नई दिल्लीः बच्चों के साथ यौन अपराधों को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते दिनों जो फैसले सुनाए, उनके बाद से पॉक्सो एक्ट एक बार फिर चर्चा में है, साथ ही चर्चा में है नागपुर पीठ की महिला जज पुष्पा गनेड़ीवाला, जिन्होंने इन दोनों मामलो की सुनवाई की. जानकारी के मुताबिक एक 12 साल की लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला ने कहा कि स्किन टू स्किन टच नहीं हुआ तो ऐसे में यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता है.
इसी तरह उन्होंने इससे ठीक पहले एक और मामले में यह कहा था कि नाबालिग का हाथ पकड़ना और आरोपी की जिप खुली होना पॉक्सो अधिनियम का मामला नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में जारी किया है नोटिस
जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला के इन दोनों फैसलों के बाद बाल अधिकार कार्यकर्ताओं में रोष है, साथ ही वे इस तरह के फैसलों को अपराधियों के अंदर का भय खत्म करने वाला बता रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 12 साल की बच्ची के साथ हुए मामले को लेकर जस्टिस गनेड़ीवाला के फैसले को पलट दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने जहां आरोपी के पॉक्सो से बरी होने पर रोक लगा दी है, वहीं CJI एसए बोबड़े ने कहा कि हम पीड़ित को उचित याचिका दायर करने का मौका देते हैं साथ ही आरोपी को बरी करने पर रोक लगाते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में नोटिस जारी कर दिया है, लेकिन इसी बीच यह जानने की जरूरत भी पड़ रही है कि पॉक्सो एक्ट यौन दुर्व्यवहार के ऐसे मामलों में क्या कहता है?
इसकी जरूरत इसलिए भी है कि हाइकोर्ट की प्रतिष्ठित महिला जज ने महज एक हफ्ते के भीतर दो ऐसे फैसले किस आधार पर सुनाए जो विवादित हो गए.
नाबालिग का हाथ पकड़ने और जिप खुली होने का मामला
पीड़ित का हाथ पकड़ने और अभियुक्त की पैंट की जिप खुली होने के संबंध में पुष्पा गनेड़ीवाला ने पॉक्सो एक्ट की धारा 7 का हवाला दिया था. उन्होंने कहा कि नाबालिग का हाथ पकड़ना या उस वक्त अभियुक्त की पैंट की ज़िप खुला होना, पॉक्सो अधिनियम (POCSO) में यौन उत्पीड़न से बच्चों की सुरक्षा की धारा 7 के तहत परिभाषित यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं है.
जबकि इसी मामले की सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने अलग-अलग धाराएं लगाकर आरोपी को दोषी करार दिया था. निचली अदालत ने आरोपी को आईपीसी की धारा 354A (यौन उत्पीड़न), धारा 448 (जबरन घर में घुसने के लिए सजा) और पॉक्सो एक्ट की धारा 8 (यौन हमले के लिए सजा), धारा 10 (उत्तेजक यौन हमले के लिए सजा) और धारा 12 (यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत दोषी करार दिया था.
क्या है पॉक्सो एक्ट की धारा-7 और धारा-8
पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वह मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है. इसके धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है. जज पुष्पा गनेड़ीवाला ने इसी आधार पर पीड़ित के साथ हुए यौन उत्पीड़न को पॉक्सो के अंतर्गत नहीं माना था.
दरअसल जस्टिस गनेड़ीवाला महज पॉक्सो एक्ट की धारा 7 और 8 को लेकर अपना बयान दिया था. हालांकि ऐसा नहीं था कि उन्होंने दोषी को दोष मुक्त माना था. उन्होंने अपनी टिप्पणी में कहा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 12 के तहत साबित होने वाला यौन उत्पीड़न का छोटा सा मामला भी आईपीसी की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न) के तहत दंडनीय अपराध है.
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'स्किन टु स्किन कॉन्टैक्ट' मामला
ठीक इसी तरह बालिका वाले मामले में स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट मुद्दा बना हुआ है. जस्टिस गनेड़ीवाला ने 19 जनवरी को लिए गए इस फैसले में कहा था कि यौन हमले की परिभाषा में ‘शारीरिक संपर्क’ ‘प्रत्यक्ष होना चाहिए’ या सीधा शारीरिक संपर्क होना चाहिए. उन्होंने इसे यौन हमला नहीं माना, लेकिन भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 के तहत शीलभंग का अपराध जरूर माना.
इस मामले में निचली अदालत ने पॉक्सो अधिनियम और IPC की धारा 354 दोनों के ही तहत 3 साल कारावास की सजा सुनाई थी. हाइकोर्ट ने आरोपी को पॉक्सो के तहत दोषी मानने से बरी करते हुए उसकी सजा IPC के तहत बरकरार ही रखी है. यानी कि दोषी बरी नहीं किया गया है.
यह है बाल अधिकार कार्यकर्ताओं की चिंता
इन दोनों ही मामलों के सामने आने के बाद बाल अधिकार कार्यकर्ताओं में रोष है. उनका कहना है कि अदालत की ओर से की गई ऐसी टिप्पणी अपराध के दंड के प्रति भय को कम करती है. बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन (NGO) बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने कहा कि उनकी कानूनी टीम मामले को देख रही है और मामले से जुड़े सभी संबंधित आंकड़े जुटा रही है.
इस फैसले पर पीपुल्स अगेंस्ट रेप इन इंडिया (परी) की अध्यक्ष योगिता भायाना ने कहा कि न्यायाधीश से यह सुनना निराशाजनक है और ऐसे बयान ‘ अपराधियों को प्रोत्साहित’ करते हैं. भायाना ने कहा कि निर्भया मामले के बाद वे यहां तक गाली को भी यौन हमले में शामिल कराने की कोशिश कर रहे हैं.
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