नई दिल्ली: Govinda 2004 Election: बॉलीवुड के अभिनेता गोविंदा ने शिवसेना (शिंदे गुट) जॉइन कर ली है. यह सियासत में उनकी दूसरी बार एंट्री है. उन्हें मुंबई वेस्ट सीट से शिवसेना UBT (उद्धव गुट) के उम्मीदवार अमोल कीर्तिकरके खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है. इस बार गोविंदा भाजपा के सहयोगी दल में शामिल हुए हैं. जबकि 2004 में उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता, अटल कैबिनेट में मंत्री राम नाईक को चुनाव हराया था.
मंत्रियों के खिलाफ फील्डिंग तैयार की
2004 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए काफी अहम था. अटल सरकार ने समय से पहले चुनाव करवाने का फैसला कर लिया था. अटल के करीबी और भाजपा के रणनीतिकार प्रमोद महाजन का मानना था कि अटल सरकार ने खूब काम किया है. समय से पहले चुनाव होने पर उनकी पार्टी बड़ी विक्ट्री हासिल कर सकती है. उन्होंने पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को भी समय से पूर्व चुनाव करवाने के लिए राजी कर लिया था. दूसरी ओर, कांग्रेस भाजपा को मात देने की रणनीति बना रही थी. इसके लिए पार्टी ने अटल सरकार के मंत्रियों को घेरने के लिए फील्डिंग तैयार की. भाजपा सरकार में राम नाईक सबसे पावरफुल मंत्री थे. वे मुंबई उत्तर सीट के किंग कहलाते थे. यह उनका गढ़ था. वे 'जाइंट किलर' बन चुके थे. कांग्रेस ने उन्हीं के खिलाफ गोविंदा को टिकट देने का फैसला किया.
नहीं चल रही थीं फिल्में
तब गोविंदा की फिल्में भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा रही थीं. वे भी एक के बाद एक फ्लॉप फिल्म देकर निराश हो चुके थे. लिहाजा, उन्होंने भी राजनीति में हाथ आजमाने की सोची. कहते हैं कि गोविंदा को तब राजनीति का खास नॉलेज नहीं था. लेकिन उनका चार्म ऐसा था कि भीड़ अपने-आप खींची चली आती थी. गोविंदा ने अपने चुनावी भाषणों में बड़े-बड़े वादे किए. तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी गोविंदा के लिए प्रचार किया.
क्या रहे नतीजे?
2004 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सबकों चौंका दिया. भाजपा का 'इंडिया शाइनिंग' का नारा बुरी तरह फेल हुआ. भाजपा को 138 सीटें मिलीं. कांग्रेस को 145 सीटें आईं. कांग्रेस ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर UPA नाम से गठबंधन बनाया और केंद्र में नई सरकार बनी. मुंबई नॉर्थ सीट के परिणाम भी चौंकाने वाले थे. गोविंदा ने 48 हजार वोटों से राम नाईक को चुनाव हराया. गोविंदा को 5.59 लाख वोट आए, जबकि राम नाईक को 5.11 लाख वोट मिले.
क्यों छोड़ दी राजनीति?
गोविंदा ने चुनाव तो जीत लिया, लेकिन आगे का सियासी सफर कांटों भरा रहा. वे न तो अपने क्षेत्र में सक्रिय रहते थे, न संसद में हाजिरी ठीक थी और न ही पार्टी कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे. उनके बर्थ सर्टिफिकेट पर भी विवाद हुआ. कास्टिंग काउच के मसले पर उन्होंने अपने दोस्त शक्ति कपूर का समर्थन किया. BBC को दिए एक इंटरव्यू में गोविंदा ने कहा कि राजनीति मेरे औकात से बाहर का काम था. मुझे धमकियां मिलने लगी थीं. मेरे बच्चों के साथ कई हादसे हुए. लिहाजा, मैंने राजनीति छोड़ने का फैसला किया. गोविंदा ने 2008 में राजनीति छोड़ने का फैसला किया. 2009 में उन्होंने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा. हालांकि, गोविंदा के करीबियों ने दावा किया कि कांग्रेस ने उनका इस्तेमाल किया था. सिर्फ राम नाईक के किले को ढ़हाने के लिए गोविंदा को लाया गया. चुनाव जीतने के बाद पार्टी ने उन्हें गाइड नहीं किया, उनकी सुध नहीं ली.
राम नाईक- दाऊद की मदद से जीते गोविंदा
चुनाव के कई सालों बाद राम नाईक यूपी के गवर्नर हो गए थे. तब उन्होंने अपनी किताब 'चरैवेति, चरैवेति' (बढ़ते रहो) में आरोप लगाया कि गोविंदा ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और बिल्डर हितेन ठाकुर की मदद से उन्हें चुनाव हराया. इस पर गोविंदा ने \आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मुझे तब किसी के समर्थन की जरूरत नहीं थी. ऐसी बातें कहकर किसी का अपमान न करें. अब जब मैं फिल्म की दुनिया में लौट चुका हूं, तब मैं नाईक से अपील करूंगा कि वह मेरा नाम खराब न करें. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि 2004 के चुनाव में अंबानी परिवार ने भी गोविंदा की चुनाव में मदद की थी. ऐसा कहा जाता है कि राम नाईक ने पेट्रोलियम मंत्री रहते हुए अंबानी परिवार की मदद नहीं की थी.
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