर पंथ ने अपनाया है.
  • कितना महान है ये कहना कि जो हुआ उसे भूल जाओ, या माफ कर दो
Uttam Kshama Parva: एक त्योहार ऐसा भी जो माफी मांगने-माफ कर देने की बात करता है

नई दिल्लीः Paryushan Mahaparva Uttam Kshama Parva: निदा फाजली का एक शेर है. यहां कोई किसी को रास्ता नहीं देता, मुझे गिरा कर तुम संभल सको तो चलो. ऐसी ही दो लाइनें और भी हैं, कुछ इस तरह मैंने ज़िन्दगी को आसान कर लिया,

किसी से माफी मांग ली, किसी को माफ कर दिया. 

माफी मांगने का त्योहार
किसी को माफ कर देना, अपनी गलती मान लेना, किसी से माफी मांग लेना. जिस समाज में ये तीनों बातें मौजूद हैं, यकीन मानिए कयामत और प्रलय जैसा कोई दिन वहां आएगा ही नहीं. आपसी प्यार-भाईचारे और सौहार्द की जिस नैतिकता का पाठ हम बचपने से पढ़ रहे होते हैं उसकी यही तो पहली कसौटी है कि हम माफी मांगना सीखें और किसी को माफ कर सकने लायक बड़ा दिल रख सकें.

इस मामले में भारतीय समाज को दुनिया भर से दो कदम आगे मानना चाहिए. खासकर भारत के जैन समाज को. क्यों? क्योंकि ये समाज ऐसा ही है. 

माफी-जो आत्मा को शुद्ध करती है
क्या आप जानते हैं कि हम एक त्योहार ऐसा भी मनाते हैं, जिसमें हम खुशी-खुशी किसी को माफ कर देते हैं, या अपनी गलती मानकर सामने वाले से माफी मांग लेते हैं. जैन धर्म का पर्यूषण महापर्व जारी है. पर्यूषण पर्व यानी कि आत्मा की शुद्धि का पर्व. जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है. अहिंसा के पथ पर चलने के लिए जरूरी है कि आत्मा शुद्ध रहे, उसमें कोई कलुषता (मैल या कालापान) न हो.

सवाल उठता है कि ये कलुषता कैसे जाएगी? तब धर्म बताता है कि अपना मन खंगालो. देखो, क्या तुमने वहां किसी कि बुराई की गठरी तो नहीं डाल रखी है. ये ठीक वैसे ही है, जैसे घर में कहीं कूड़ा इकट्ठा कर रखा गया हो. उसे साफ करो. साफ कैसे करेंगे? जैन सिद्धांत कहता है, जिसके साथ तुमने गलत किया है उससे माफी मांग लो. इसी तरह जो तुमसे माफी मांगने आ रहे हैं उन्हें भी माफ कर दो.

हर धर्म और पंथ में है माफी
बात माफी की है तो उसे दुनिया में हर धर्म और हर पंथ ने अपनाया है. ईसा मसीह क्रूस पर थे और उनके पैरों में कील ठोंकी जा रही थी. तब उन्होंने कहा- हे मेरे ईश्वर, तुम इन्हें माफ कर देना, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं. मदर टेरेसा कोढ़ी रोगियों की सेवा के लिए धन मांग रही थीं.

एक व्यक्ति ने उनके हाथ पर थूक दिया. मदर ने उसे अपनी साड़ी में पोंछ लिया, कहा- मेरे लिए जो था वो मैंने रख लिया, अब इन बीमार लोगों के लिए भी कुछ दो.

क्षमा के ये उदाहरण
महात्मा बुद्ध जेतवन से गुजर रहे थे, एक व्यक्ति उन्हें गालियां दे रहा था. बुद्ध ने कहा- जो तूने दिया वो मैं नहीं लेता. ये तेरे ही पास रहा. ऐसा कहकर शांत बुद्ध आगे बढ़ गए. हम क्षमा के लिए कृष्ण को कैसे भूल सकते हैं. शिशुपाल के सौ अपराध तो वह लगातार माफ करते रहे, जिनमें से सभी ऐसे थे कि हर अपराध के लिए उसका सिर सौ-सौ बार काटा जाता.

