नई दिल्ली. यूं तो बिहार चुनावों में फिर डबल इंजन वाले विकास की विजय हुई है और जातिवादी राजनीति की हुई है पराजय. किन्तु गौर से देखें तो बिहार में एन्टीइनकंबेंसी के कारण तेजस्वी के पक्ष में जितने वोट पड़े हैं उतने ही सुशासन बाबू के दुस्शासन के कारण भी पड़े हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार न बाढ़ग्रस्त बिहार में सक्रिय दिखाई दिए और न ही कोरोनाग्रस्त बिहार में वो कोई तीर मार पाए. प्रदेश की बदहाली यथावत है, महंगाई, बेरोजगारी और अपराधों से घिरे बिहार में और भी तमाम मुद्दे हैं जिनसे बिहार की जनता त्राहिमाम कर रही है किन्तु वो असहाय है. इस चुनाव को जनता ने एक अवसर बनाया किन्तु विकल्प न होने के कारण जनता ने जो सर्वोत्तम समझा वही किया और तेजस्वी से तो कई गुना बेहतर नीतीश को फिर चुन लिया. .
बीजेपी से हाथ मिलाना गया पक्ष में
यदि बीजेपी नहीं होती तो 43 सीटें जीतने वाले तीसरे नंबर के खिलाड़ी खेल से बाहर हो गये होते. बीजेपी साथ न होती तो शायद सीटें और भी बहुत कम हो जातीं और बीस सीटों पर सिमट सकते थे नीतीश बाबू. बीजेपी के कारण नैया डूबने से बच गई उनकी. इसलिये बीजेपी के साथ के लिये और मोदी के विश्वास के लिये मन ही मन भगवान को धन्यवाद देंगे नीतीश कुमार जी. जो सातवीं बार बनने जा रहे हैं बिहार के मुख्यमन्त्री.
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भाग्य और महिलाओं ने किया समर्थन
महिलाओं ने जम कर मतदान किया या ऐसे कहें कि बिहार चुनावों में पहली बार महिलाओं का मतदान भारी मात्रा में देखा गया है. महिला मतदान का फायदा बीजेपी और जेडीयू को मिला है. इस तरह महिला फैक्टर भी एनडीए के काम आया और . इन चुनाव परिणामों के बाद कई सर्वे हो गए हैं फेल. बिहार की बहनों-बेटियों ने गोलबन्द हो कर एनडीए के लिये अपना योगदान दिया और जम कर की वोटिंग. कुल मिला कर बिहार की जनता ने अपनी समझ से चुना चौबीस कैरेट सोना. भाग्य ने भी बहुत साथ दिया एनडीए का क्योंकि चालीस से ज्यादा सीटों पर जीत का मार्जिन एक हजार से भी कम है.
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लंगड़े घोड़े कांग्रेस ने भी की मदद
19 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी अर्थात अपनी सहयोगी पार्टी आरजेडी की ख़ास मदद नहीं की. कांग्रेस बिहार में लंगड़ा घोड़ा सिद्ध हुई है जिसे अब विपक्ष में आरजेडी के नेतृत्व के विपक्षी रथ में ढोया जाएगा. अब इस लंगडे़ घोड़े को जरूरत है इन्ट्रोस्पेक्शन की. ये चुनाव परिणाम कांग्रेस पार्टी के लिए जबरदस्त इंट्रोस्पेक्शन का अवसर ले कर आये हैं. पिछली बार सत्तर सीटें मिली थीं, इस बार सिर्फ 19 सीटों पर संतोष करना पड़ा है. ये जितनी हार कांग्रेस की है उतनी ही राहुल गांधी की भी है. साफ तौर पर इस चुनाव में कांग्रेस थी महागठबन्धन की कमजोर कड़ी. जहां-जहां कांग्रेस की बीजेपी से टक्कर हुई ज्यादातर सीटें बीजेपी ने जीतीं.
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तेजस्वी को चोट पहुंचा कर उनके वोट काट कर इन दो महारथियों ने एनडीए की परोक्ष मदद की. चिराग की बात करें तो वो तेजस्वी के खिलाफ दूसरे बड़े वोटकटवा बन कर उभरे हैं. मोदी के हनुमान ने कर दिया काम. सीटें कम कर दीं तेजस्वी की. वैसे उनके कारण नितीश का खेल भी हुआ है खराब, किन्तु तेजस्वी का खेल हुआ है ज्यादा खराब.अब चुनाव के बाद चिराग जुड़ सकते हैं एनडीए से और इसमें कोई मुश्किल न आयेगी क्योंकि बिहार में अब छोटे भाई का बॉस दरअसल बड़ा भाई याने बीजेपी ही रहेगी पर्दे के पीछे से.
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