नई दिल्ली: कर्नाटक के बेलगावी जिले की राजनीति पर, जहां बेंगलुरु शहरी के बाद सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें हैं, जारकीहोली भाइयों और कट्टी परिवार का सबसे ज्यादा प्रभुत्व है. रमेश और बालचंद्र जारकीहोली भाजपा के साथ हैं तो उनके भाई सतीश विधानसभा में कांग्रेस के प्रमुख रणनीतिकारों में एक हैं. तीनों की भाजपा और कांग्रेस की सरकारों में मंत्री रह चुके हैं.
किस सीट से कौन लड़ रहा है चुनाव?
रमेश जारकीहोली गोकाक सीट से और बालचंद्र जारकीहोली अराभवी विधानसभा सीट से उम्मीदवार हैं. सतीश येमकनमर्दी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता लक्ष्मण सिवाडी ने टिकट न मिलने के बाद भाजपा छोड़ दी और इसका श्रेय रमेश जारकीहोली को दिया जा रहा है. सिवाडी अब कांग्रेस के टिकट पर अपनी अथानी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उनके प्रतिद्वंद्वी महेश कुमाथल्ली हैं, जो रमेश जारकीहोली के शागिर्द हैं.
जारकीहोली बंधु चीनी के व्यापारी हैं और इस क्षेत्र में उनका उतार-चढ़ाव भरा इतिहास रहा है. वे अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी से संबंधित हैं और उन्हें उनके आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों तक सीमित करने की मांग की गई है. लेकिन भाई-बहनों का पैसा और बाहुबल 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अंतर पैदा कर रहा है. इस बीच, खट्टी एक शक्तिशाली लिंगायत परिवार है, लेकिन आठ बार विधायक और छह बार मंत्री रहे उमेश खट्टी के निधन से परिवार का प्रभाव कुछ कम हुआ है. हालांकि, उनके भाई और पूर्व सांसद रमेश खट्टी चिक्कोडी-सदलगा विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
बेलागावी जिले के चिक्कोडी से सांसद आनंद जोले
उमेश खट्टी के बेटे निखिल हुकेरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं जिसका प्रतिनिधित्व उनके पिता करते थे. जोले भी इस क्षेत्र में एक शक्तिशाली परिवार है और धार्मिक तथा धर्मार्थ बंदोबस्ती मंत्री शशिकला जोले निप्पानी विधानसभा सीट से जनादेश मांग रही हैं. उनके पति आनंद जोले बेलागावी जिले के चिक्कोडी से सांसद हैं.
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जिले में 18 सीटें हैं जिनमें से 13 पर लिंगायत समुदाय का वर्चस्व है, जिसने अपने दो शक्तिशाली नेताओं - पूर्व केंद्रीय रेल राज्य मंत्री सुरेश अंगड़ी और उमेश खट्टी को खो दिया है. महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस) का पांच सीटों पर दबदबा है और उसे एनसीपी-शिवसेना गठबंधन का समर्थन हासिल है.
इन क्षेत्रों में 40 प्रतिशत मराठी भाषी आबादी है क्योंकि बेलगवी तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था. हालांकि बेलगावी भाजपा का गढ़ रहा है, कई कारक भगवा पार्टी के लिए स्थिति को कठिन बना रहे हैं. इनमें सुरेश अंगड़ी और उमेश खट्टी के निधन के साथ-साथ लक्ष्मण सिवाड़ी का दलबदल भी शामिल है. भाजपा अब पार्टी के लिए सीटें जीतने के लिए रमेश जारकीहोली की ताकत पर भरोसा कर रही है.
(इनपुट- आईएएनएस)
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