नई दिल्ली: Godrej Ballot Box: एक जमाना था जब आम आदमी के घरों में गोदरेज कंपनी की लोहे की अलमारियां हुआ करती थीं. समय बदला, पीढ़ी बदली, गोदरेज कंपनी भी बदली. लोग लकड़ी की अलमारी बनवाने लगे, लेकिन गोदरेज घर से नहीं गई. अब भी ज्यादातर घरों गोदरेज का ही फ्रिज है. 127 साल पुरानी कंपनी गोदरेज का अब बंटवारा हो गया है. कई लोगों की यादें इस कंपनी के प्रोडक्ट्स के साथ जुड़ी हुई हैं. देश के चुनावी इतिहास में भी गोदरेज का अहम योगदान रहा है.
गोदरेज ने बनाए बैलट बॉक्स
देश में पहला आम चुनाव साल 1952 में हुआ था. तब EVM नहीं हुआ करते थे. बैलट पेपर ही वोटिंग का इकलौता जरिया था. उस दौरान लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने थे. चुनाव आयोग को बैलट पेपर को इकट्ठा करने के लिए बैलट बॉक्स की आवश्यकता थी. लेकिन देश की ज्यादातर कंपनियां मजबूत बैलेट बॉक्स बनाने में सक्षम नहीं थी. फिर गोदरेज ने इस काम का जिम्मा उठाया.
12.83 लाख बैलेट बॉक्स बनाए
तब गोदरेज ही ऐसा ब्रांड हुआ करता था, जो अपने प्रोडक्ट्स के साथ सेफ्टी फीचर्स देता था. इस कंपनी के पास लॉकर और तिजोरी बनाने का अच्छा-खासा अनुभव था. चुनाव आयोग ने गोदरेज को बैलट बॉक्स बनाने की जिम्मेदारी दे दी. गोदरेज ग्रुप ने अपने बॉम्बे के प्लांट में 12.83 लाख बैलेट बॉक्स बनाए.
रोज बनते थे 15 हजार बैलट बॉक्स
कहा जाता है कि केवल चार महीनों के भीतर ही गोदरेज ने 12.24 लाख बैलट बॉक्स तैयार कर लिए थे. एक दिन में कंपनी करीब 15,000 बैलेट बॉक्स बनाती थी. यह जानकारी 15 दिसंबर, 1951 को बॉम्बे क्रॉनिकल नाम के अखबार ने पब्लिश की थी. गोदरेज ने बैलट बॉक्स में लॉकिंग सिस्टम भी दिया. हालांकि, कम बजट के चलते इंटरनल लॉक्स दिए गए, तिजोरी की तरह आउटर लॉक्स नहीं बनाए गए.
एक बैलट बॉक्स की कीमत इतनी
तब सरकार ने एक बैलट बॉक्स की कीमत 5 रुपये तय की थी. बैलेट बॉक्स के 50 प्रोटोटाइप तैयार हुए. इनमें से एक फाइनल हुआ, इसका रंग 'ऑलिव ग्रीन' रखा गया था. कहते हैं कि बैलट बॉक्स तैयार करने के लिए गोदरेज के कर्मचारी उस वक्त दिन के 17 घंटे काम किया करते थे.
नौसेनिक पोतों से पहुंचाए गए
बैलट बॉक्स बनकर तैयार हुए तो एक और चुनौती खड़ी हो गई. कई इलाके ऐसे थे, जहां पर बैलट बॉक्स को पहुंचाना काफी मुश्किल था. दूर-दराज के इलाकों में नौसेनिक पोतों से बैलट बॉक्स पहुंचाए गए. कई जगहों पर पुल बनाए गए और फिर ये बॉक्स मतदान केंद्रों पर पहुंचे.
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