हस्तिनापुर की राज सभा में अपमान की साड़ी में लिपटी द्रौपदी जब चीखती है तो गांधारी कहती हैं कि, मेरी पुत्री, इन मूर्खों को क्षमा कर दो. 

दुनिया भर में है माफी की बात
जापान और चीन में जुलाई महीने में एक त्योहार मनाया जाता है. जापानी इसे एक्चुअल हैपिनेस का दिन कहते हैं. इस दिन वह हर किसी को उसकी बुराई भुलाकर गले से लगाते हैं. कहते हैं कि जो हुआ उसे भूल जाओ. कितना महान है ये कहना कि जो हुआ उसे भूल जाओ.

यकीन मानिए ये दुनिया जो आज तक जिंदा है, इन्हीं बातों की वजह से है. नहीं तो दुनिया क्या ही दुनिया रहती. शेक्सपीयर की कविता मर्सी (दया) भी माफी के आसपास ही रहती है. कहती है कि दया और माफी एक ऐसी बारिश है जो दया करने वाले और दया पाने वाले दोनों को भिगोती है. आदमी को जब भी मौका मिले बड़ा दिल दिखाकर इसका जरिया बन ही जाना चाहिए. 

लेकिन, आज की स्थिति बिगड़ रही है
वैसे आज के दौर में जिस तरह की सिचुएशन है, उससे लगता है कि लोग कहीं न कहीं हम इस माफी को बड़े हल्के में ले रहे हैं. हम सड़क पर निकलते हैं. किसी से टक्कर हो जाती है. तो हम क्या करते हैं? हम भिड़ जाते हैं. कई बार भिड़ना ऐसा कि नतीजा मौत.

जबकि आप बहुत आसानी से सिर्फ एक Sorry बोल कर इस सिचुएशन से निकल सकते थे. लेकिन अहम की ये टक्कर इतनी बड़ी हो जाती है कि पद, प्रतिष्ठा को तो बाद में मारती है, इंसानियत को पहले ही मुर्दा बना देती है. 

हम माफी को हल्के में ले रहे हैं
बीते महीनों से पहलवान सुशील कुमार हत्या का आरोप झेल रहे हैं. उन पर अपने जूनियर पहलवान के मर्डर का आरोप है. इसके पीछे की कहानी अहम ही बताई जाती है. उस रात सुशील अगर उस साथी को माफ कर देते तो आज वो जीवित होता और उनकी प्रतिष्ठा दांव पर न लगती.

इंसानियत की हत्या का ये खेल इतना व्यक्तिगत नहीं है. बल्कि यह घर, समाज, जाति, समुदाय और यहां तक की देश-दुनिया भर में जारी है. लोग लड़ रहे हैं. कहीं सुपरपॉवर के अहम में, कहीं इसलिए कि मेरा धर्म महान तेरा धर्म नहीं, अमेरिका-अफगान-तालिबान, रूस, तुर्की-सीरिया-अजरबैजान-आर्मेनिया. आप कहीं भी, कोई भी लड़ाई देख रहे हैं तो आप समझ लीजिए कि लोग माफी शब्द की कोई अहमियत समझ ही नहीं रहे हैं. 

महात्मा गांधी भी कह गए हैं आंख के बदले आंख का सिद्धांत एक दिन सारी दुनिया को अंधा कर देगा. ये बात कहने में बहुत आसान है. अपना ली जाएगी तो जिंदगी को आसान बना देगी. अगर इस पर भी न समझ आए तो रहीम कवि की बात गांठ बांध लीजिए. क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात. आप बड़े हैं तो माफ कीजिए. या फिर किसी को माफ कीजिए और बड़े बन जाइए. पर्यूषण महापर्व और उत्तम क्षमा का सिद्धांत यही सीख सिखा रहा है.

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