नई दिल्ली: पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध करने की भी विधि होती है. यदि पूरे विधि विधान से श्राद्ध कर्म न किया जाए तो मान्यता है कि वह श्राद्ध कर्म निष्फल होता है और पूर्वजों की आत्मा अतृप्त ही रहती है. शास्त्रसम्मत मान्यता यही है कि किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए.
श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है, साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है. इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए.
वहीं, अगर किसी का पुत्र नहीं है तो उसकी पुत्री या फिर पत्नी श्राद्ध कर्म कर सकती है. शास्त्रों के अनुसार, भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता राजा दशरथ का पिंड दान करने गया पहुंचे थे. इस दौरान पूजा की सामग्री लाने में देर हो गई थी और पिंडदान का समय निकला जा रहा था. इस दौरान देवी सीता ने फलगू नदी के तट पर पिता दशरथ का पिंडदान किया था.
1. श्राद्ध करने के लिए किसी ब्राह्मण को आमंत्रित करें, भोज कराएं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा भी दें.
2. श्राद्ध के दिन अपने सामर्थ्य या इच्छानुसार खाना बनाएं.
3. आप जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं, उसकी पसंद के मुताबिक खाना बनाएं, तो उचित रहेगा.
4. मान्यता है कि श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और अपनी पसंद का भोजन कर तृप्त हो जाते हैं.
5. खाने में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल न करें.
6. शास्त्रों में पांच तरह की बलि बताई गई हैं- गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि.
(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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